लव ऑफ जिहाद

लव ऑफ जिहाद

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PLACE: PAKISTAN

ये कहानी है “कल्पना शर्मा” की जिसकी उम्र है सिर्फ 20 साल. वो ज़िंदगी के सफ़र की आखिरी सीडी पर थी और मौत उसे “हिन्दोस्तान से पाकिस्तान” ले आई. इस अनजान देश में उसकी एक ही पहचान थी “हिन्दोस्तान”. लेकिन यहाँ भी हिन्दोस्तान की तरह लड़कियों की ज़िन्दगी खतरे में थी. कल्पना ने किसी बुज़ुर्ग इमरान के घर पनाह ली थी. लेकिन उन लोगों को उसके यहाँ होने की ख़बर मिल चुकी थी. एक सुबह एक जीप इमरान के घर के सामने आकर रुकी. उस जीप में चार लोग सवार थे. उनके चेहरे पर बड़ी-बड़ी काली दाढ़ी, सर पर काली मुस्लिम पगड़ी, काला कुरता-पजामा, चेहरे पर हैवानियत और हाथों में बड़ी-बड़ी बंदूकें थी. उन चारों में से एक रशीद था जो की सबका बॉस था. वो उस घर के दरवाजे को ज़ोर-ज़ोर से खटखटा रहे थे और मुस्लिम भाषा में डरा रहे थे.

घर के अन्दर कल्पना और इमरान दोनों घबरा गऐ. वो लोग दरवाजा तोड़ कर अन्दर घुस गऐ. वो कल्पना की ओर बड़े लकिन इमरान उन्हें हाथ जोड़ कर रोकने लग गया. तो रशीद ने इमरान को गोली मार दी. वो ज़मीन पर गिरा और मर गया. वो कल्पना की और बड़े और उसके चेहरे पर काला कपड़ा डाल दिया. उसके हाथों-पैरों को हथकड़ियों से बाँध दिया. वो कल्पना को कोहनी से पकड़ कर घसीटते हुए ले जा रहे थे. वो कल्पना को लेकर किसी चौराहे पर पहुँचे और उसे घुटनों के बल बिठा दिया. लोगों की भीड़ उसके चारों ओर जमा हो गयी. वो ख़ुद की ज़िन्दगी को एक तमाशा समझ रही थी.

उस पर पड़े काले कपड़े को उतार दिया गया. उसके चेहरे का सफ़ेद रंग और उसकी ऑंखें लाल हो चुकी थी. रशीद मुस्लिम भाषा में लोगों को धमका रहे थे जैसे बता रहे हो की उनके ख़िलाफ जाने का अंजाम कितना बुरा हो सकता है. रशीद ने कल्पना के सामने बन्दूक तान दी. वो जानती थी की उसकी मौत होने वाली है और वो इससे खुश थी. क्यूँ कि वो अब जीना नहीं चाहती थी. क्यूँ कि मौत से ज़्यादा ज़ख़्म उसे ज़िन्दगी ने दिए थे.

                        FLASH BACK – BEFORE ONE YEAR IN INDIA

ये तब की बात है जब कल्पना 19 साल की थी. वो अपनी माँ सावित्री और अपने सौतेले पिता विजेंद्र के साथ मुंबई से दूर किसी छोटे से गाँव में रहती थी. जब कल्पना 16 साल की थी तब कल्पना के पिता की मौत हो गयी थी. घर के हालत इतने बद्दतर हो गए थे की कल्पना और सावित्री को खाना तक नसीब नहीं हो रहा था. उन पर बहुत कर्ज़ा चढ़ चुका था. कल्पना का स्कूल छूट चूका था. तब पंचायत ने उनके घर के हालात को देखते हुए विजेंद्र के साथ सावित्री की शादी तय कर दी. विजेंद्र एक छोटा सा व्यापारी था. सावित्री को इस शादी के लिए मजबूरन हाँ करनी पड़ी. क्यूँ कि विजेंद्र ने भी भरोसा दिया था की वो कल्पना को एक बेहतर ज़िन्दगी देगा और उसकी पढ़ाई जारी रखेगा. तो सिर्फ कल्पना के लिए सावित्री को दूसरी शादी करनी पड़ी.शादी के बाद विजेंद्र ने कल्पना की पढ़ाई तो जारी राखी लेकिन विजेंद्र कल्पना को एक बेटी नहीं एक बोझ समझता था और उससे बहुत नफ़रत करता था. विजेंद्र हर रात किसी न किसी बात से कल्पना को मारता था. सावित्री इस बात से बेहद परेशान रहती थी.

चार साल से कल्पना अपने पिता के ताने, अपने पिता की मार को सहती आ रही थी. लेकिन अगर वो जिन्दा थी तो सिर्फ अपनी माँ की वजह से. उसकी माँ उससे बहुत प्यार करती थी. कल्पना की माँ आठ महीने के गर्भ से थी.विजेंद्र का व्यापार घाटे में चल रहा था जिससे वो परेशान था. इस दौरान विजेंद्र की मुलाकात “आमिर अली” से हुई. आमिर अली एक मुस्लिम था और बहुत बड़ा व्यापारी था. विजेंद्र को आमिर अली के साथ व्यापार करके बहुत मुनाफा हो सकता था. यही वजा थी की विजेंद्र ने एक रात आमिर अली को अपने घर दावत पर बुलाया. जहाँ आमिर अली की ने पहली बार कल्पना से मुलाक़ात की और उस पहली बार में ही आमिर का दिल कल्पना पर आ गया था. आमिर अली की उम्र कल्पना की उम्र से दोगुनी थी.

यहीं से शुरुआत हुई कल्पना के बुरे वक़्त की. आमिर इस कदर उसके लिए पागल था की जहाँ-जहाँ कल्पना जाती वो उसका पीछा करता. उससे बात करने की कोशिश करता और उसे परेशान करता. कल्पना घर से बाहर कदम रखने से भी डरती थी. आमिर ने विजेंद्र को प्रस्ताव दिया की अगर वो कल्पना का निकाह उससे करा देता है तो वो उसे लाखों का व्यापार दे सकता है. आमिर निकाह के नाम पर कल्पना को खरीदना चाहता था और विजेंद्र वैसे ही कल्पना को एक बोझ समझता था. पैसो के लालच में आ विजेंद्र ने इस रिश्ते के लिए हाँ कर दी.

