माँ को तो मीठा पसंद नहीं

माँ को तो मीठा पसंद नहीं

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कितने दिनों से बोल रही हूँ माँ

," गाजर का हलवा "

बना दे । जानती है न, मुझे कितना पसंद है । फिर भी नहीं बनाती। अभी बिट्टू ने बोला होता तो झट से बना देती।

माँ

" मैं क्या तुम दोनों भाई बहन मे फर्क करतीं हूँ ? जो वो बोलेगा तभी बनाती।"

दो दिनों से सीधे हाथ में बड़ा दर्द है री, घर का जरूरी काम भी बड़ी मुश्किल से ही कर पा रहीं हूँ , ऐसे में हलवे के लिए गाजर कैसे घिसुं, तू बता ?। हाँ अगर तू गाजर घिसने ले लिए तैयार हैं, तो मैं बना दूंगी हलवा।

अच्छा चलो ठीक है मैं घिस दूंगी। माँ ने लाडो को गाजर घिसने के लिए दिए। अरे! ये क्या माँ इतना सारा पूरे मोहल्ले वालों के लिए हलवा बनाएगी क्या?

ज्यादा कहाँ है ? इतना ही तो हर बार बनाती हूँ । तुम लोग खाने के शौक़ीन भी तो हो । तू और बिट्टू ही मिलकर आधा खत्म कर दोगे। फिर क्या तुम्हारे पापा को न दूं, हलवा ? और तुम्हारी दादी, उन्हें तो वैसे भी शक रहता है। कि मै अकेले ही सब चट कर जाती हूँ । अभी जैसे ही हलवे की महक आयेगी तुरंत बोलेंगी, क्या बना रही है री कमला मुझे नहीं देगी?

मैंने हँसते कहा

" वैसे सच में तुम्हारी और दादी की ये नोक झोंक में मुझे बड़ा मजा आता है "। …….....

माँ

" शादी होने दे, अपनी सास से लेना मज़े "।हाँ तो लूंगी न ! तुम्हारी तरफ थोड़े न पीठ पीछे बड़बड़ाऊंगी। सामने से बात करूंगी।"

माँ ने मुस्कुरा कर कहा

" देखूंगी आने दें समय".......

"अच्छा हो गया गाजर ? इतनी देर में तो मैं दो घरों के गाजर घिस आती।."......

"अच्छा मै बनाती हूँ , तू मेरी मदद कर थोड़ा "

फिर मैंने और माँ ने मिल कर आज गाजर का हलवा बनाया। और जैसा माँ ने कहा था खुशबू आते ही दादी बोल पड़ी

" क्या बना रही हैं री कमला?

" जा गरम गरम ही दे आ उन्हें, फिर तेरी दादी बोलेंगी मुँह जला दिया मेरा

" माँ ने मुँह बना कर बोला।

तू भी खा लें, आज तो तूने मेहनत भी बहुत की हैं। "

हाँ माँ लेकिन तेरे साथ हलवा बनाते बनाते ही मेरा मन भर सा गया है। वैसे तू बोलती है न"

" मेरा तो बनाने बनाने ही मन भर जाता है सच में ऐसा हो जाता है अब लग रहा है "।

मैं तो बाद में आराम से बैठ कर सुकून से मज़े लेकर खाऊंगी। चल माँ , थोड़ी देर आराम कर लेते हैं । तभी बुआ जी का फोन आ गया। वो शाम को परिवार के साथ खाने पर आ रही हैं। अरे वाह! बुआ आ रही है, मज़ा आयेगा। मज़े तो तेरे हैं मै चली शाम की तैयारी करने।

" मैं सोचने लगी माँ सच में कितना काम करती है सुबह से काम में ही लगी है थोड़ा भी आराम नहीं मिल पाता उसे " । मैं भी आती हूँ माँ , मदद कर देती हूँ ।

