माँ के आँसू
माँ के आँसू
मुझे आज भी वो दिन याद है, जब मैं कालेज जाने के लिए बस स्टाफ पर खड़े होकर कालेज की बस का इंतजार करती थी। एक दिन मैंने देखा कि जहाँ पर मैं खड़ी होती थी,वहीं पर एक पागल औरत अपने दो बच्चों के साथ बैठी रो रही है। लगातार उसकी आंँखों सेआँसू वह रहे हैऔर उसके बच्चे भूख से व्याकुल होकर मां की सूखी हड्डियों से लिपटे हुए है। उनकी हालत देखकर मैं भी रोने लगीऔर मैंने जल्दी से अपने बैग से टिफिन निकाल कर उन बच्चों को दिया और कुछ केले खरीद कर दिए। बच्चे तो केले और पराठें खाने लगे पर माँ ने कुछ नहीं खाया मैंने कहा तुम भी खा लो पर बिना कुछ कहे चुपचाप रोती रही।
उसके आँखों से बहते आँसू देेखकर मुझे समझ में आया कि एक मां का दर्द क्या होता है। भूूूख से तड़पते बच्चों को देखकर वह पागल थी।
पर एक मां थी और एक माँ होने का एहसास था उसे,पर क्या करती मजबूर थी अपने सेे और अपने भाग्य से लेकिन सबसे ज्यदा मजबूर थी। समाज के उन दरिन्दों से जिन्होंने एक पागल औरत को भी मां बनाकर रोने के लिए मजबूर कर दिया था।
