अपना अपना स्वभाव
अपना अपना स्वभाव


एक नेता जी थे बड़े रौबदार जहां जाते अपनी खूबी की डींग हांकते।एक दिन किसी चेले ने आकर कहा नेता जी हमारे शहर में एक बड़े सिद्ध साधु आये है ,उनसे सब अपनी समस्याएं कहते है और वो साधु उसका समाधान करते है ।चुनाव सर पर है क्यो न आप भी वहां जाकर अपना भविष्य पूछे।
नेता जी को सलाह भा गई।चल दिये अपने लाव लश्कर के साथ साधु के आश्रम।
वहां पहुचे नेता जी तो देखे साधु महाराज तो बिजी है लोगों की समस्या सुनने में ।थोड़ी देर नेताजी ने प्रतीक्षा की ,जब रहा नही गया तो पूछ बैठे साधु से "मेरा नंबर कब आएगा ,मुझसे पहले बात कर ले।" साधु ने बड़ी विन्रमता से कहा "इन सब लोगों के बाद आपका ही नंबर है कृपया प्रतीक्षा करें।"
बहुत देर तक जब साधु लोगों मे ही उलझे रहे तब नेताजी को बड़ा गुस्सा आया ।बस आव न देखा ताव बरस पड़े साधु पर "अरे साधु तू तो साधु ही नही ढोंगी है ,जानबूझकर अपनी व्यस्तता दिखा रहा है ।तुम जानते नही मैं कौन हूँ मैं फलां नेता हूँ मुझे भी बहुत काम है ।लेकिन देख रहा हूँ तुम मुझे महत्व नही दे रहे हो ।तुम्हे पता है मुझसे मिलने लोग अपॉइंटमेंट लेकर आते है फिर भी मुझसे मिल नही पाते ।तुम किस खेत की मूली हो ।मेरे आगे सब हाथ जोड़े रहते है तुम तो मामूली से हो।"
अब तो नेताजी जोर जोर से चिल्ला रहे थे उनको क्रोध आ चुका था।साधु ने देखा लोग परेशान, हैरान हो
रहे है तो उन्होंने नेता जी से कहा "आप कृपया शांति रखे ,यहां का वातावरण खराब ना करे ।आपकी बात भी मैं सुनूंगा।"
लेकिन नेता जी कहाँ चुप रहने वाले थे ,साधु को नरम देखकर कहने लगे अबे ढोंगी चल मुझसे माफी मांग तभी मैं यहां से जाऊंगा।
साधु ने बड़ी ही विन्रमता से माफी मांग ली।अब तो नेता जी के चेहरे पर खुशी छलकने लगी ।अपने चेलों से कहने लगे "देखा मैं कहता था न ये साधु ढोंगी है ,इसने आखिर माफी मांग ली।इसे अपनी गलती का भान हुआ । इसने मुझे बहुत प्रतीक्षा करवाई ।"
नेता जी खुशी खुशी घर पहुंचे ।पिता ने देखा नेता बेटा आज बहुत खुश है ,पूछ बैठे बेटा आज तो बहुत खुश लग रहे हो क्या बात है।
नेता जी खुशी खुशी सब बात कह बैठे ।सुनकर पिता ने हँसकर कहा बेटा वो ढोंगी साधु नही था ज्ञानी था तभी तुझसे माफी मांगी।नेता जी को बड़ा आश्चर्य हुआ पूछने लगे" कैसे?"
पिता ने कहा देखो तुम्हारे चिल्लाने से वहां का माहौल खराब हो रहा था इसलिए साधु ने माफी मांग ली।साधु ने अपना स्वभाव दिखाया ,तुमने अपना।"
इसलिए अपने आपको, अपने स्वभाव को बदलो ,बड़ा वही है जो विनम्र है । अधजल गगरी छलकत जाए वाली कहावत तुमने चरितार्थ कर दी। चूंकि नया साल आने वाला है तुम प्रण करो आज से रौब दिखाना छोड़ दूंगा और अपने क्रोध पर नियंत्रण रखूंगा ।मैं आशा करता हूँ तुम अपने स्वभाव को बदल लोगे.