शाम को बुआ जी परिवार के साथ खाने पर अाई । सब ने खूब मन से खाना खाया । और खूब तारीफ की माँ के हाथ के खाने की, अब बारी आई मीठे की। तो मैं खुशी खुशी बोल उठी, आज मैंने हलवा बनाया हैं बुआ, बताओ कैसा बना हैं? अरे वाह ! मेरी लाडो ने बनाया है बहुत ही अच्छा बना हैं बहुत स्वाद हैं तेरे हाथों में। थोड़ा अपने फूफाजी को और दे । हा क्यों नहीं! और लीजिए न फूफाजी ।

" मुझे भी थोड़ा और दे दो न दीदी" बिट्टू भी बोल उठा। हा हा! तू भी ले। बुआ जी रात के खाने के बाद अपने घर चली गई और अब जा कर मैं सुकून से बैठी " ला माँ अब दे मुझे हलवा मज़े ले कर खाऊंगी " माँ ने ला कर दिया हलवा।

अरे! ये क्या हैं? सिर्फ दो चम्मच । माँ ने खा

" हाँ इतना ही बचा हैं "....

.अरे नहीं ! मैंने सुबह से इतना काम किया । इतना सारा गाजर घिसा और मुझे ये दे रही हो खाने के लिए। जाओ मैं नहीं खाऊंगी । अरे खा ले न बेटा अब क्या करूं ? तूने बनाया ही इतना अच्छा था सबने चट कर दिया ।"

" माँ मज़ाक न कर, मुझे नहीं खाना , ले जा इसे भी "

मै बड़बड़ा ही रही थी......

कि दादी बोल पड़ी खाले न फिर बना देगी कमला। नहीं ......."

.मुझे आज ही खाना था। तू अपनी माँ को देख, उसे तो चखने को भी नहीं मिला। तुम लोग तो पेट भर के खाना भी खा चुके हो।"

"उसको तो पनीर की सब्जी भी नहीं मिली। ऐसे ही खा कर उठ गई बेचारी।"

" लेकिन माँ को तो मीठा पसंद ही नहीं हैं " ।

" किसने कहा तुझे? मैं जानती हूँ उसे खूब पसंद हैं मीठा। तुम लोगो की फरमाइशें पूरी करने के चक्कर में हर बार अपना मन मार लेती हैं कमला। ये कह कर कि उसे तो मीठा पसंंद नहीं। तुझे तो पता ही है। उसके सीधे हाथ में कितना दर्द हैं फिर भी सुबह से काम में लगी है बेचारी । अब जा कर फुरसत मिली उसे, तो तू नखरे दिखा रहीं हैं। बेटियां तो अपनी माँ के मन की बात समझ जाती हैं । तो तू कैसी बेटी है री?"

मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ, और माँ से माफी मांगी फिर एक चम्मच हलवा माँ को खिलाया और एक चम्मच खुद खाया। माँ तो सच में उस एक चम्मच हलवे से ही खुश हो गई।

दूसरे दिन कॉलेज से आते ही..... ..जल्दी से इधर आ! लाडो........ और माँ ने मेरे मुँह में एक चम्मच हलवा भर दिया।

"अरे माँ ! ये कहाँ से आया ?"

" कहाँ से क्या आया, मैंने बनाया हैं।"

" आज फिर से ? लेकिन तेरे हाथों में तो दर्द है न ?"

" हा ! तो थोड़ा सा बनाया, बस मेरे और तेरे लिए। तो सच बता तुझे मीठा पसंद है न माँ ,माँ ने मुस्कुराकर" हाँ "कहा।

आज तो हम दोनों माँ बेटी मज़े से गाजर के हलवे की पार्टी करेगें । अच्छा तू बता, तेरी दादी को भी अपनी पार्टी में शामिल कर ले क्या? अरे वाह! कर लो माँ ..... चल फिर उन्हें भी हलवा खिला कर आते हैं।


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