भाविक भावी

Crime

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भाविक भावी

Crime

मासूमों की हार

मासूमों की हार

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मैं हमेशा से ही उन बातों से दूर रहना चाहता हूँ जो मेरे हृदय को पीड़ा पहुँचाती हो। लेकिन फिर आज एक अजीब सी घटना सामने आ ही गई। जीवन उन हसीं पलों का संगम है जिसे हर कोई आनंद से जीना चाहता है। लोग उसे जीते भी है लेकिन जीते-जीते सब कुछ हार भी जाते है। सोहन अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण कम उम्र में ही मजदूरी करने लगा। पहले घर पर ही थोड़ी बहुत खेती और गाँव में छोटा-मोटा काम करता था। पर जैसे-जैसे घर में जरूरतें बढ़ती गई वैसे-वैसे पैसों की तंगी आने लगी। तब वह गाँव छोड़ शहर जाकर मजदूरी करने लगा। कुछ वर्षों तक यही सिलसिला चलता रहा। अब उम्र ब्याह की हुई। परिवार वालों ने लड़की देखनी शुरू की। एक लड़की परिवार वालों और सोहन को पसंद आई। फिर बात आगे बढ़ी और राधा-सोहन का ब्याह हुआ। परिवार में सब खुश थे। दोनों में इतनी अच्छी जमती कि पति जो कहता पत्नी कर देती और पत्नी जो कहती पति कर देता। दोनों अपना जीवन-संसार सुख से बिताते। पति शहर में कमाने जाता और त्योहारों पर घर लौटता। समय धीरे-धीरे बीतता रहा। सास-बहू में टकराव शुरू हुआ। बेचारा बेटा माँ को कुछ न बोल पाये और पत्नी को बोल अपने में लड़ाई लाए। ऐसे करते-करते दिन, महीनों में बीते और महीने, वर्षों में। घर में एक लड़की और दूजा लड़का भी आ गया फिर भी कुछ न बदला। कुछ न बदलने के कारण रिश्ते बदलने लगे। टकराव इतना हुआ कि एक परिवार की लड़ाई दो परिवारों में आ पहुँची। अंततः दोनों के रिश्तों की गांठ पल भर में टूट गई। बेचारे मासूम बच्चे किसी एक को ही पा सकते थे। पिता के पास जाए तो माता को खोए और माता के पास जाए तो पिता को। 3-4 वर्ष के मासूम बच्चे इस बात को क्या समझ पाते। अंततः बुजुर्गों के निर्णय के अनुसार बच्चे पिता की जिम्मेदारी हुए। दोनों अलग हुए, राधा मायके चली और सोहन, बच्चों को माँ-पिताजी के पास सौंप पुनः कमाने शहर चला। दोनों को अलग हुए 6 माह बीत गए। राधा के माँ-बाप ने दूसरा लड़का देख राधा का नाता विवाह करा दिया। सोहन जब घर आया तो उसके भी परिवार वालों ने लड़की देखकर नाता विवाह कराया। सोहन और शांति गठजोड़ में बंधे। एक रिश्ते की गांठ खुलने के बाद फिर से दूसरे रिश्ते की गांठ बँधी। पुराना समय फिर से नये दौर में आ पहुँचा। सोहन घर पर ही रहना चाहता था पर क्या करें, परिवार का पेट भरने की खातिर कमाना भी तो जरूरी था। इसलिए वह घर छोड़ पुनः शहर कमाने निकल पड़ा।

सौतेली माँ शांति अच्छी थी इसलिए वह बच्चों को प्यार से रखती। कुछ समय बाद सास-बहू में नोकझोंक शुरू हुई। सोहन फिर परेशान रहने लगा। तीन वर्ष के बाद भी शांति का बच्चा नहीं था इस बात से वह अलग से परेशान थी। एक दिन सास-बहू में बच्चों को लेकर जोरदार तकरार हो गई। तब शांति ने बदला लेने की ठानी। जब सास-ससुर घर पर नहीं थे तब उसने दोनों बच्चों की गुपचुप तरीके से तालाब में डुबोकर हत्या कर दी और वह चुप-चाप घर लौट आई तथा जानबूझकर स्वयं को घर के कामों में व्यस्त कर लिया मानो ऐसा लगे कि वह कभी से ही घर पर काम कर रही हो। जब सास-ससुर घर आये तो बच्चों को घर पर नहीं पाया। तब बहू से पूछा किंतु उसने मना कर दिया। सारे गाँव में खोजबीन शुरू हुई। गाँव का चप्पा-चप्पा छान मारा पर दोनों कहीं नहीं मिले। अन्ततः गाँव के किसी आदमी से खबर मिली कि तालाब के किनारे में दो बच्चे पड़े हुए है। सभी तालाब पर पहुँचे। उन्होंने देखा कि तालाब में डूबने से दोनों बच्चों की मौत हो गई। शांति ने चालाकी से उसे एक घटना का नाम दे दिया। सोहन को जब बच्चों के डूबने की बात पता लगी तो वह भागा-भागा आया। यह सूचना राधा और उसके परिवार तक भी पहुँचाई गई पर पल भर के लिए भी उनका दिल पसीजा नहीं। जिसने 9-9 महीने पेट में पालकर जन्म दिया उसकी भी आँखें पल भर के लिए नम न हुई। मानो वे उसके कुछ थे ही नहीं। कुछ दिन बीते, महीने बीते। स्थिति सामान्य हुई। झूठ के पांव नहीं होते, ऐसा ही वाकया घटा। शांति उस घटना को अंजाम देने के बाद अब मन ही मन पछता रही थी। यह बात उसे रात को सोने नहीं दे रही थी। वह सोच-सोचकर पागल जैसी हो गई थी। आखिर परेशान होकर उसने आखिर सोहन से यह बात कह दी। सोहन उस पर बहुत भड़का। ऐसी गलती माफी के लायक नहीं थी जो वह उसे माफ कर देता। आखिर सोहन ने शांति को पुलिस के हवाले कर दिया और आज वह जेल में बैठी-बैठी पछता रही है कि जल्दबाज़ी में ऐसा कदम कैसे उठा लिया? राधा और शांति आनंद से जीवन जी रही थी पर जीते-जीते सब कुछ हार गई।


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