विजेंद्र ने कल्पना और आमिर के शादी की बात सावित्री से की. सावित्री ने विजेंद्र से कहा की अगर उसकी अपनी बेटी होती तो क्या वो ऐसा करता. सावित्री ने साफ़ शब्दों में उस रिश्ते के लिए ना करदी. सावित्री को यकीन हो गया था की उसने गलती की थी दूसरी शादी करके. दूसरी तरफ विजेंद्र पैसों के लिए पागल था और वो ये लाखों का प्रस्ताव हाथों से जाने नहीं देना चाहता था. सावित्री उस वक़्त आठ महीने गर्भ से थी. इसीलिए एक सुबह विजेंद्र सावित्री को हॉस्पिटल ले गया चेकअप के लिए. कल्पना घर पर अकेली ही थी. लेकिन जब विजेंद्र और सावित्री घर वापिस आये उन्होंने देखा की घर का दरवाजा खुला था. घर के अन्दर मेन हाल का सामान बिखरा हुआ था. तभी अचानक कल्पना के कमरे से आमिर निकला. वो अपनी शर्ट के बटन लगा रहा था. आमिर के चेहरे पर हलकी सी मुस्कराहट थी. सावित्री ये देख बहुत हैरान थी. उस कमरे से कल्पना के रोने की आवाज़ आ रही थी.

सावित्री भाग कर कमरे में पहुँची उसने देखा की कल्पना कमरे के कोने में सिकुड़ कर बैठी रो रही थी. उसके कपड़े  जगह-जगह से फटे थे. उसके नाक से खून निकल रहा था. उसके हाथों , पैरो और गर्दन पर ज़ख्म के निशाँ थे. उसकी ये हालत बयाँ कर रही थी की उस आमिर नाम के दरिन्दे ने कल्पना के जिस्म को नोच डाला था. सावित्री वापिस घर के मेन दरवाजे की चौखट पर पहुँची और उसने जो देखा वो देख हैरान रह गयी. आमिर विजेंद्र को पैसों से भरा अटेची दे रहा था. दोनों हस रहे थे. ये देख सावित्री खामोश सी हो गयी. उसकी आँखें दर्द से भर चुकी थी. आज जो हुआ था उसने कल्पना को तोड़ दिया था. कल्पना सहमी हुई, घबरायी हुई कोने में पड़ी रो रही थी. उसे अपने माँ-बाप के लड़ने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. वो सुन पा रही थी अपनी माँ का दर्द जो गुस्से के ज़रिये बाहर निकल रहा था.

कल्पना हिम्मत करके खड़ी हुई और अपने कमरे के दरवाजे के पास पहुँची जहाँ उसने देखा की उसकी माँ ने गुस्सा में विजेंद्र को चाँटा मारा. जैसे ही सावित्री ने उसे चाँटा मारा वो बौखला गया और विजेंद्र ने गुस्से में आकर उसके पेट पर लात मार दी. उसने अपने ही बच्चे पर लात मार दी. जिससे सावित्री सीधा ज़मीन पर गिर गयी. सावित्री दर्द से चिल्ला रही थी और उसकी चीख इतनी ऊँची और दर्द भरी थी जैसे उसके जिस्म से जान निकल रही हो. विजेंद्र इतने में भी होश में नहीं आया उसने फिर उसके पेट पर लात मारी. शायद पैसों ने उसे बहुत अंधा कर दिया था. वो जैसे ही सावित्री को फिर से मारने लगा कल्पना ने पीछे से लोहे की राड से विजेद्र के सर पर वार कर दिया. विजेंद्र वहीँ पर बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गया. कल्पना ने अपनी माँ को उठाया. सावित्री को बहुत दर्द हो रहा था लेकिन उसने अपने इस दर्द को दबा लिए ताकी कल्पना कमज़ोर ना पड़े. सावित्री दर्द की हालत में उठी और कल्पना के कपड़े किसी बैग में डालने लग गयी. कल्पना ये देख हैरान थी और बार-बार सवाल कर रही थी की माँ आप क्या कर रहे हो.

सावित्री ने कल्पना के कपडे बदले. उसे कुछ पैसे दिया और एक कागज थमाया. उस कागज पर किसी का पता लिखा था जहाँ पर सावित्री ने कल्पना को जाने के लिए बोला. ये सुन कल्पना हैरान रह गयी और उसने मना कर दिया. कल्पना अपनी माँ से सवाल करने लग गयी की वो इस घर से क्यूँ जाये. सवित्री ने किसी भी सवाल का जवाब देने से मना कर दिया.कल्पना अपनी माँ को इस हालत में छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी लेकिन सावित्री ने कल्पना को अपनी कसम देदी और बोला की अगर वो घर छोड़ कर नहीं गयी तो वो उसका मारा हुआ मुंह देखेगी. ये सुन कल्पना की आँखों में आंसूं आ गए और वो जाने के लिए तैयार हो गयी. सावित्री ने कुछ सेकंड के लिए कल्पना को गले लगाया. दोनों एक दुसरे को देखते रहे. दोनों के मन में ढेरों बातें थी जो अधूरी रह गयी थी. लेकिन इस बीच सावित्री ने बस इतना ही कहाँ की “मैं मजबूर हूँ जो तुम्हे भेज रही हूँ अपना ख़याल रखना और ज़िन्दगी में कभी इस घर में वापिस मत आना और जितनी जल्दी हो सके इस गाँव से निकल जाओ.”

कल्पना उस घर से निकल गयी और सावित्री घर की चौखट पर खड़ी उसे देख रही थी. कल्पना बार-बार पीछे मुड़ कर देख रही थी की बस एक बार माँ उसे वापिस बुला ले. लेकिन ऐसा नहीं था. विजेंद्र के किये वार से सावित्री को गर्भ में बहुत दर्द हो रहा था लेकिन वो अपने दर्द को दबा रही थी. कल्पना के मन में अपनी माँ के फैसले को लेकर ढेरों सवाल थे. कल्पना ने आखिरी बार अपनी माँ की तरफ मुड़कर देखा और उसकी माँ उसे इशारों से अलविदा कह रही थी. मन में ढेरों सवाल और आँखों में ढेरों आँसू लिए कल्पना सावित्री की आँखों से ओझल हो गयी. ये सावित्री के लिए बहुत जानलेवा पल था और वो चौखट पर बैठ रोने लग गयी. सावित्री की तरफ़ से लिया गया ये अजीब फैसला कल्पना के लिए एक राज़ था जिसे वो जानना चाहती थी लेकिन शायद ही उसे इस सवाल का जवाब मिले. लेकिन कल्पना इतना जानती थी कि ये फैसला उसके भलाई के लिए ही लिया होगा.

