मां शब्दों में कहां समाएगी
मां शब्दों में कहां समाएगी


जब नहीं थे जन्मे, सूरज और चांदजब नहीं थे,
धरती और आकाश
ना दिन था, ना ही और निशा
ना घोर कालिमा, और प्रकाश...
फिर शक्ति के अंतर्मन में, ममता की दीप जली होगी,
गाथा सृष्टि की रचना की, एक मां ही तुम्हें बताएगी...
( मां शब्दों में कहां समाएगी )...
जिसने रच डाला, परम ब्रम्ह
जिसने ब्रम्हांड, रचा होगा
रचे होंगे, सब नवग्रह
फिर सार्वभौम, बना होगा
छाती की अमृत से तेरी, प्रकृति हरी भई होगी,
वर्णन तेरी जननी ऐ माता, हर युग में गाई जाएगी...
( मां शब्दों में कहां समाएगी )...
तू उदगम है, हर जीवन की
तू ही इसकी, एकल अनंत
तू दुर्भिक्ष कटु सत्य, पतझड़
तू नव प्रवर्तन, ऋतुराज वसंत
क्षितिज जल अग्नि वायु अंबर, सबमें तेरी छाया होगी,
महिमा असीम तेरी कीर्ति की, असंख्य योनि दोहराएगी...
( मां शब्दों में कहां समाएगी )...
एक शब्द ने बांधा है, जग को
एक शब्द से सबकी, सांस चले
एक शब्द ही है बस, अजर अमर
एक शब्द से सबको, मोक्ष मिले
वो शब्द है मां यशोदा में, वो शब्द है मरियम के अंदर,
वो शब्द ही आनेवाले युग को, सत्यपथ सन्मार्ग दिखाएगी।