माँ का फ़र्ज़
माँ का फ़र्ज़
गाँव में चौराहे पर खचाखच भीड़ लगी थी। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो गया ? कैसे हो गया ? कुछ लोग सहमे थे, कुछ मन-ही-मन चिंतित, तो कुछ लोग सोच रहे थे, चलो अच्छा हुआ, भगवान का शायद यही फैसला था। और दुर्गा ! दुर्गा अपने घर के आँगन में चुपचाप एकटक देखे जा रही थी, अपने बेटे की लाश को, जिसका पंचनामा करने पुलिस जुटी थी। दुर्गा का छोटा बेटा और बहू एक ओर सहमे खड़े थे। पुलिस के सवालों से वे पसीने-पसीने हुए जा रहे थे। पुलिस दुर्गा से भी बयान लेना चाहती थी, पर वह मौन एकटक जाने कहाँ खोई थी। उसके मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे, अत: पुलिस ने लाश का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया।
दुर्गा के दो बेटे थे – दुखिया और सुखिया। पति भरी जवानी में ही दो बेटों को दुर्गा के साथ छोड़ स्वर्ग सिधार गया था। दुर्गा मेहनत-मजदूरी कर बच्चों का लालन-पालन करती रही। बच्चों को गाँव के स्कूल में पढ़ने भेजना शुरू किया, पर यथा नाम तथा गुण। सुखिया तो पढ़ाई में होशियार था, लेकिन बड़ा बेटा दुखिया पढ़ाई में मन ही नहीं लगाता था। साल दो साल स्कूल जाने के बाद जैसे-जैसे वह बड़ा होते गया, उसके दोस्तों की संख्या बढ़ती गई। वह स्कूल जाने का नाम ही नहीं लेता और आवारागर्दी करने लगा था। स्कूल मास्टर दुर्गा से शिकायत करते, पर दुर्गा के वश की बात नहीं रही कि वह बेटे को सुधार सके।
दुखिया का रास्ता बदलता गया। कई बार वह छोटी-मोटी चोरी में पकड़ा भी गया। अंतत: दुर्गा ने उसकी पढ़ाई छुड़वा दी और उसे उसके हाल पर छोड़ दी, पर जैसे आँखें बंद करने से आई बाढ़ कम नहीं होती, वैसे ही दुर्गा के लिए दुखिया मुसीबत बन गया। आये दिन उसकी हरकतों के किस्से सुन-सुन दुर्गा परेशान और दुखी रहने लगी। इसके विपरीत सुखिया शांत स्वभाव का समझदार और जिम्मेदार लड़का था। वह भी भाई को समझाने की कोशिश करता, पर सब व्यर्थ।
कभी-कभी दुखिया शराब के नशे में धुत गाँव की गलियों में हुल्लड़बाजी करता, दोस्तों के साथ मिलकर किसी लड़की पर ताने कसता या दादागिरी कर दुकानों में अपना धौंस जमाता। धीरे-धीरे गाँववालों पर वह हावी होने लगा। लोग उससे डरने लगे और वह आतंक का पर्याय हो गया। दुखिया गाँव से भी गायब रहने लगा। कहाँ जाता, क्या करता आदि सब बातें दुर्गा ने अब पूछना भी बंद कर दिया। वह जब भी आता नशे में धुत रहता, गाँव वाले उसे देखकर दरवाजा बंद कर लेते। लोग उसके रहते तक भयभीत रहते कि जाने कब, किसके साथ झगड़ा-बवाल मचा दे। पर माँ का हृदय तो नहीं मानता। दुखी और परेशान होने के बावजूद भी दुर्गा ने अपने बेटे के लिए कभी दरवाजा बंद नहीं किया। दुखी हृदय से ही सही वह अपने बच्चे के लिए द्वार खुला रखती। कुछ खाने को देती। दुखिया आकर माँ की गोद में सो जाता या बेहोश हो जाता और दुर्गा उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरती। आँसुओं का घूँट पीकर रह जाती। क्या यही सपना देखा था मैंने तेरे लिए, ऐसा सोच-सोचकर दुखी होती।
