मैं और मेरी सहेली
मैं और मेरी सहेली
बहुत ही दिन हो गए बात किए हुए चलो आज कर ही लेते हैं, वैसे माहौल भी ठीक नहीं है उनके यहां का फिर फ़र्ज़ भी तो बनता है बात करने का
जायजा लेने का..
वो= हेलो
मैं = हां हेलो
वो= हां बोल कैसी है
मैं= ठीक हूं तू बता
वो= मैं भी ठीक हूं और क्या कर रही है आजकल
मैं= कुछ नहीं यही घर का काम दिन भर और वही न्यूज़। तू बता तेरे शहर का मौसम कैसा है
वो= ठीक है थोड़ा बहुत गमगीन है और सुना है 44 लोग शहीद हो गए हैं। हां कैसा है वहां का हाल भारत का।
मैं= कुछ नहीं बस कई बेवाओं की मांग उजड़ी है कई हाथों की चूड़ियां टूट गई है, सैकड़ों कोख उजड़ गई है, सैकड़ों की दुनिया उजड़ गई है।
सैकड़ों बच्चे अनाथ हो गए हैं कई मां-बाप का सहारा छूट गया है। पत्थर दिल दहल गया है, और कुछ नहीं हुआ बाकी सब ठीक है।
वो= तो तू इतनी दुखी क्यों हो रही है 'तेरा क्या गया है। जो हुआ देश में हुआ है तेरे घर में नहीं ' समझी
मै= हां मेरा क्या गया है कुछ भी नहीं सही कहा मेरे बाप का क्या जाता है। लेकिन यह जो गया है मेरे मां बाप के लिए मेरे लिए ही गया ह और ये देश हमारे होने से हैं।
रेगिस्तान के लिए माली नही
गुलशन के लिए बाग़बान रखा जाता है।
बाग़ का हर फूल। हर पत्ती। बांग़बाँ के होने से
सलामत है। फिर चाहे वह किसी भी वृक्ष का
क्यों ना हो।
और ये शहीद हिंदुस्तान ए बाग़बाँ हैं।
हैल्लो कुछ बोलो आवाज़ नहीं आ रही है क्या(कॉल डिसकनेक्ट )
शर्मिंदा करने के लिए एक शब्द ही काफी है चीखना चिल्लाना। नारे लगाना ज़रूरी नहीं।
(संवेदनहीन समाज )