मां तुझे सलाम
मां तुझे सलाम


दफ्तर में जाता हूं,
पर मेरी सारी तय्यारी वो करती है
रोटी मुझे ज़्यादा खिला
कर भूखी वो खुद रहती है।
हमारी ज़िन्दगी की दौड़ में वो खुद
को कहीं पीछे ही चोड चुकी है।
ज़िन्दगी की सीख में वो खुद
निस्वार्थ होकर हमें स्वार्थी होना सिखाती है।
मां आजतक इतना कुछ लिखा,
क्यूं तूने कभी नहीं कहां के
कभी मेरे बारे में भी लिखदे।
आज ना कलम थमसी गई है,
जरा सोचने पर रोंगटे खड़े हो चुके है,
मां मै क्या लिखूं तेरे बारे में,
जबकि में खुद तेरी लिखी लिखावट हूं।
वो मेरी आंखो से नदियाँ बहना
शुरू हो गया है तेरे निस्वार्थ प्रेम को याद कर।
मां तू क्यूं इसी है, माई तू कैसे ऐसी हो सकती है,
मां वो उंगली पकड़ कर यह भी सिखादे।