सावित्री दिऐ कागज़ पर मुंबई का पता लिखा था इसीलिए कल्पना मुंबई पहुँची और उसी घर के बाहर खड़ी थी जिस घर का पता उस काग़ज पर लिखा था. कल्पना को घर के अन्दर से रोने की आवाज़े आ रही थी. कल्पना घबरायी हुई उस घर के अन्दर गयी. घर के अन्दर एक बड़ा सा आँगन था जहाँ  बहुत से लोग खड़े हुए थे अपने सर को झुकाए हुए. जैसे-जैसे वो आगे बढ़ रही थी रोने की आवाज़ें ओर ऊँची हो रही थी. इतने में आँगन के सामने के कमरे में से चार आदमी एक लाश को अपने कंधो पर रखे हुए कमरे से बाहर निकले “राम-नाम सत्य”  बोलते हुऐ. कल्पना ये देख वही खड़ी हो गयी. कल्पना के बगल में खड़ा हुआ एक आदमी बोल रहा था कि  “भगवान तुलसी राम की आत्मा को शांति दे”. ये सुन कल्पना उस काग़ज को खोलती है और उस काग़ज पर तुलसी राम का नाम लिखा हुआ था. सावित्री ने कल्पना को जिसके पास भेजा था कल्पना के पहुँचने से पहले ही उस आदमी की मौत हो चुकी थी.

कल्पना चिंता में पड़ गयी थी की अब वो किस से मिले क्यूँ कि ऐसे वक़्त में वो अपने बारे में किसी से बात कर नहीं सकती थी. वो वापिस घर नहीं जा सकती थी क्यूँ की उसकी माँ ने उसे कसम दी थी वापिस न आने की. कल्पना के पास कुछ पैसे थे. इसीलिए उसने एक रात होटल में बिताने की सोची. इधर-उधर भटकते वो किसी होटल पर पहुँची और रिसेप्शन पर खड़े लड़के से एक रात के लिए कमरा माँगा. होटल में रजिस्टर पर डिटेल्स भरते वक़्त वहाँ से गुजर रहे लोग और रिसेप्शन पर खड़ा लड़का कल्पना को घूर रहे थे. कल्पना घबरा रही थी क्यूँ कि उसे घूर रहे हर लड़के की आँखों के अन्दर छुपा एक आमिर नज़र आ रहा था. रिसेप्शन पर खड़ा लड़का कल्पना को कमरे तक छोड़ कर आया. कल्पना बहुत थक गयी थी और कुछ देर के लिए आराम करना चाहती थी इसीलिए वो सो गयी. सोते वक़्त उसे अचानक से वो पल याद आने लगा जब आमिर उसके जिस्म को नोच रहा था. कल्पना नींद में थी और वही पल सपने के ज़रिये सामने आ रहा था. उसके माथे पर पसीना आ चुका था और एक दम से घबराते हुए उठ कर बैठ गयी. उसने पानी माँगने के लिए रिसेप्शन पर फ़ोन किया. कल्पना को फोन से अजीब तरह की आवाज़ें आ रही थी. जैसे कोई किसी को ज़बरदस्ती लेकर जा रहा हो. कल्पना ने पानी माँगा और कमरा नंबर बता दिया. फ़ोन अचानक से कट गया.

कुछ सेकंड्स बाद 4-5 पुलिस वाले कल्पना के कमरे का दरवाजा तोड़ते हुए अन्दर घुसे. कल्पना देख डर गयी. सीनियर ऑफिसर प्रताप ने कल्पना को गिरफ्तार करने का आर्डर दिया. पुलिस वाले कल्पना के हाथों पर हथकड़ियाँ  बाँधने लग गए थे और कल्पना ख़ुद को निर्दोष बता रही थी.

कल्पना- सर आपको गलत फ़हमी हुई है मैंने कुछ नहीं किया है.

प्रताप-. अरे किया नहीं तो करने तो वाली थी ना.....ले चलो और डालो इसे भी जीप में.

पुलिस वाले उसे अपने साथ गिरफ्तार करके होटल से बाहर ले गए जहाँ पुलिस की जीप खड़ी  थी. सिर्फ कल्पना ही नहीं पुलिस वालों ने बहुत से कपल्स को गिरफ्तार कर जीप में डाला हुआ था. कल्पना और सभी कपल्स को पुलिस थाने ले गयी. पुलिस वाले कल्पना से उसके घर वालो के बारे में पूछते रहे लेकिन कल्पना ने बोल दिया था कि, उसका कोई नहीं है इस दुनिया में. पुलिस ने कहाँ की अगर तुम्हारे घर से कोई नहीं आया तो हमे मजबूरन तुम्हे जेल डालना पड़ेगा. कल्पना नहीं चाहती थी की इस बारे में उसकी माँ को पता लगे. इसीलिए कल्पना ख़ामोश रही और उसे जेल में डाल दिया गया. जहाँ कल्पना की मुलाकात आकाश से हुई. जिस जेल में आकाश था उसी जेल में कल्पना को भी डाल दिया. आकाश की उम्र 25 थी और वो दिखने में अच्छे घर का लगता था. कुछ देर बाद आकाश ने कल्पना से सवाल किया कि  “आपको किस लिए जेल में डाला है”. कल्पना आकाश के सवाल से थोडा सहम गयी और आकाश ने उसे सहारा देते हुए कहा “डरिये मत आप यहाँ सुरक्षित है मेरे साथ भी और इन पुलिस वालों के साथ भी...”. आकाश एक सुलझा हुआ लड़का था और उसके बात करने का तरीका बहुत ही आकर्षित था. शायद इसीलिए कल्पना पहली मुलाक़ात में ही उससे बात करने लग गई थी.

आकाश- सड़क पर एक लड़का लड़की को मार रहा था. मैंने जाकर उस लड़के को रोका तो उसने मुझसे भी लड़ाई शुरू कर दी. इतने में पुलिस आई जिसे देख वो दोनों डर गए और लड़की ने उल्टा मुझ पर इल्जाम लगा दिया छेड़ने का......बाद में पता लगा की वो लड़का उसका बॉय-फ्रेंड था....भलाई का ज़माना ही नहीं रहा आज-कल तो..........आपने बताया नही आपको क्यूँ गिरफ्तार किया.

