मैं कहां बलवान
मैं कहां बलवान
घर में शादी का माहौल था। दुल्हा तैयार हो रहा था। बैण्ड बाजा सब तैयार था बस इंतजार था तो पहलवान ढोलवाले का। आस पास के सभी गांव मे उसके ढोल के बगैर कोई बारात नही निकलती थी वो बजाता ही ऐसा ढोल था कि जिसे नाचना ना आये वह भी नाचने लगता था। क्या बोलियां , क्या टपपे सभी तो उसके ढोल पर ऐसे उठते थे कि गांव से बारात भी निकल रही होती तो और घरों के लोग भी बारात के साथ हो लेते थे कि चलों थोड़ी देर और पहलवान के ढोल की थाप पर नाच लें गे। बच्चों मे तो वो बहुत प्रसिद्ध था। सुना था वह बच्चों को बहुत प्यार करता था ब्याह शादी मे जितना मिलता था सारा अपनी बस्ती के बच्चों पर खर्च कर देता था।
मै भी तैयार हो रहा था बारात मे जाने के लिए। सब से ज्यादा उत्सुक तो मैं पहलवान ढोल वाले को देखने का था। सुबह से उसकी तारीफ सुन रहा था। "अरे पहलवान ना आया। भाई उसके बगैर बारात मे क्या रौनक। बुलाओ भयी उसे जल्दी बुलाओ। "चारों तरफ से यही आवाजें आ रही थी। मेरे दिमाग मे उस ढोल वाले की छवि बहुत बढ़िया बन गयी थी। एक हट्टा कट्टा मांसल वजनी इंसान ,ये लम्बी लम्बी गालों पर गोल घुमावदार मूंछें, थोड़ा बढ़ा हुआ पेट ,जिस पर ढोल रखकर वो बजाता होगा। जिससे जो उसने ढीला ढाला कुर्ता पहना होगा वो ढोल बजाते समय लहरा रहा होगा। मैंने अकसर किसी पहलवान को ऐसे ही देखा था। जो अखाड़े मे पहलवानी करते थे।
तभी मेरे बुआ जी का छोटा लड़का आया और मेरे से बोला "भैया। मेरे साथ चलोगे। आप को गाड़ी चलानी आती है यहीं पास के गांव जाना है। "
मैंने पूछा,"किसी रिश्तेदार को लाना है क्या?"क्यों कि मै पहलवान ढोल वाले को देखने का लुत्फ खोना नही चाहता था।
वह बोला,"अरे भैया वो पहलवान ढोल वाले को लाना है। बाराती मे कोई बाराती जाने को राजी नही है कहते है बैण्ड बाजे का क्या है। असली मजा तो पहलवान ढोलवाले के ढोल पर थिरकना है। वो वहां से लटकता हुआ आयेगा बसों में धक्के खाता। पापा सोच रहे है जा कर गाड़ी मे ही ले आते है। वरना बारात लेट हो जाएगी। "
"क्या पहलवान ढोल वाले को लाना है फिर तो चलो। " यह कहकर मै गाड़ी की चाबी ढूढने लगा। यह मौका मै हाथ से थोडे ही जाने देता। इस बहाने मुझे उसके विषय मे ओर भी कुछ जानने को मिल जाए गा। हम थोड़ी ही देर मे गाड़ी के पास थे। गाड़ी मै ड्राइव कर रहा था। मैने बात का सिलसिला शुरू किया। मैने चीनू से(बुआ जी का छोटा लड़का) पूछा ,"क्या ये सही मे पहलवान है क्या ?"
