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Parul Manchanda

Tragedy

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Parul Manchanda

Tragedy

मैं तुझमें - तू मुझमें

मैं तुझमें - तू मुझमें

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हर औरत में थोड़ा आदमी और आदमी में औरत मौजूद होती है।

कैसे? 

रूपक ने अपना पूरा जीवन पहले अपने माता-पिता की देखरेख में गुज़ारा फिर आदित्य से प्रेम होने के बाद उसी पर अपनी ज़िंदगी निछावर कर दी। अभी तो पोस्ट ग्रेजुएशन भी पूरी ना हो सकी और अपने जीवन को सम्पूर्ण मान प्रेम विवाह रचा लिया। चाहती तो थी वो भी के जीवन में कुछ बन जाऊँ पर जब भी किताबें खोल कर बैठती तो आदित्य को वक़्त ना दे पाने की शिकायत, रूपक की किताबों पर गढ़ी नज़रों को उसकी आँखो तक पहुँचा देती और किताबें कब किनारा हो जाती उसको एहसास ही ना होता।

आदित्य अच्छा कमा लेता है ये सोचकर रूपक ने भी अपने भविष्य के सपने पर आलस की मोहर दे डाली।रूपक को प्रेमी के रूप में पति और पति के रूप में एक ऐसा दोस्त मिला जिसका मान उसे जीवन भर रहा। होता भी क्यूँ ना! आख़िर आदित्य उसी की पसंद थी।

वक़्त गुज़रा- रूपक माँ बनने वाली थी। आदित्य का ना सिर्फ़ ख़याल रखना हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी ज़रूरत का ध्यान रखना रूपक को एहसास दिलाने लगा के वो इस काबिल है भी या नहीं ?


आदित्य अपने ऑफ़िस में बतौर मैनेजर काम करता था। दस से ज़्यादा कर्मचारी उसके अंतर्गत नियुक्त थे। अपने काम में निपुण होने के नाते उसे लापरवाही पसंद नहीं थी पर घर आते ही ये पुरुष ममतामय हो जाता। होना भी चाहिए था। उसके घर नन्हे कदमों से जो भरने वाले थे।प्रियतमा के रूप में उसे पत्नी और पत्नी के रूप में एक ऐसी दोस्त मिली जो आदित्य का परिवार थी।आने वाले कल की ज़िम्मेवारी मीठी लगने लगती है। जब शिशु किलकारियाँ पिता के सपनो में जगती है। सपने कल के उमड़ उमड़ कर मचलने लगते हैं .जब मात-पिता के घर आँगन सपने जागते हैं ।सच! आदमी कितना। ही कठोर क्यू ना हो, दया, ममता, देखभाल, आँखो की नमी यें गुण कही ना कही आदमी में औरत भर ही देते हैं ।

बर्हाल समय आया रूपक और आदित्य के घर दो पुत्रों ने जन्म लिया। अपने दोनो बच्चों के साथ एक बेहतरीन ज़िंदगी का सफ़रनामा तय कर रहे इस दम्पति की क़िस्मत ज़्यादा दिन अच्छी ना रह सकी। एक सड़क दुर्घटना में आदित्य की साँसो की लड़ी टूट गयी और रूपक…….

                    (कहानी जारी रहेगी)


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