Sushma Parakh

Inspirational Others

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Sushma Parakh

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माँ — अर्थ

माँ — अर्थ

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माँ…..शब्द ही संसार का सार हैं क्योंकि ये ममता का भंडार हैं, जितना प्यार एक माँ अपने बच्चों को दे सकती हैं कोई नहीं दे सकता, पर क्या माँ सिर्फ माँ बनकर ही माँ बन सकती हैं ममता लूटा सकती हैं क्यों इतना सीमित दायरा इतने बड़े शब्द का क्यों???????

क्या एक भुआ एक मासी हर नारी जो की बच्चे के कुछ रिश्ते में हैं वो माँ वाला प्यार नहीं लूटा सकती क्यों ये बंधन क्यों ये बेमतलब का ज्ञान क्यों क्यों क्यों ???????

आज अपने पति अपने बच्चे सर्वोपरि…..यदि इनमें चूक हुई तो तुम सही नहीं….कितनी संकुचित मानसिकता ….क्यों नहीं परिवार में इतना प्रेम होता 

की मैं नही तो तुम माँ सी …तुम नहीं तो मैं माँ सी ….क्यों रिश्ता जीवन के साथ साथ ही क्यों मरने के बाद कोई ज़िम्मेदारी नहीं अपनों की ……????

क्या वो नन्हे जान जो की अभी अभी कदम रखे हैं इस धरती पर उनको प्यार का आँचल देने अपने आगे नहीं आएँगे ….नहीं उठाएँगे कोई कदम …अगर उठायें तो ग़लत ??????

हाँ अपने बच्चों का भविष्य भी तो देखना हैं उनको टाइम नहीं देने से उनका भविष्य का क्या होगा ??? ये ज्ञान देने वाले बेहद बेहद स्वार्थी इंसान होते हैं जो रिश्ते सिर्फ़ और सिर्फ़ औपचारिकता वश निभाते हैं ..ममता तो इनके होती ही नहीं क्योंकि ममता कभी बंधन में नहीं होती वो अपने हर उस बच्चे पर ज़्यादा लुटाई जाएँगी जिसको समय के हिसाब से ज़्यादा ज़रूरत हैं वो ममता भुआ, मासी सब लूटा सकती हैं बशर्ते अपना और पराया जैसे तुच्छ भावों रहित हो …..

आज की नारी वास्तविक रूप से माँ का स्वरूप हैं ही नहीं ….क्योंकि सिर्फ़ अपने अपने बारे में सोचना तो ममता का रूप ही नहीं, ममता तो हर बच्चे पर प्यार लुटाती हैं तभी तो जन्म देवकी दे माँ यशोदा कहलाती हैं …..

पन्ना का किरदार तो जीवंत ममता को कर जाती हैं जो खुद अपने बच्चे की बलि दे राज सिंहासन को जीवन दान दे जाती हैं परंतु कटु लेकिन सत्य आज हर रिश्ता स्वार्थ के वश में हों गया और ज्ञान भी स्वार्थी होना का ही देती हैं ……

क्यों कोई ये नहीं कहता की हाँ देवकी नहीं तू यशोदा बन कान्हा के जीवन को संवार दे उसे इतना प्यार दे इतना प्यार दे की वो सम्पूर्ण हो जाए नन्हा मन

ममता पाकर जीवन को महकायें …..

लोगों का कहना की पहले अपना घर देखो ….क्या नन्ही जान उनको नज़र नहीं आती उनको कितनी ज़रूरत हैं वो समझ नहीं पाते ???अरे हमने तो कितने सावन और पतझड़ देख लिए क्या ये नए मौसम से नहीं घबरायेंगे क्या इनको ममता देने लोग बाहर से आयेंगे???????

हर भुआ हर मासी और हर प्यार और ममता के रिश्ते को निभाने और उनकी ज़िम्मेदारियों के लिए सब नारी स्वतंत्र होनी चाहिये ये अधिकार हर नारी को होना चाहिए की वो अपने या अपनों के बच्चों का साथ और सम्बल बन पाये और कोई इस बीच में आए तो ये ग़लत बहुत ग़लत हैं …….


हाँ कोई बेहद ज्ञान वाले ये कहेंगे कि तुम उनको देखोगी तो तुम्हारे बच्चों का क्या वो तो बस ऐडजस्ट करेंगे फ़लाँ ढिंगा…..तो मैं उन ज्ञान वान नारियों और 

माताओं को ये बताना चाहती हूँ की सबसे पहले आप माँ तो हैं लेकिन ममता विहीन माँ जो स्वार्थ से लबालब हैं यदि आप जैसी नारी सतयुग में पैदा होती तो यशोदा मैया कोई बन ही नहीं पाती एक और बात अपने स्वार्थी ज्ञान को फैलाकर समाज की मानसिकता को संकुचित करने का जो आपने बीड़ा उठा रखा हैं ना वो परे रखो और अपने काम से काम करो फालतू का ज्ञान ना बाँटे तो बेहतर होगा ….हाँ तो मैं ये कह रही थी जो ममता जो प्यार अपने अपनों सब को दे वही नारी वास्तविक नारी हैं यहाँ मैं अपनों और परायों भी तक नहीं लिख पाती क्योंकि ममता जहाँ लुटाई जाती हैं ना वहाँ पराया शब्द का तो कोई अस्तित्व ही नहीं होता …..एक और बात जो आप ममता और प्यार अपनों को दोगे और अगर बदले में कहीं अपने बच्चों को अजस्ट्मेंट करना भी पड़े ना तो वो अजस्ट्मेंट नहीं होगा ……वो तो रिश्तों की महता का पहला पायदान होगा जहाँ आपके अपने बच्चे फ़्री में अपनों का महत्व और रिश्तों की मिठास को सीखेगा ….प्रैक्टिकल ….नोट थ्योर्टिकल……..

और रही बात आपकी आप खुद उनके ऐसे गुरू और प्रेरक बन जाओगे की 

वो आप में भगवान को पायेगा ….पर अफसोस आप तो खुद रिश्तों की पाठशाला में अनाड़ी हैं तो अपने बच्चों को क्या बताओगे…आप तो सिर्फ़ 

संकुचित मानसिकता को फैलाकर रिश्तों को संकुचित बनाओगे …….



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