चीनू बोला,"अरे कहाये का पहलवान। पहले करता था पहलवानी जब छोटा था। मां बाप का इकलौता बेटा था। मां खूब भर भर कर दूध के कढे हुए गिलास पिलाती थी। काजू बादाम तो ऐसे खाता था जैसे मूंगफली। पर जब से इसकी पत्नी की मृत्यु हुई है। ओर इकलौता बेटा एक्सीडेंट मे मारा गया है तब से भामरा हो गया है कभी कभी तो बारात मे जो शगुन के पैसे मिलते है उन्हें बच्चों मे उड़ा देता है। कभी मंदिर मे दान दे आता है। रोटी की इसे कोई कमी है नही ये जिसके दरवाजे जा कर ढोल बजा दे वो ही इसे एक टाइम का खाना दे देता है। कोई है ही नही इसका जो इसके लिए रोटी बनाये।
ऐसे ही बात करते करते हम उसके घर तक पहुंच गये। घर अंदर बहुत ही तंग गलियों मे था। चीनू मुझे बैठाकर स्वयं उसे लेने चला गया। थोड़ी देर मे ही मैने उसे आते देखा।
पहलवान नाम उसे शोभा नही दे रहा था वो नाम उसके लिए मजाक लग रहा था। शरीर के नाम पर हड्डियों का ढांचा था जिसपर खींच तान कर मांस चढ़ाया गया था। मुंह पोपला था बोलता था तो फूंक निकल जाती थी। पैरों के नाम पर दो बांस हो और उन्हें कपड़े पहनाकर खड़ा कर दिया हो। वह आकर गाड़ी मे बैठ गया और मुझे देखकर बोला,"राम राम साहब जी। "
मैंने उसे कहा,"और भाई कहां के पहलवान हो। "
वो बोला ,"मै कहां पहलवान हूं साहब। वो तो बचपन का ही पड़ा हुआ नाम है। " इसी तरह इधर उधर की बातें करते हुए हम शादी वाले घर मे आ गये। जैसे ही पहलवान ढोल वाला गाड़ी से उतरा। बच्चों ने भाग कर उसे गले लगाया। सब ओर यही आवाजें आ रही थी ,"आ गया तू,ददू आ गये आप ,भाई बड़ी देर कर दी। तेरी ही बांट मे बैठे है सभी।
उसने भी बिना देर किये अपना ढोल उठाया। जो उसकी कमर को झुका देता था। और लगा थाप पर थाप देने। पहलवान ढोल वाले ने समां ही बांध दिया। सारे बच्चे मंत्र मुग्ध हो कर नाच रहे थे। तभी अंदर से औरतें तैयार होकर निकल आयी बारात सज चुकी थी। आगे आगे पहलवान का ढोल फिर बैंड बाजा,फिर दुल्हे की घोड़ी। मै देख रहा था बहुत से लोग अपने बच्चों की नजर उतार कर उसे दे रहे थे वो उसे एक थैली मे इकठ्ठा कर रहा था। मन पापी होता है मै भी सोचने लगा काहे का दातार है ये। सारे पैसे तो थैली मे रख रहा है।
इसी तरह बारात लड़की वालों के यहां पहुंच गयी। मैं भी बाराती बना लड़की वालों के स्वागत का मजा ले रहा था थोड़ी देर के लिए मै पहलवान को भूल गया था। थोड़ी देर बाद जब मुझे सिगरेट की तलब लगी तो मै बारात घर के बाहर सिगरेट पीने आया तो क्या देखता हूं जो पैसा उसे शगुन का मिला था उससे किराने की दुकान से सामान खरीद रहा था। मैंने ऐसे ही पूछ लिया ,"क्यों चचा घर के लिए राशन ले जा रहे हो। लगता हे मोटा माल मिला है। "
वो बोला,"बेटा ले तो राशन ही जा रहा हूं पर अपने लिए नही बस्ती मे दो चार घरों का वजन अपने कंधे पर ले रखा है उनके यहां कोई कमाने वाला नही बस उन्हीं के लिए ले जा रहा हूं जो मेरे से बन पड़ता है। "
यह कह कर वो राशन के थैले उठा कर चल दिया। मैं उसे जाते हुए देख रहा था और सोच रहा था। ये अपने आप को बलवान नही कहता अरे इससे ज्यादा तो बलशाली कोई है ही नही यहां अपने परिवार का बोझ उठाने मे हालत खराब हो जाती है और यह इस ज़माने में चार परिवार पाल रहा है वो भी ढोल बजा कर। मेरे कानों मे उसकी ढोल की थाप अब भी सुनाई दे रही थी।
"डम तडाक डम डम डिगा डमडम"