कल्पना- मुझे पास के होटल से गिरफ्तार किया था पुलिस वालों ने.

आकाश- अरे ये पुलिस वाले तो गाँधी जी के भूखे है उसके चक्कर में जाने कितने बेकसूर को पकड़ लेते है. मुझे विश्वास है और मैं जानता हूँ कि अपने कुछ नहीं किया है इनको कोई

गलत फहमी हुई है.

आकाश के ये अल्फ़ाज़ कल्पना के दिल को छू गऐ थे. पहली बार कल्पना किसी ऐसे लड़के से मिली थी जिसने बिना जाने-पहचाने उसे बिलकुल सही समझा था.

कल्पना- लेकिन आप इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो.

आकाश- इनसान चेहरे से जितना मर्जी ख़ुद को छुपा ले लेकिन उसकी ऑंखें हमेशा सच बोलती है और आपकी आँखें भी यही बोल रही है की अपने कुछ नहीं किया है.....फिकर मत करो ये कोई F.I.R भी नहीं करेंगे......आपके घर वालो को बुलाएँगे और चेतावनी देकर छोड़ देंगे......मेरा भी दोस्त आते ही होंगे मुझे छुड़ाने के लिए....आपकी तरफ से कोन आ रहा है.......”मेरी माँ – कल्पना ने जवाब दिया”.

कल्पना की माँ नहीं आने वाली थी लेकिन फिर भी उसने झूठ बोला. उन चंद घंटों में उन दोनों के बीच बहुत बातें हो चुकी थी और एक ठीक-ठाक पहचान बन चुकी थी. कुछ देर बाद पुलिस ने जेल का दरवाजा खोला और आकाश को बाहर आने के लिए कहा. आकाश ने कल्पना से कहा की “मेरे दोस्त तो आ गये मैं चलता हूँ आपकी भी माँ आ रही होगी बाक़ी किस्मत में रहा तो फिर मिलेंगे”. इतना कह आकाश वहाँ से चला गया. कल्पना आकाश की तरफ़ ही देख रही थी. आकाश के जाने के बाद जाने क्यूँ कल्पना को एक डर सा बैठ गया था दिल में. हालाँकि कल्पना दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह पर थी “पुलिस स्टेशन” में लेकिन वो वहाँ भी ख़ुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रही थी. उस थाने का सीनियर पुलिस कर्मी प्रताप की बुरी नज़र उसे डरा रही थी और उसकी बातें उसे धमका रही थी. वो ख़ुद को छोड़ने की माँग कर रही थी लेकिन इंस्पेक्टर प्रताप उसे छोड़ नहीं रहा था.

कल्पना के लिए कोई जगह महफूज़ नहीं थी. ना घर, ना होटल, और ना ही पुलिस थाना. प्रताप उसे बहुत परेशान कर रहा था और वो उससे बहुत डरी हुई थी. एक बार रात के वक़्त प्रताप कल्पना की जेल के अन्दर आया. जिसे देख कल्पना बहुत डर गयी. प्रताप उसके पास जाकर बैठ गया.

प्रताप- क्यूँ ज़िद कर रही है.....बोल तो रहा हूँ तुझे छोड़ दूँगा....लेकिन तू कहाँ जाएगी ये दुनिया बहुत जालिम है बाहर........तेरा तो कोई है भी नहीं इस दुनिया में इसीलिए बोल रहा हूँ मेरे घर चल मैं पूरा ध्यान रखूँगा तेरा वहाँ.

कल्पना (रोते हुए)- सर मुझे कहीं नहीं जाना आपके साथ प्लीज् मुझे छोड़ दो.......

प्रताप को गुस्सा आ जाता है और उसे गले से पकड़ लेता है और बोलता है “जब तक तू अपनी ज़िद पर अड़ी है मैं भी देखता हूँ तू कैसे यहाँ से जाती है” इतने में प्रताप का फ़ोन बजता है और वो वहाँ से चला जाता है. कल्पना की किस्मत बहुत अच्छी थी क्यूँकि जब भी प्रताप कल्पना के साथ कुछ बुरा करने जाता उस वक़्त या तो कभी सिनिअर पुलिस कर्मी आ जाता और या तो कभी उसे कोई काम पड़ जाता. डरते हुए, घबराते हुए और ख़ुद को प्रताप से बचाते हुए जैसे-तैसे कल्पना ने 4 दिन उस थाने में निकाल दिए. कल्पना उस चार दिवारी में घबरा रही थी और उसे कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी. वो परेशान थी की पूरे चार दिन बाद फिर इक उम्मीद उसके पास चल कर आई.

पुलिस की तरफ से आकाश को चार दिन बाद फिर से हाजिरी देने का आर्डर था. इसीलिए चार दिन बाद आकाश फिर से उसी पुलिस थाने अपने दोस्त के साथ आया. जहाँ उसकी नजर कल्पना पर गयी और वो कल्पना को देख हैरान था. उसने वहाँ के हवालदार से कल्पना से मिलने की गुज़ारिश की. कल्पना आकाश को देख हैरान और खुश थी. आकाश ने कल्पना से अभी तक जेल में होने कारण पुछा. जिस पर कल्पना उसे सब सच बता दिया की उसे उस दिन कोई लेने नहीं आने वाला था. उसने झूठ बोला था. कल्पना ने आकाश से कहा की उसने बहुत मिन्नतें की पुलिस से लेकिन वो उसे छोड़ नहीं रहे है.

आकाश की नज़र कल्पना की गर्दन पर गयी जहाँ पर खरोंच के निशान थे जिस पर कल्पना ने उसे बताया की ये सब प्रताप ने किया है. आकाश को ये देख कर बहुत गुस्सा आया और उसने कल्पना से कहा की फ़िक्र मत करो मैं तुम्हे यहाँ से निकलवाता हूँ. आकाश ने अपने वकील को बुलाया और पुलिस को ज़मानत के काग़ज देकर कल्पना को जेल से बाहर निकलवा लिया. बाहर आकर कल्पना को राहत मिली थी प्रताप से और वो इसके लिए आकाश की एहसानमंद थी. आकाश जानता था की कल्पना का इस शहर में नयी है और उसका इस शहर में कोई नहीं है. वो उसे अपने साथ नहीं रख सकता था. इसीलिए बहुत मना करने पर भी आकाश ने कल्पना को अपने दोस्त के घर ठहरा दिया जो की काफी सालों से बंद था. यहीं से आगाज़ हुआ कल्पना और आकाश की दोस्ती का.

