मैं भी किसी का क्रश था - 2
मैं भी किसी का क्रश था - 2
वो उनका,मेरे क्लास में प्रवेश का पहला दिन, मानो एक अजीब सी हलचल और कशमकश में गुज़रा कोचिंग का वो दिन। नज़रें तो ब्लैक बोर्ड पे थीं पर दिल बारबार एक झलक पाने को कहता,
तोड़ सारी शर्म-हया की बाधाओं को पीछे मुड़ जाने को कहता पता था ऐसा कुछ नहीं हो
सकता फिर भी दिल अरमान बनाए रखता।और उस दिन तो हद ही हो गई 45 मिनट की रसायन विज्ञान की क्लास मानो घंटों से चल रही हो और फिर अचानक से सर ने मेरी तरफ चाक का टुकड़ा फेकते हुए पूछे P ब्लॉक ग्रुप 17 को और किस नाम से बुलाते हैं, कुछ क्षण रुक के मैं बोला हैलोजन फिर सर ने पूछा हैलोजन ग्रुप में कितने एलेमनेट्स पाए जाते हैं सबका नाम बताओ ? 5 बोलते ही सबका नाम बता पाया ही था कि 5 वें पे अटक गया, क्योंकि आज भी मैं उसका उच्चारण(अस्टिन्न,अस्टेटिन्न,..?) सही से नहीं कर पाता।अनुभव मानो जैसे कई घंटों के बंदिश के बाद की आजादी के जैसा महसूस हुआ क्लास समाप्त होते ही, मैं एक लम्बी सी सांस लेते हुए संध्या से बात करने के बहाने पीछे मुड़ा ही था कि वो मेरा उनसे पहला रूबरू था। वो हाथ बढ़ाते हुए बोला "हलो दिस इस पूजा" . लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं था,हड़बड़ी में मैं हाथ तो बढ़ाया पर वो उनके हाथ में मिलने के बजाय टेबल से जा टकरायाउसी पल दो भाव एक साथ मुझे असमंजस में डाल दिए, पहला जो मीठा सा सुखद और दूसरा दर्द में तड़पता मेरा हाथबड़ी मुश्किल से दूसरे भाव को छुपा दर्द में मुस्कुरा कर हाथ जोड़ कर बोला "मैं अभिषेक।" जभी पूजा और बाकी मित्रों ने पूछा "लगी तो नहीं"खुद से झूठ बोल, बोला "अरे नहीं मर्द को दर्द नहीं होता(अमिताभ बच्चन जी की आवाज़ में करने का प्रयास)। मेरी वाक्य प्रस्तुति पसंद आयी या नहीं पर सबने मुस्कुराया। फिर हम क्लास से बाहर आए, और मैं साइकिल से और वो पैदल सिग्मा कोचिंग से ऐलवल रोड की तरफ बढ़ गए,मैं पूरे रास्ते इस मलाल में चलता चला गया कि काश की हाथ मिला लिया होता तो उनकी ख़ुशबू का कुछ हिस्सा मेरे साथ रह जाता।घर पहुंच के पूरा दिन मैं यही सोचता कि जल्दी से सुबह हो जाए और फिर उनसे मिल गुफ्तगू करने का मौका मिल जाए,जैसे तैसे दिन तो कटा पर रातों ने अंगड़ाइयों से मेरी परीक्षा ली,उस सुबह पूरी रात चैन से न सोने के बाद भी सर्द के मौसम में प्रातः काल नींद खुल गयी मानों जैसे दिल
से ज़्यादा बेचैनी उनको देखने की आँखों को थी।