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चन्द्रलेखा

चन्द्रलेखा

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चंद्रलेखा नाम अनुरूप ही थी चन्द्रमा के समान दिव्य, अलौकिक छवि पर भाग्य का क्या कहे ठीक विपरीत ,जन्म लेते ही माँ मर गयी। पिता जो सूरजगढ़ के महाराज थे उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया। नई महारानी पद्मावती बहुत कुटिल चालो वाली थी। बचपन से ही उसे चंद्रलेखा नहीं भाती थी। राजा के सामने तो बहुत प्यार दिखाती उनके जाने के बाद प्रताड़ित करती ,घंटों तक भोजन नहीं देती, फिर भी चंद्रलेखा पिता से कुछ न कहती।

"शायद नई माँ का स्वभाव बदल जाये " एहि सोचकर चुप रहती सदा।


रानी ,महारानी पद्मावती कहाँ हो तुम ,इतना सन्नाटा क्यों है ,नाच गान नहीं हो रहा ?

सेवको ने कहा "महारानी अपने कक्ष में है आज वो किसी से मिलना नहीं चाहती"

महाराज प्रद्युमन थोड़ा गुस्सा हुए पर उनके कक्ष में प्रवेश कर गए तो देखा महारानी अपने कक्ष में नीचे लेटी है और कराह रही है।

क्या हुआ महारानी आपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या

मुझे क्या होगा मैं तो बस चिंता में मरी जा रही हूँ।

क्यों?

क्योंकि अब राजकुमारी सोलह बरस की हुईं अब उनका विवाह हो जाना चाहिए

राजा ने खुश होते हुए कहा महारानी आप सच में बहुत अच्छी है नेक है तभी आपको राजकुमारी की इतनी चिंता हुई। मैं कोई सुयोग्य वर खोजता हूँ।

आपको खोजने की आवश्यकता नहीं महाराज मेरे भाई ने पड़ोसी राज्य के राजकुमार का चयन किया है ,आप बस विवाह की तैयारी करें।

राजा ने कहा जैसी आपकी इच्छा


आनन फानन में ये खबर राजकुमारी चंद्रलेखा को मिली । चंद्रलेखा की कुछ खास सहेलियों को पता चला कि पड़ोसी राज्य का राजकुमार बहुत धूर्त है ।राजकुमारी से विवाह के एवज में पड़ोसी देश का राजकुमार रानी पदमिनी को बहुत धन देने वाला था। इस तरह कुटिल रानी को राजकुमारी से छुटकारा मिलता और धन भी मिलता।


"राजकुमारी चंद्रलेखा आप देर न करे तुरन्त हमारे साथ निकले आपकी जान को खतरा है ,हमारे कुछ परिचित सैनिक है जो घोड़े लेकर तैयार है बाहर दुर्ग के रास्ते मे आप चले अति शीघ्र।"


दूर तक घोड़े की टाप सुनाई देती रही।


अन्ततः राजकुमारी चंद्रलेखा अब अपने राज्य से बहुत दूर आ गई थी ।घुड़सवार लौट गए।

दो सखियों सहित चंद्रलेखा एक गांव में पहुंची ।

दोनों सहेलियों ने एक घर में आश्रय की मांग की ।घर के लोग अच्छे थे ।घर की बुजुर्ग एक महिला ने तीन कन्याओं को देखकर कहा कौन हो तुम लोग वस्त्र से तो अच्छे घर की लगती हो । आज रात यहीं रुक जाओ लेकिन सवेरे निकल जाना ।सखियों ने कहा हम विहार को निकले थे रास्ता भटक कर आपके पास आ गए ,सवेरे ही निकल जाएंगे आप चिंता न करे।


रात भर राजकुमारी चंद्रलेखा रोती रही पिता को याद कर ।लेकिन भाग्य की लेखनी को कौन मिटा सकता है ।सखियों ने ढाढस दिया हम यहां से दूर चले जायेंगे पहाड़ों के देश में, वहां हमें कोई नहीं पहचान पायेगा।

ऐसा ही हुआ दोनों सखियों सहित राजकुमारी निकल पड़ी पहाड़ी देश की तरफ। आश्रय देनेवालों ने ही घोड़े की व्यवस्था कर दी थी। राजकुमारी रानी पदमिनी से छिपकर घुड़सवारी तलवारबाजी सब सीखती थी। एक कुशल योद्धा थी राजकुमारी।