कल्पना अपने बीते कल को लेकर हमेशा उदास रहती थी. आकाश को कल्पना का यूँ उदास रहना अच्छा नहीं लगता था. इसीलिए वो रोजाना किसी न किसी बहाने उसे घुमाने ले जाता ताकि उसे अकेलापन महसूस ना हो. बहुत दिन बीत गए और आकाश ने कल्पना का मन बदलने के लिए हर संभव कोशिश की. लेकिन कल्पना चुप-चाप ही रहती थी और फिर एक दिन आकाश ने कल्पना से यूँ उदास रहने का कारण पूछ लिया. कल्पना बताना नहीं चाहती थी लेकिन आकाश की जिद्द के चलते कल्पना ने अपने बीते हुए कल के सभी पन्नो को खोल कर उसके सामने रख दिया. कल्पना का सच जानने के बाद आकाश ने कल्पना को बहुत समझाया और उसकी बातों का कल्पना पर बहुत गहरा असर हुआ. इसीलिए उसने बीते कल में जो हुआ उसे भूला कर आगे बढ़ने की सोची. धीरे-धीरे कल्पना का मन सही होने लगा. उनकी दोस्ती को एक महीना बीत गया था और इस एक महीने में आकाश ने कभी कल्पना के साथ बदसलूक़ी  नहीं की थी और ना ही कभी उसके अकेले होने का फ़ायदा उठाया था. इसीलिए वो आकाश के साथ रहना बहुत पसंद करती थी और वो दोनों एक दुसरे के बारे में बहुत कुछ जान चुके थे.  

इस दौरान आकाश को कल्पना से प्यार हो चुका था. उसे प्यार हो चूका था कल्पना के भोलेपन से और उसकी मासूमियत से. लेकिन बहुत दिनों तक उसने इस बात को दबाये रखा लेकिन एक दिन उसने अपने प्यार का इजहार कल्पना से कर दिया. कल्पना ये जान ख़ामोश थी. क्यूँ कि आकाश ने जो उसके लिए किया था वो शायद ही कोई करता और आकाश ऐसा पहला लड़का था कल्पना की जिंदगी में जो उसकी बहुत इज्जत करता था, उसका बहुत ख़याल रखता था और उससे बहुत सलीक़े से बात करता था. यही वजह थी उसके लिए फैसला लेना बहुत मुश्किल था. उसने आकाश से कुछ वक़्त माँगा. आकाश ने  इस कदर कल्पना पर अपनी बातों का प्रभाव डाला था की जब भी वो आकाश के बारे में सोचती उसे सिर्फ आकाश की खूबियाँ ही नज़र आती. उसे एहसास हो गया की आकाश उसके लिए एक बहुत अच्छा लड़का है उसकी बहुत इज्जत करता है इसीलिए ऐसे लड़के को वो खो नहीं सकती और उसने आकाश के प्यार को स्वीकार कर लिया. जो भी कहो कल्पना अभी बच्ची ही थी. उसका फैसला सही था या गलत ये वो नहीं जानती थी लेकिन वो आकाश को एक मौका देना चाहती थी. आकाश इससे बहुत ख़ुश था और अब कल्पना भी आकाश से उतना ही प्यार करना चाहती थी जितना वो उससे करता था.

ये कल्पना के लिए पहला एहसास था और उसे ये एहसास बहुत अच्छा लग रहा था और वो इक अलग ही दुनिया में जी रही थी. सारा दिन मुस्कुराते रहना, आकाश के बारे में सोचते रहना. हर-दिन हर-पल उसका आकाश के लिए प्यार बढ़ता जा रहा था. सारा दिन एक साथ घूमना-फिरना, फोन पर बातें करना. कल्पना ख़ुद को आकाश के साथ बहुत आजाद महसूस करती थी. पहली बार कल्पना ने ज़िन्दगी को जिया था. आकाश का असली घर मुंबई में नहीं बल्कि U.P में था जहाँ उसके माँ-बाप रहते थे. आकाश की उम्र 25 थी जिसके चलते उसके माँ-बाप उसके लिए लड़की ढूँढ रहे थे. आकाश ने अपने घर वालों से कल्पना के बारे में फोन पर बात की और फोन के ज़रिये उसकी तस्वीर अपने घर वालों को भेजी.

कल्पना दिखने में बेहद खूबसूरत थी इसीलिए उसके घर वालो ने हाँ कर दी. क्यूँ कि आकाश के माँ-बाप को दो हफ्ते बाद इंडिया छोड़ कर बाहर जाना था इसीलिए उन्होंने शादी की तारीख एक हफ्ते बाद की रख दी बिना कल्पना से पूछे और शादी उनके खानदानी घर U.P में होनी थी. आकाश ने शादी के बारे में जब कल्पना को बताया तो उसने कहा की वो भी शादी करना चाहती है लेकिन अपनी माँ के बिना इना बड़ा काम नहीं कर सकती. एक बार वो आकाश को अपनी माँ से मिलाना चाहती थी और चाहती थी की उसकी माँ भी इस शादी में शामिल हो. आकाश ने उसे समझाया की हमारे पास इतना वक़्त नहीं है. अगले हफ्ते हमारी शादी है और हमे अभी से घर के लिए निकलना होगा और बहुत से काम भी बाकि है. उसके माँ-बाप को बाहर भी जाना है इसी चक्कर में शादी जल्दी कर रहे है और शादी बहुत साधारण है सिर्फ मेरे माँ-बाप, पंडित और हम दोनों. शादी होने के बाद और माँ-बाप के बाहर जाने के बाद हम दोनों आराम से तुम्हारी माँ को मिलने जायेंगे और मैं जनता हूँ वो बुरा नहीं मानेगी. सिर्फ दो होफ्ते की बात है हमें शादी तो करनी है. कल्पना चिंता में थी और आकाश के दबाव डालने पर उसने हाँ कर दी. वो दोनों इस वक़्त मुंबई में थे और उन्हें U.P के लिए रवाना हो गए.

