फूलों वाली चोटी
फूलों वाली चोटी
वक्त बदल रहा है, आज पाश्चात्य सभ्यता पूरी तरह से हावी हो गई या यूं कहे कि समय के साथ बदल रहें है। आज कटे बालों का प्रचलन है, चाहे स्कूल की बालिका हो या आफिस की मैम या फिर घर की बहू सभी कटे हुए बालों में स्मार्ट तो दिखती हैं पर अद्वितीय नहीं। आज मुझे माँँ के हाथ की बनीं दो फूलों
वाली चोटी याद गई। जब मैं छुटपन में स्कूल जाती थी, तो माँ नहलाकर नाश्ता कराके जैसे ही बालो में कँघा लगाती वैसे ही माँ बेटी की नोक झोक शुरू हो जाती थी।
मम्मी दो चोटी बनाकर तैयार करती थी और मैं अपनी दोनों चोटियों को मिलाकर देखती और नापती थी, अगर दोनों में से एक छोटी हुई तो रुठना और रोना शुरू कर देती थी। मम्मी जल्दी से खोलकर प्यार से बालोंं को संभालते हुए मुस्कारते हुए मीठी-मीठी बातें करते हुए स्कूल जाने के टाइम तक दो फूलों वाली चोटी बनाने में पास हो जाती थी।
सच में स्कूल टाइम में बनी वो दो फूलों वाली चोटी न केवल माँ और बेटी की समीपता और प्यार दर्शाती थी बल्कि छात्रा को आकर्षक बनातीं हुई विद्यालय
की पहचान और हमारे संस्कारों की शान हुआ करती थीं, दो फूलों वाली चोटी जो आज खुलकर बिखर गईं है।