घोड़े सरपट दौड़ रहे थे राजकुमारी सखियों सहित पहाड़ी राज्य वल्लभगढ़ की सीमाओं के नज़दीक पहुंच चुकी थीं।

घोड़ों को पास के जंगल में छोड़ वो लोग आगे बढ़ी एक गांव की तरफ। साखियों ने किसी के घर आश्रय लेने का सोचा ।एक घर मे गई तो एक बूढ़ी औरत अपने पोते के साथ रहती थी वही घर सबको सुरक्षित लगा । राजकुमारी दोनों सखियों सहित वही रुक गयी।


राजकुमारी चंद्रलेखा अब आम नागरिक की तरह खेतों में घूमती झरने के पानी से खेलती, बगीचे की सैर करती थीं। जीवन बहुत रास आ रहा था राजकुमारी को ।उन्मुक्तता थी इस राज्य में ।

वल्लभगढ़ का राजकुमार बहुत विलासी था ।एक दिन वो वल्लभगढ़ की सैर पर निकला सहसा उसकी नज़र चंद्रलेखा पर पड़ी ,उसने सैनिकों को आदेश दिया धोखे से उस लड़की को उठा लाओ।

चंद्रलेखा को बंदी बनाकर महल ले आया वल्लभगढ़ का राजकुमार। उसे एक कमरे में छोड़कर सभी सैनिक चले गए तभी राजकुमार आया ।चंद्रलेखा ने अपने बालों में कटार छिपा रखी थी जैसे ही राजकुमार समीप आया उसे पलटकर कटार से उसने राजकुमार के गले की नस काट डाली ।राजकुमार कोई आवाज़ भी नहीं निकाल पाया वही तड़पकर प्राण निकल गए उसके।

इधर जब सखियों को पता चला वो दोनों अफसोस करने लगी बेकार में हमने राजकुमारी को अकेले बाहर जाने दिया, ये बात बुढ़िया के पोते भोला को पता चली वो और उसके कुछ साथी ने मिलकर राजमहल से राजकुमारी को वापस लाने की योजना बनाई।

सखियों सहित भोला और कुछ साथियों को लेकर महल के भीतर जाने की योजना थी सुरंग के माध्यम से। भोला को सुरंग की बात पता थी ।सब सैनिकों को मारते हुए महल के राजा के कक्ष में पहुंचे ।भोला ने सोते हुए राजा को बंदी बनाया और सखियों ने राजकुमारी की खोज शुरू की ।आखिर एक कक्ष में चंद्रलेखा मिली जो सैनिकों को छलकर भागने के प्रयत्न में थी।


लेकिन इतना आसान नहीं था महल से निकल जाना। सब एक जगह इकट्ठा होकर उसी सुरंग से वापस निकलने लगे ।राजा के अंगरक्षकों को खबर लगी वो लोग आगे आये। लेकिन भोला बहुत बहादुर था उसने कहा आपलोग निकलो मैं सैनिकों से निपटकर आता हूँ। चंद्रलेखा कहां मानने वाली थी सब ने मिलकर राजा के सैनिकों को मार गिराया और सुरंग से निकलकर बड़े से पत्थर से सुरंग का प्रवेश द्वार बंद कर दिया।

जबतक महल में हंगामा होता तबतक वो लोग निकलकर आ चुके थे घर। घर आकर भोला ने कहा "अब हम सबका यहां रहना ठीक नहीं कही दूर जाना होगा राजा के सैनिक हमें ढूंढ लेंगे।"

सभी झटपट निकल पड़े घने जंगल की ओर। दिन का उजाला फैल चुका था। राजकुमारी भोला की बहादुरी देखकर दंग थी। सभी ने घने जंगल में एक गुफा में शरण ली। भोला भी राजकुमारी की वीरता देखकर बहुत आश्चर्य में था जिस तरह से राजकुमारी ने सैनिकों को मारा था कोई साधारण स्त्री ऐसा नहीं कर सकती। उसके मन में अनेकों विचार आ रहे थे। तभी सबने देखा उस गुफा के द्वार पर दो सैनिक आये भोला उनसे कुछ बाते करने लगा ।फिर एक पत्र देकर वो दोनों सैनिक चले गए। राजकुमारी को शक हुआ उसने फिर अपनी कटार निकाल भोला के गर्दन से लगाती हुई पूछने लगी " ये सैनिक कौन थे तुम कौन हो ।तुम कोई साधारण गांव के बासिन्दा तो लगते नहीं, तुम युद्धकला में भी पारंगत हो ,सच बताओ कौन हो नहीं तो यहीं मार डालूंगी।