कल्पना आकाश से बेइन्तिहाँ प्यार करती थी और कुछ भी करने के लिए तैयार थी. आकाश जहाँ बोल रहा था चलने को कल्पना आँखें बंद कर उसके साथ चलती जा रही थी. कल्पना अपनी ज़िन्दगी के अगले पड़ाव पर पहुँच चुकी थी. वो बहुत खुश और उत्साहित थी. आकाश कल्पना को लेकर अपने खानदानी घर U.P में पहुँचा जो की बहुत बड़ा था. आकाश ने कल्पना को अपने माँ-बाप से मिलाया. आकाश के माँ-बाप स्वभाव में थोड़े कड़वे थे, जैसे पुराने ख़यालातों के. आकाश को किसी काम के सिलसिले में एक दिन के लिए जाना था. इसीलिए उसने कल्पना को उसका कमरा दिखाया और चला गया. कल्पना आकाश के जाने के बाद बहुत घबरायी हुई थी. क्यूँ कि वो घर बहुत अजीब था. इतना बड़ा होने के बावजूद भी उसमे कल्पना का दम घुट रहा था. उस घर में कोई मंदिर तक नहीं था. कल्पना ये देख हैरान थी. आकाश के जाने के बाद कल्पना को उस घर में बहुत अजीब माहौल दिखा. जो लोग उस घर में आ-जा रहे थे उसे देख कल्पना हैरान थी. जब दोपहर को कल्पना शरबत बना रही थी लोगो के लिए. तब उस वक़्त वहाँ चार मौलवी आये मुस्लिम पोषक में. जब कल्पना उन्हें शरबत दे रही थी तब वो चारों मौलवी कल्पना को लगातार घूर रहे थे. जब कल्पना वापिस अपने कमरे में जा रही थी. तब भी वो मौलवी उसी की और देख रहे थे और आकाश के पिता कल्पना की और इशारा कर मौलवी को बता रहे थे. जिसे देख कल्पना हैरान थी और घबरा रही थी. कल्पना की घबराहट उस वक़्त डर में बदली जब रात के वो सो रही थी और आधी रात को एक रौशनी मेन हॉल से उसके कमरे की खिड़की पर लगे परदे के ज़रिये उसके चेहरे पर पड़ रही थी. जिससे उसकी नींद खुल गयी और वो आधी रात इस रौशनी को देख हैरान थी. जब उसने चुपके से खिड़की के ज़रिये मेन हॉल में जो देखा उसे देख उसके माथे से पसीना आने लगा.

उसने देखा की आकाश के पिता एक लड़की बहुत बुरी तरह से मारते हुए कमरे से बाहर लेकर आ रहे थे. उस लड़की के कपडे जगह-जगह से फटे हुए थे. उसकी हाथों और होंठों को कपड़े से बाँधा था. वो ख़ुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी. मेन हॉल में आकाश की माँ और सफ़ेद कुर्ते-पजामे में एक आदमी खड़ा था. आकाश के पिता ने उस लड़की को उस आदमी को दे दिया. उस आदमी ने अपने हाथ में पकडे अटेची को आकाश के पिता को दे दिया और उस लड़की जबरदस्ती अपने साथ लेकर चला गया. कल्पना ये देख बहुत डर गयी थी और उसे समझ नहीं आ रहा थी की ये क्या हो रहा था. पूरी रात कल्पना सो नहीं पाई और उसे एहसास हो रहा था की कुछ बहुत गलत होने वाला है उसके साथ भी.

अगले दिन आकाश के माँ-बाप आकाश को लेने एयरपोर्ट चले गए. उनके जाने के बाद उनके घर कोई एनवलप देकर गया. ना चाहते हुए भी जब कल्पना ने उस एन्वेल्प को खोला तो उसमें  एक शादी का कार्ड था. जिस पर आकाश और कल्पना की तस्वीर लगी थी. जिसे देख कल्पना ख़ुश हुई लेकिन उसने जैसे ही कार्ड खोला और पड़ा तो वो हैरान हो गयी. उस कार्ड पर मुस्लिम रिवाज से लिखे हुआ था और आकाश और कल्पना की जगह पर “रहीम और ज़रीन” लिखा हुआ था. कल्पना इसे देख बहुत हैरान हुई की उसका कार्ड मुस्लिम तरीकों से क्यूँ लिखा था. उसे लग रहा था की आकाश उससे जरुर कुछ छुपा रहा था. कल्पना डरती हुई आकाश का इन्तेज़ार करने लगी क्यूँकि वो जानती थी की उसके हर सवाल का जवाब आकाश के ही पास था. जब आकाश वापिस घर आया तो कल्पना ने आकाश को वो कार्ड दिखाया और सच बताने को कहा.

आकाश – मैं तुम्हे बताने ही वाला था और अब मैं साफ़-साफ़ शब्दों में बताऊँगा. मेरा नाम रहीम खान है. मैं मुस्लिम हूँ और अब से तुम्हारा नाम ज़रीन खान है. दस दिन बाद हमारा निकाह है और उससे पहले तुम्हे मुसलमान बनना होगा. उसके लिए तुम्हे सबके सामने इस्लाम धर्म क़बूल करना होगा, कुरान पड़नी होगी और शायद गायें का माँस भी खाना पड़े. तभी तुम पक्की मुसलमान कहला पाओगी. 

कल्पना – क्या.......ये क्या है.........आकाश क्या बोल रहे हो तुम.....क्या हो गया है तुम्हें .........तुम प्यार करते हो मुझसे भूल गऐ क्या तुम्हीं ने कहा था न या वो सब झूठ था.

आकाश – सब सच था.....सिवाए पहचान के लेकिन एक सच ये भी है की अगर तुम मेरे लिए अपना धर्म परिवर्तन नहीं कर सकती तो मैं भी भूल जाऊँगा की तुम मुझसे प्यार करती हो.

कल्पना- इतना बड़ा धोखा मेरे साथ......क्यूँ. मैं धर्म परिवर्तन नहीं करुँगी...मैं अपना नाम नहीं बदलूँगी.......मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ आकाश ऐसा क्यूँ कर रहे हो....मैं नहीं कर सकती.

आकाश – आकाश नहीं रहीम और तुम्हे करना होगा क्यूँ कि तुम नहीं जानती कि तुम कहाँ फँस गयी हो. तुम नहीं जानती अगर तुम इसके लिए ना करोगी तो तुम्हारे साथ क्या होने वाला है..तुम तड़पोगी, चिल्लाओगी, भीख माँगोगी. इसीलिए कुछ वक़्त देता हूँ सोच लो.