धीरे-धीरे वक़्त बीतता गया पर दुखिया के आदत-व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया। दिन-ब-दिन वह और बिगड़ता चला गया। दुर्गा भी बूढ़ी हो चली थी, अत: उसने अपने छोटे बेटे सुखिया की शादी कर दी। सुखिया इधर-उधर कुछ काम-धंधा कर अपनी पत्नी और बूढ़ी माँ का पोषण करने लगा। एक बार दुखिया कहीं बाहर से आया। उस दिन वह बहुत ख़ुश था। उसने शराब भी नहीं पी थी। अपने साथ वह एक मोटी रकम लेकर आया था जिसे दुर्गा को देते हुए बोला, “ले माँ, इसे रख ले और घर में जो भी चीज नहीं है वह तू अभी जाकर खरीद ला।”
दुर्गा अचंभित हो जाती है और कहती है, “इतना पैसा कहाँ से आया रे।”
दुखिया ने कहा, “माँ मैंने एक जगह नौकरी कर ली है।”
यह सुनकर माँ की ममता ख़ुश हो गई, बेटा कुछ सुधर रहा है, घर में पैसे भी देने लगा है।
दूसरे दिन दुखिया वापस हो गया और कुछ दिनों बाद पुन: लौट आया। दुर्गा ने देखा कि दुखिया कुछ गोली का सेवन कर रहा है।
वह पूछ बैठी, “तू यह कैसी दवाई खा रहा है बेटा। तेरी तबीयत तो ठीक है न !
दुखिया ने कहा, “कुछ नहीं माँ, बस थोड़ी सी कमजोरी है। डॉक्टर ने ताकत की गोली दी है।” दुर्गा कुछ पल रुककर बोली, “संभलकर रहा कर बेटा। बाहर जगह अपनी तबीयत का ध्यान रखा कर और उस मुए शराब को मुँह मत लगाना।”
दुर्गा को क्या पता था कि दुखिया शराब तो छोड़ दिया है पर वह नशीली दवाइयों का आदी हो चुका है और बूढ़ी-अनपढ़ माँ को धोखा दे रहा है।
अगली बार दुखिया फिर घर आया, तो उसके साथ कुछ व्यक्ति थे, जिन्हें दुखिया अपना सहकर्मी बताया और अपने यहाँ रात खाने-सोने की व्यवस्था कराया। सुखिया उस दिन घर में नहीं था, कहीं बाहर गया था, अत: दुर्गा ने अपना बिस्तर बहू के साथ लगा लिया और दुखिया अपने दोस्तों के साथ दूसरे कमरे में सो गया। आधी रात होने को आई तो दुर्गा की बहू की नींद खुल गई। वह पानी पीने जैसे ही उठी तो कुछ खुसुर-फुसुर की आवाज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया। वह दबे कदमों से उस कमरे की खिड़की तक आई जहाँ दुखिया दोस्तों के साथ था। उसने देखा, वे ताश की गड्डी सामने रख, धीर-धीरे कुछ बतिया रहे थे।
एक वाक्य सुनकर वह चौंक पड़ी। कोई कह रहा था, “एक सप्ताह के अंदर हमें यह काम हर हाल में करना होगा बुधिया, किसी भी तरह हमें वहाँ बम लगाना ही होगा, वरना बॉस का कहर हम पर बरसेगा।”
उसका जी जोरों से धक-धक करने लगा। वह वैसे ही चुपचाप आकर बिस्तर पर सो गई, पर उसकी आँखों से नींद कोसो दूर थी। वह अनजानी आशंका से बार-बार काँप उठती।
दूसरे दिन निर्धारित समय पर वे लोग चले गए। जब सुखिया घर आया, तो उसकी पत्नी ने उसे सभी बातें कह सुनाई। सुखिया सब सुनकर सन्न रह गया। वह समझ गया कि उसका भाई कुछ गलत लोगों के साथ मिलकर अवैध धंधा कर रहा है, पर इस बात की पुष्टि आवश्यक थी। वह अपनी ओर से उस पर नज़र रखने लगा।
अगली बार दुखिया जब फिर आया, तो सुखिया ने उसकी गैरहाज़िरी में उसके सामान की तलाशी ली, तो देखता है कि कुछ नक्सली साहित्य, कुछ नशे की गोलियाँ और दो-चार पिस्तौल एक बैग में रखी हैं। जिसे वह बड़े एहतियात से अपने एयर बैग में रखा था। अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी। वह सामानों को वैसा-का-वैसा ही रख दिया।
एक दिन सुखिया दुर्गा से बोला, “माँ अगर तुम्हें पता चले कि तुम्हारा बेटा नक्सली गिरोह में शामिल है या आतंकवादी हो गया है, तो तू क्या करेगी ?”
