सुहाना सफर
सुहाना सफर
कला शादी शुदा है। समीर से उसकी शादी हुई है। दो बच्चे भी है मगर खुशियाँ ही नहीं दोनों के दाम्पत्य जीवन में। विवाह के 20 साल बीत गए है शायद ही कला को प्रेम के कुछ पल याद हो। शुरू के दिनों में शारीरिक आकर्षण था समीर का कला के प्रति। इसी आकर्षण को कला प्रेम समझ बैठी। लेकिन समीर का प्यार तो बस कला के शरीर तक ही सीमित रहा।
ऐसे लोग किसी के नहीं होते जो पत्नी तक को बस एक देह समझते है। फलस्वरूप समीर कला से दूर होता गया। कई सम्बंध बने समीर के। कला समझ नहीं पाती अपनी गलती। समीर कला को पास नहीं आने देता, न ही बातों से और न ही शरीर से। आखिर बाहर का सम्बंध हावी था कला के समर्पण और प्यार पर।
कला को समझते समझते देर हो चुकी थी। दिन रात समीर के धोखे को याद करके अवसाद में चली गई कला। बच्चे बड़े हो रहे थे, बच्चों का भविष्य देखे या समीर से तलाक ले। बहुत कशमकश में थी कला।
बहुत गुणी जनों से कला ने सलाह ली सबने तो बस मज़ाक बनाया। किसी ने भी मदद करने की कोशिश नहीं की।
कला के माता पिता भी बूढ़े हो चले थे। भाई पर ही सारी जिम्मेदारी थी। मायके से भी मदद की उम्मीद नहीं थी। फिर भी डरते डरते उसने अपनी बहनों से सलाह लेने का प्रयास किया।
सबने कहा क्या करोगी जैसा है जो भी है निबाह लो। अब तो कला निराश हो गई। क्या करे। अब तो कही से भी कोई आशा न रही।
रोज तिल तिल मरती थी कला समीर को देखकर। समीर अब थोड़ा ढीठ हो चुका था। घर आकर कहता आज फला के पास गया था बहुत खूबसूरत है वो तुम तो उसके आगे कुछ नहीं। सुन नहीं पाती थी कला। शुरू में तो बहुत रोई पर अब उठकर चली जाती थी वहां से।
अब कला समीर के साथ नहीं सोती थी। सोचती कैसी किस्मत लेकर पैदा हुई। मरने की कोशिश भी की नींद की दवा खाकर लेकिन बच गई।
अस्पताल में ही जिस डॉक्टर ने कला की इलाज किया, उसके पूछने पर कला ने सब आपबीती कही।
हम आप कितना भी खेल खेले लेकिन भगवान का खेल निराला होता है। भाग्य कहे या कुछ और वो डॉक्टर भी तलाकशुदा दो बच्चों का पिता था। लगभग समान उम्र के थे दोनों। डॉक्टर चंदन ने बहुत ही हिम्मत दिया कला को। फ़ोन नंबर एक्सचेंज हुए।
काम निपटाकर कला चंदन से खूब बाते करती जब भी फ्री होता चंदन।
दोनों के मन में प्यार का बीज अंकुरित हो चुका था। अब बस परिणाम की देरी थी। कोई फैसला लेना था कला को समीर या फिर चंदन। बहुत ही साधारण थी कला। पर कभी कभी साधारण लोगों को भी असाधारण निर्णय लेना पड़ता है। कला जानती थी लोग सारा दोष मुझे ही देंगे, चरित्रहीन कहेंगे लेकिन कौन चरित्रहीन है ये सच तो बस कला ही जानती थी।
पुरुष प्रधान समाज में एक नारी का निर्णय वो भी अपने लिए बहुत ही कठिन है। एक तरफ समीर था जिसके साथ दाम्पत्य बस नाम मात्र ही था दूसरी तरफ चंदन था जो उसे आदर और प्यार दोनों देता था। कला कशमकश में थी।
"क्या करूँ अपने दिल की सुनूं या फिर अपने जीवन की बलि दे दूं पल पल मरती रहूं, कुछ पल जीवन के बाकी है खुशियों से भरूँ या फिर अपना सर्वस्व नष्ट कर लूं। मर भी नहीं सकती बच्चों का क्या होगा, नहीं नहीं मुझे जीना होगा अपने लिए अपने बच्चों के लिए। हां मैं जीयूँगी अपने तरीके से, अपने बच्चों के लिए, अपनी पसंद के साथ, अपने हमसफ़र के साथ, हाँ, मैं रहूंगी चंदन के साथ समीर को तलाक दे दूंगी। कहने दो लोग कुछ भी कहे, ये जीवन मेरा है इस जीवन के फैसले लेने का हक मुझे ही है। मुझे भी खुश रहने का अधिकार है। मुझे भी अपनी खुशियां बटोरने का हक़ है। मैं जीयूँगी । और ये सफर अवश्य सुहाना सफर होगा।" आमीन