आकाश का सच जो की रहीम था उसे जानने के बाद वो ख़ामोश थी और नहीं जानती थी की ये क्या हो रहा था उसके साथ. कल्पना आकाश से बहुत प्यार करती थी लेकिन वो आकाश शायद कभी था ही नहीं और यहाँ जिससे उसका सामना हो रहा था वो एक रहीम नाम का मुसलमान था. कल्पना के साथ धोखा हुआ था और ये बस शुरुआत थी. कल्पना ने रहीम(आकाश) और उसके माँ-बाप को कुरान पढ़ने और इस्लाम धर्म क़बूल करने से इनकार कर दिया था. जिस पर कल्पना को स्टोर रूम में बंद कर दिया गया था. उस पर बार-बार धर्म परिवर्तन के लिए जोर डाला जाता और बार-बार वो मना करती रहती थी. रहीम उसे कभी हाथो, कभीं लाठियों तो कभी बेल्टों से मारता था. गरम लोहे से उसकी शरीर की त्वचा को जलाया जाता था. कल्पना चिल्लाती, रोती और छोड़ने की बीख माँगती थी. कल्पना जिससे इतना प्यार करती थी उसी ने उसे जीते जी मौत का एहसास दिला दिया था. उसे सोने नहीं दिया जाता था. उसका खाना-पीना सब बंद कर दिया गया था. पाँच दिन तक उसे खाने-पीने को कुछ नहीं दिया गया था. लेकिन उस पर शारीरिक अत्याचार हर दो से तीन घंटे बाद किया जाता था.

पाँच दिन से बिना खाने और पानी के वो बेसुध सी हो चुकी थी. उसमे अब हिम्मत नहीं थी. पाँच दिन बाद रहीम(आकाश) ने उसके सामने गायें का माँस रखा जिसे खाने से उसने मना कर दिया था. इसीलिए उसे पाँच दिने पहले की सूखी रोटी दी गयी जो की पत्थर से भी सख्त हो चुकी थी. जब उसने पानी माँगा तब पोछे के पानी को स्टोर रूम के फर्श पर गिरा दिया गया. पत्थर से भी सख्त रोटी न चाहते हुए भी उसे खानी पड़ी. उसे पानी की इतनी कमी महसूस हो रही थी की उसने उस पोछे का पानी जो की फर्श पर गिरा था उसे फर्श से चाटने लग गयी थी. एक रात उसे स्टोर रूम में एक लोहे का ट्रंक दिखा और जब हिम्मत करके उसने उस ट्रंक को खोला तो उसे उसमे एक एल्बम मिली. जब उसने एल्बम खोली तब उसने जो देखा उसे देख हैरान हो गयी. उस एल्बम में रहीम(आकाश) की बहुत सी तस्वीरे थी अपने माँ बाप के साथ बचपन से लेकर अब तक की. लेकिन उस तस्वीर में जो आकाश के साथ माँ-बाप थे वो कोई और ही थे. जो इस वक़्त घर में मोजूद थे और उसके माँ-बाप होने का ढोंग कर रहे थे. कल्पना को एहसास हो गया था की उसे फँसाया गया था और जिस माँ-बाप से आकाश ने मिलाया था वो भी आकाश की तरह झूठे थे.

ये देखने के बाद कल्पना ने हिम्मत नहीं हारी. अपने फैसले पर डटी रही और धर्म परिवर्तन से इनकार करती रही. तकरीबन 15 दिन तक उसके साथ शारीरक अत्याचार होता रहा और इन 15 दिनों में बस तीन बार उसे पत्थर जैसी रोटी और पोछे वाला पानी नसीब हुआ था. कल्पना पूरा-पूरा दिन दर्द की हालत में छटपटाती रहती थी और रहीम(आकाश) को उस पर ज़रा सा भी रहम नहीं आ रहा था. उसकी हालत इतनी बद्दतर हो चुकी थी की वो खुद से चल भी नहीं पा रा थी. 15 दिन बाद उसे कुछ खाने को दिया गया वो भी बचा-खुचा. कल्पना इतनी भूखी और प्यास थी की उसे खाना पड़ा. इतने दिनों बाद भी कल्पना के ना मानने पर रात के वक़्त कल्पना के हाथो पर रस्सी बाँध दी थी आकाश(रहीम) ने और फिर उसे स्टोर रूम से बाहर ले कर आये. कल्पना को इतनी कमजोरी महसूस हो रही थी को वो खुद से चल भी नहीं पा रही थी. रहीम ही उसे पकड़ कर बाहर लेकर आया कमरे से. बाहर रहीम(आकाश) के नकली माँ-बाप भी खड़े थे और सफ़ेद कुरते-पजामे में व्ही लड़का खड़ा जो उस रात एक लड़की को लेकर गया था जब कल्पना ने चोरी छुपे देखा था. रहीम और वो आदमी ने कल्पना को वैन की पिछली तरफ बिठा दिया बंद कर. उन्होंने अपनी वैन एक फैक्ट्री के आगे रोकी. कल्पना को फैक्ट्री के अन्दर छोटे से कमरे में कल्पना को डाल दिया और कमरे को बाहर से बंद कर दिया था. कल्पना फर्श पर गिरी हुई थी और इतनी कमज़ोर  थी बड़ी मुश्किल से उसने ख़ुद को बिठाया. जब उसने अपनी नजर पीछे की तरफ घुमाई तो उसकी तरह तीन और लड़कियों को उसी कमरे में बंधक बनाया हुआ था. कल्पना ने खड़ी  होकर कमरे की लाइट को जलाया और देखा की सभी के हाथ-पैर बाँधे हुए थे और होठों पर पट्टी बन्ह्दी हुई थी. कल्पना ये देख हैरान थी और उसमे से एक लड़की वही थी जिसे उस रात आकाश के पिता ने उसे आदमी के हवाले कर दिया था. कल्पना ने उन तीनों से एक ही सवाल किया क्या तुम लोगो को मेरी तरह ही प्यार के जाल में फसाया गया था और सभी के आँखों में आँसू थे और सर हिला कर हाँ बोल रही थी. कल्पना को सारी कहानी समझ में आ गयी थी.

