मानवता
मानवता
निशा एक सुलझी हुई सुशील ग्रहणी थी पति के मरने के बाद कपड़ों की छोटी सी दुकान चलाती थी। दो बच्चे थे दोनों अच्छे स्कूलों में पढ़ते थे। कम उम्र में पति को खोने के बाद पूरा ध्यान अपने दुकान पर ही लगाती थी। अच्छी जगह पर दुकान होने के कारण कपड़े बहुत बिकते भी थे। अच्छी आय भी हो जाती थी जिससे दोनों बच्चों के स्कूल का खर्चा और 3 स्टाफ को वेतन देने में कोई परेशानी नहीं होती थी। जीवन यापन अच्छी तरह से चल रहा था। अचानक लॉकडाउन में सब कुछ अस्त-व्यस्त कर दिया था। निशा चिंतित थी कि अपना खर्च तो चल ही जाता है, लेकिन 3 स्टाफ को वेतन देने में उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि कपड़ों की बिक्री बंद ही हो गई थी इस लॉकडाउन के कारण अतः उसने तीनों स्टाफ को बुलाकर कहा कि मैं एक ही स्टाफ रखूंगी लॉकडाउन के बाद अतः 2 को निकालना मेरी मजबूरी है। यह सुनकर तीनों के होश उड़ गए लेकिन क्या किया जा सकता है होने को यही होना था 2 दिन बीत गए थे यह सोचते हुए उसने यह नहीं बताया था कि कौन से दो स्टाफ को निकालें अतः तीनों स्टाफ सोच में पड़ गए वे सोच रहे थे सभी की स्थिति अच्छी नहीं है तीनों स्टाफ में आपसी प्रेम और भाईचारा था अतः तीनों ने निशा को कहा की मालकिन हम सभी बहुत गरीब हैं कोई नौकरी छोड़ना नहीं चाहता है अतः आप की स्थिति अगर एक ही स्टाफ को वेतन देने की बात है तो हम लोगों ने विचार किया है एक ही वेतन से हम तीनों थोड़ा थोड़ा गुजारा कर लेंगे कृपया हमें नौकरी से ना निकाले। निशा अचंभित थी रात भर सोचती रही मानवता अभी तक पृथ्वी पर मरी नहीं है।
