मैं माँ हूँ तुम्हारी
मैं माँ हूँ तुम्हारी
मैं नदी, देखा है कभी आपने मुझे गौर सेनहीं देखा तो देखिए और सीखिए मुझसे जीने का सलीका।
क्या सोचते हो?काम का दबाव भी ना होऔर जीवन मे तरक्की करते रहो,यही ना ?
क्या कहते हो उसे कम्फर्ट जोन,उससे निकलनानहीं चाहते होरिस्क लेनानहीं चाहते हो।
तो कैसे बढोगे आगे,कैसे मिलोगे सफलता के सागर से।
सोचो अगर मैं अपने कम्फर्ट जोन में ही बहती रहती, एक ही धारा एक ही लय तो ?
तो कभी ना मिल पाती सागर से, मैंने पत्थरो को काटकर रास्ता बनाया, जहाँ पत्थरों को ना काट सकी वहाँ धारा की दिशा बदल दी।
अपने रास्ते मे आने वाले हर निर्जीव और और सजीव को नए जीवन और उमंग से भर डाला मैंने
तब कहीं जाकर पहुँची अपने सागर तकतुम सोचते हो कमरे में आराम फरमाते हुए सफलता खुद पहुंचेगी तुम तक।
रे मानव, प्रकृति से सीख जीवन, प्रकृति से सीख देना।
मेरी दुर्दशा का कारण भी तुम्हारा आलस ही है।
रिसायकल तुम्हे करना नहीं है, री यूज तुम्हें करना नहीं है।
बस थैले में भरो और डाल दो मेरे आँचल में, मैं माँ हूँ तुम्हारी मेरे साथ ये बर्ताव क्यों ? मैं तो जीवन का पाठ पढ़ाती हूँ और तुम मेरे जीवन को बदबू और कीचड़ से भर डालते हो।
सम्भल जाओ अभी भी, अन्यथा माँ के जाने के बाद केवल एक परिवार सूना होता है मेरे जाने से पीढ़ियां सूनी हो जाएंगी।