मांगलिक दोष
मांगलिक दोष
आस्था, अपने माँ -बाप की इकलौती संतान थी। वह पीएच.डी. करके डिग्री कॉलेज में लेक्चरर के पद पर कार्यरत थी। उसके माता-पिता उसके लिए लड़का देखने में लगे थे पर मांगलिक दोष होने की वजह से आस्था की बात कही बन ही नहीं पा रही थी। इसी तरह उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी और यही उसके माता-पिता की चिंता का कारण बनता जा रहा था। आस्था उन्हें समझाती थी कि मेरी ज़िंदगी का उद्देश्य शादी करना नहीं है। मैं तो आपके साथ ही अपना जीवन बिताना चाहती हूं। पता नहीं किसने शादी का रिवाज बना दिया जो लड़की को अपना घर छोड़कर दूसरे घर जाना पड़ता है और फिर अपने माँ -बाप से दूर रहना पड़ता है। उसके माता-पिता उसे समझाते कि यही समाज का दस्तूर है। फिर हमारी उम्र भी बढ़ती जा रही है। हमारे बाद तू किसके सहारे जियेगी? हम जीते जी तुझे अच्छे हाथों में सौंप दें तो हमारी चिंता भी दूर हो।
एक दिन आस्था की मम्मी पहुंचे हुए पंडित जी के पास आस्था को लेकर पहुंची और उसकी शादी में आने वाली अड़चन को दूर करने के लिए उनसे उपाय पूछने लगीं। पंडित जी ने उसकी जन्मपत्री देखकर बताया कि इसे मांगलिक दोष है। मांगलिक दोष से पीड़ित लड़के/ लड़की का गैर मांगलिक लड़के/ लड़की से अगर विवाह हो जाता है तो किसी एक की मृत्यु हो जाती है। इस दोष के निवारण के लिए आप इसकी किसी जानवर जैसे कुत्ते या भैंस या किसी पेड़ से शादी कर दें तो फिर इसकी शादी किसी और से आराम से की जा सकती है, तब मांगलिक होने का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। पंडित जी की बात सुनकर आस्था बोली "पता नहीं हमारे देश में कैसे-कैसे रिवाज है और लोगों के बढ़ावा देने पर इनका अस्तित्व भी बना हुआ है। पर आप इस बात को समझ लें कि चाहे मेरी शादी हो या ना हो पर मैं इस तरह के रिवाज को मानने के लिए कतई तैयार नहीं हूं", और ऐसा कहकर वह वहां से उठकर चल दी। उसके माता-पिता भी आस्था को गुस्से में देखकर पंडित जी से माफ़ी माँगते हुए उसके पीछे चल दिए। पंडित जी उन लोगों को जाता हुआ देखकर मन मसोसकर रह गए क्योंकि उनके कमाने, खाने के अरमान अधूरे जो रह गए थे।