भोला हँसते हुए कहने लगा अच्छा मैं बता दूंगा तो आपको भी बताना होगा, शर्त यही है ।

राजकुमारी हंसते हुए कहने लगी मौत सामने खड़ी है तुम्हारे और तुम शर्त की बात करते हो ।तुमने मेरी जान बचाई इसलिए बख्श देती हूँ ,अब बताओ कौन हो।

भोला ने कहा मैं एक राजकुमार हूँ यहां अपने राज्य से दूर छुपकर अपनी धाय माँ के साथ रहता था। मेरे पिता को मारकर मेरे काका ने राज्य हड़प लिया ।धाय माँ मुझे बचपन में ही किसी तरह मुझे बचाकर यहां ले आई। ये सैनिक मेरे विश्वासपात्र थे मेरे राज्य की खबर मुझ तक लाकर देते है ये सैनिक। मेरा नाम चन्दनसिंह है, मैं प्रतापगढ़ का राजकुमार हूँ।

राजकुमारी आश्चर्य में पड़ गई ।

राजकुमार चन्दनसिंह उर्फ भोला ने कहा आप राजकुमारी हो न ।

आपको कैसे पता चला ?

आपकी युद्धकला को देखकर मैं समझ गया आप कोई साधारण नहीं किसी राजघराने की है।


अब राजकुमार चंदनसिंह ने बहुत सैनिकों को अपने विश्वास में ले लिया था ।राजकुमार के काका बहुत ही क्रूर राजा थे ,प्रजा भी उनको पसंद नही करती थी। चन्दनसिंह के नेतृत्व में सभी सैनिकों ने काका राजा के सैनिकों पर हमला बोला और प्रजा ने भी विद्रोह कर दिया ।काका राजा को भागने का कोई स्थान न मिला,उसे बंदी बनाकर राजकुमार ने कारागृह में डाल दिया। अब राजकुमार चंदनसिंह राजा बन गया प्रतापगढ़ का ।राजकुमारी चंद्रलेखा को उसने बड़े आदर से अतिथि के रूप में रखा ।

चंद्रलेखा के मन में राजकुमार के लिए प्रेम भाव जाग उठी थी ।मन ही मन प्रेम करने लगी थी। लेकिन कह नहीं पाती थी ।इधर राजकुमार का भी वही हाल था ।मन ही मन दोनों एक दूसरे को प्रेम करने लगे।

एक दिन राजकुमार ने राजकुमारी से उसकी आप बीती सुनी ।तब राजकुमार ने कुछ सैनिकों को भेजकर सूरजगढ़ का हाल खबर लेने भेजा ।

सैनिकों ने जो खबर दी सुनकर सब सत्र रह गए । हुआ यों कि राजकुमारी चंद्रलेखा के भागने के बाद पड़ोसी राज्य का राजकुमार क्रोधित होकर चंद्रलेखा के पिता और सौतेली माँ को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया और स्वयम सूरजगढ़ का राजा बन बैठा।

राजकुमारी ये सब सुनकर बहुत उदास हो गई। राजकुमार चन्दनसिंह से राजकुमारी को उदास देखकर कहा "आप उदास न हो ईश्वर ने चाहा तो आपको आपके पिता महाराज से मिलवाकर रहूंगा।

राजकुमारी ने महल की सम्पूर्ण जानकारी दी ।इसी आधार पर राजकुमार ने सूरजगढ़ पर आक्रमण करके उसे जीत लिया और वहां के दुष्ट राजा को बंदी बना लिया ।राजकुमारी ने अपने पिता एवम् सौतेली माता को कारागृह से निकालकर फिर से राजगद्दी पर बिठाया।

"बेटी तुमने ये सब कैसे किया" ?

तब राजकुमारी चंद्रलेखा ने आपबीती सब कहा।

राजकुमारी की सौतेली मां की आंखों में भी पाश्चाताप के आंसू थे ,बेटी मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम्हें कभी अपना संतान नहीं समझा शायद इसलिए मुझे कोई संतान नहीं हुआ ,बेऔलाद ही रह गई मैं।

राजकुमारी रोते हुए माँ और पिता के गले लग गई ।अब सखियों की बारी थी ।सखियों ने पिता महाराज को चन्दनसिंह के बारे में सब बताया ।

पिता महाराज और रानी ने मिलकर खूब धूमधाम से राजकुमारी चंद्रलेखा का विवाह राजकुमार चन्दनसिंह से कर दिया। इति शुभम।



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