Vani Karna

Inspirational

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Vani Karna

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मौजूदगी

मौजूदगी

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सुनयना अपने नाम अनुरूप ही सुंदर और बड़े बड़े नेत्रों वाली है।पढ़ने में भी होशियार ,सुघड़ है।

माता पिता अपनी बेटी पर गर्व करते है ।पढ़ाई पूरी करने के बाद उसका मन था शिक्षिका बनने का सो उसने सरकारी स्कूल में अप्लाई किया।मेधावी थी ,चयनित भी हो गई।

अब शादी की बात चली ।शादी पक्की हुई किशोर से जो कि इंजीनियर था बोकारो स्टील प्लांट में ।आनन फानन में शादी हो गई। सुनयना बहुत प्रसन्न थी अपने पति किशोर का प्यार पाकर । वही बोकारो में उसने प्राथमिक विद्यालय में बतौर शिक्षिका का पद जॉइन कर लिया ।विवाह के चार सालों में ही दो बेटे हुए । अब तो सुनयना बहुत खुश थी अपने छोटे से संसार मे ।

विवाह के पंद्रह वर्ष हो चले थे ।किशोर भी सुनयना को बहुत प्रेम करता था उसकी हरेक बात का ख्याल करता दोनो ही अपना प्रेममय जीवन बिता रहे थे।

लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था।हुआ यूं कि एक दिन किशोर के बड़े भाई ने फ़ोन किया कहा "बेटी की शादी की बात चल रही है तुम आओ फिर मिलकर लड़के वालों के घर चलेंगे।"

ऐसा ही किया किशोर ने एक कार रेजर्वे करके विदा हुआ गांव बेगूसराय की तरफ।

रास्ते मे ही किसी डाकू समूह के लोगो ने कार अपहृत कर लिया ।उसके बाद क्या हुआ किसी को कुछ पता न चला ।पुलिस थाना सब जगह दौड़कर सुनयना परेशान हो गई ,घर के लोग सभी हताश निराश हो गए लेकिन पता न चला ।पैसा बहुत खर्च हुआ लेकिन परिणाम कुछ न निकला।

सब कितने दिन रुकते गांव में ,वापस आ गए।

सुनयना को भी सबने सलाह दी वापस जाओ और किशोर का मोह त्याग दो ,शायद वो अब कभी न आएगा ।लगता है किसी ने अपहृत करके उसे मार डाला।

सुनयना कहने लगी आपलोग ऐसा न कहे किशोर अवश्य वापस आएगा वो मुझे इसतरह छोड़कर नही जा सकता।

खैर सुनयना वापस आ गई बोकारो।बच्चों के भविष्य की भी बात थी।बच्चे कक्षा 8 और 9 में थे तो उनकी पढ़ाई भी देखनी थी।फिर से सुनयना का वही पुराना रूटीन शुरू हुआ ।विद्यालय जाती वहां से आती तो बच्चों की देखभाल करती। ऐसे ही समय बीतने लगा।सुनयना हर दिन थाने में फ़ोन करके पूछती कुछ पता चला किशोर का ,लेकिन निराशा ही हाथ लगती ।अब तो फ़ोन भी नही उठता थाने में।

इस बात को बीते छ साल हो गए ।किशोर वापस नही आया।

इधर आस पड़ोस के लोग खूब बाते बनाते सुनयना को देखकर।सुनयना पूरा श्रृंगार करती थी ।माथे पर बड़ी सी बिंदी, काजल, होठो पर लाल लिपस्टिक सलीके से साड़ी पहनकर निकलती थी घर से।

एक दिन पड़ोस की चाची को रहा नही गया पूछ बैठी " किसके लिए इतना सजती संवरती हो? किशोर अब वापस नही आएगा ,छोड़ दो ये नाटक।"

सुनयना पहले सोची मुंह न लगाऊं फिर सोची एक बार तो जबाब देना होगा ,बोली " चाची किशोर मेरे साथ हरपल है हरक्षण है ।उसकी मौजूदगी का एहसास मुझे हमेशा होता है ।इस घर के प्रत्येक चीज़ों में उसकी मौजूदगी है ।बच्चों के रूप में ,मेरी अनगिनत यादों में, वो बसा है ।अब ये यादे ही मेरे जीवन का सहारा है ।मैं क्यों न करू श्रृंगार ,मैंने तो उसे मरा हुआ पाया ही नही तो क्यो मातम मनाऊ ।वो मेरी जिंदगी में इसतरह शामिल है जैसे फूल संग खुशबू ,बादल संग पानी ।भला हमलोग कभी बिछड़ सकते हैं ? नही न ।आप कैसे कहती है वो नही आएगा ।वो तो मेरे पास है ,मेरी यादों में करीब है बहुत करीब।अपने पूरे जीवन भर मैं उसकी प्रतीक्षा करुंगी।"

इतनी बात सुनकर चाची तो मुह बिचकाकर चली गई लेकिन सुनयना खुश थी जबाब देकर क्योंकि किशोर का प्यार बसा था उसके जीवन मे सदा सर्वदा के लिए ।



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