दुर्गा कहने लगी, “क्यों रे तू ऐसा क्यों पूछ रहा है, कहीं तू दुखिया के बारे में.... और वह आशंकित हो उठी।”
“नहीं माँ, मैंने तो यूँ ही पूछ लिया था।” सुखिया माँ की बात को टालने की कोशिश करने लगा, पर दुर्गा ने बेटे का झूठ पकड़ लिया, अत: वह कुरेद-कुरेदकर पूछने लगी और सुखिया को सब बताना पड़ा। सुनकर दुर्गा सन्न रह गई।
“तभी इतनी मोटी रकम लाता रहा वह और हमें पाप की कमाई खिलाता रहा।” ऐसा सोचकर वह मन ही मन क्रोधित होने लगी।
बोली, “बेटा तुम किसी से कुछ मत कहना, मैं उससे बात करूँगी।”
“अच्छा माँ” कहते हुए सुखिया चला गया।
दुर्गा जानती थी, आज दुखिया आने वाला है इसलिए वह रसोई में कुछ काम करने लगी। वह आज कुछ विशेष व्यंजन बनाने लगी, जो दुखिया को बचपन से ही पसंद था। दुखिया नियत समय पर घर पहुँचा।
दुर्गा ख़ुश होकर बोली, “बेटा तू आ गया।”
“हाँ माँ, ये लो कुछ पैसे हैं, सुखिया और बहू को दे देना, ज़रूरत की वस्तुएँ ले आएँगे।”
“वो तो ठीक है बेटा, चल तू पहले हाथ-मुँह धो ले, खाना खा ले। आज बड़ा शुभ दिन आया है।”
“क्यों आज कोई विशेष बात है माँ ?”
“हाँ बेटा, आज तेरा जन्मदिन है।”
दुखिया कहने लगा, “क्या आज मेरा जन्मदिन है ! अच्छा माँ, पर तू ने कभी बताया नहीं ?”
“परिस्थितियाँ ही ऐसी थीं बेटा। पर अब तू बड़ा हो गया है, कमाने लगा है, सोचा जन्मदिन में तेरी पसंद का पकवान बना लूँ।” ऐसा कहते हुए दुर्गा खीर-पुड़ी, पकौड़े आदि ले आई।
दुखिया हाथ-मुँह धोकर, गोली खाकर भोजन करने बैठ गया। दुखिया बड़ा मगन होकर खाने लगा। खाना खाकर दुखिया दुर्गा की गोदी में सिर रखकर सो गया । उसे थोड़ी ही देर में नींद आ गई। दुर्गा उसके बालों को सहलाती रही। उसके आँसू टप-टप बह रहे थे। आज उसने सचमुच एक माँ का फ़र्ज़ अदा किया था। दुखिया सोया था, हमेशा के लिए !
बाद में पुलिस छानबीन में पता चला कि दुखिया नक्सलवादी संगठन में शामिल हो गया था और नशीली दवाइयों का धंधा भी करता था।
उस दिन दुर्गा, माँ काली की मूर्ति के आगे सिर झुका दीप जलाकर प्रार्थना कर रही थी, “माँ मुझे क्षमा करना, अपने ही घर का चिराग बुझाया है मैंने, ताकि हज़ारों घरों के चिराग जगमगाते रहें। माँ उसकी आत्मा को शांति देना।”
और वह फूट-फूटकर रो पड़ी।