कल्पना को समझ में आ गया थी उसे जानबूझ कर प्यार के जाल में फँसाया गया था. कल्पना समझ गयी थी आकाश जो की असल में रहीम था वो एक गिरोह के लिए काम करता था. जो की भोली-भाली और मासूम हिन्दू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फसाते थे और बाद में या तो पहले हिन्दू रीति  रिवाजों  से शादी करने के बाद उनको इस्लाम धर्मं कबूलने को कहते थे और या फिर अपने प्यार के जाल में फस कर उनसे पहले ही धर्म परविर्तन करा इस्लामिक बन देते थे और इनके लिए इन्हें पैसे भी दिए जाते थे. कल्पना ये भी जान गयी थी की वो रहीम(आकाश) जैसे गिरोह के लड़को का ना तो पहला शिकार थी और ना ही आखिरी. उसके जैसी ना जाने कितनी  लड़कियों के साथ ये हो चुका था. लेकिन कभी ये मामला सामने नहीं आता था दुनिया के और उसके तीन और लड़कियाँ थी जो उसी तनाव से गुज़र रही थी. उसमें से एक लड़की ने कल्पना को इशारा कर रही थी लाइट की तरफ. कल्पना समझ नहीं पा रही थी इसीलिए उसने उसकी पट्टी खोल जिससे उसने उसे कहा की लाइट बंद कर दो वर्ना वो आकर तुम्हे भी हमारी तरह बाँध देंगे. उसने तुरंत लाइट बंद कर दी. कमरे के ठीक बाहर खुला वेयरहाउस था. कल्पना उस कमरे की खिड़की से चुपके से उस वेयरहाउस की तरफ देख रही थी.

जिसमे रहीम(आकाश) कुर्सी पर बैठा हुआ था और तीन-चार आदमी उसके साथ बैठे थे. वो चुपके से देख रही थी की अचानक से सब खड़े हो गए जैसे उन सबका बॉस आ गया हो. उस वेयरहाउस का दरवाजा खुला और उनके बॉस ने एंट्री ली. क्यूँ की रहीम की पीठ कल्पना की तरफ थी और रहीम का बॉस उसके ठीक सामने से आ रहा था. इसीलिए कल्पना उसे देख नहीं पा रही थी. जैसे ही रहीम अपने बॉस के पास पहंचा और मुस्लिम तरीके से गले लगे. कल्पना ने जैसे ही रहीम के बॉस को देखा उसके पैरो तले ज़मीन खिसक गयी और फिर से एक बार के लिए खमोश हो गयी और उसके चेहरे से लग रहा था की जैसे वो बहुत ज़यादा डर गयी हो. क्यूँ की रहीम(आकाश) जिसके लिए काम करता था वो कोई और नहीं “आमिर अली” था. वही आमिर अली जिसने कल्पना के सोतेले पिता विजेंद्र से कल्पना से निकाह की बात की थी और ना करने पर उसके जिस्म को नोच दिया था. रहीम(आकाश) ने कल्पना को फिर से उसके अतीत के सामने लाकर खड़ा कर दिया था. वही अतीत जिससे वो भाग रही थी और जिसकी वजह से उसकी अपनी माँ तक को छोड़ना पड़ गया था. कल्पना फिर से रोने लग गयी क्यूँ कि उसके साथ जो हो रहा था वो और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी. उधर रहीम(आकाश) अपने बॉस आमिर को बता रहा था की हमारे पास चार लड़कियाँ  है जिसे लेकर हम रवाना हो रहे है हम उन्हें अपने घर पर छुपा कर रखेंगे. आप अलग से निकलिए. रहीम ने उन चारों लड़कियों की तस्वीरों को आमिर को दे दिया. आमिर के असिस्टेंट ने रहीम को पैसों से भरा अटैची दिया. जिसे पाकर रहीम(आकाश) बहुत खुश हुआ. आमिर एक-एक करके उन चरों लड़कियों की तस्वीरों को देखने लग गया और जैसे उसने कल्पना की तस्वीर को देखा. वो देख कर हैरान हो गया और हसने लग गया. आमिर ने कल्पना की तस्वीर को रहीम को दिखाया और पुछा की ये लड़की भी तेरे पास कैद है. रहीम ने जवाब की क्या आप जानते है इस लड़की को. तो आमिर ने रहीम इन चारों लड़कियों के पास ले जाने को कहा.

रहीम आमिर को उसी कमरे में ले गया जहाँ पर उसने उन चारों लड़कियों को कैद किया हुआ था. रहीम ने कमरे की लाइट को जगाया और कल्पना आमिर को देख बहुत ज़्यादा घबराने लगी और आमिर हसने लगा. आमिर ने रहीम(आकाश) से कहा की कल्पना को छोड़ कर बाक़ी  तीनों  लड़कियों को तू अपने घर पर छिपा कर रखना और कल्पना को मेरे घर पर पहुँचा देना. उसके बाद आमिर वहाँ से निकल गया और रहीम भी सभी लड़कियों को लेकर निकलने की तेयारी करने लग गए. रहीम ने चारों लड़कियों को जबरदस्ती बेहोशी के इंजेक्शन लगा दिया जिससे वो चारों बेहोश हो गयी.

दो दिन बाद जब कल्पना की आँख खुली तो उसने फिर से ख़ुद को किसी कमरे में बंद पाया और वो ख़ुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी. उस कमरे का दरवाजा खुलता है और आमिर कमरे के अन्दर आता है जिससे कल्पना घबराने लग जाती है. कल्पना ज़मीन पर बैठी होती है और आमिर उसके सामने कुर्सी पर बैठता है और वो कल्पना के चेहरे से पट्टी हटाता है और कहता है की तू मुझसे भाग रही थी और देख मेरी चाहत और अलाह ने तुझे फिर से मेरे पास लाकर खड़ा कर दिया.

कल्पना- आपने भी तो यही करना था न जैसे रहीम ने किया. पहले शादी और फिर उसके बाद मुसलमान बनने के लिए दबाव.

आमिर- हाँ! लेकिन निकाह के बाद तेरा ये हश्र नहीं होता जो आज हो रहा है और ये मेरी तेरे से चाहत ही है जो तू आज मेरे सामने यहाँ बैठी है नहीं तो उन बाकि तीनो लड़कियों की तरफ तेरी भी अगले हफ्ते बोली लगती और तू भी बिक जाती....नहीं समझी ना.......वो जो बाक़ी की तीनों  लड़कियां है ना जिसे रहीम ने अपने घर पर छुपा कर रखा हुआ है अगले हफ्ते उनकी बोलियाँ लगेगी और दुबई से आये हुए शेख उन तीनों को खरीदेंगे और ले जायेंगे. अगर मेरा तेरे पर दिल नहीं आया होता ना तो तेरी भी जगह वहीँ होनी थी.

कल्पना- मुझ पर आपका दिल आया नहीं होता या दिल भर गया होता तो मेरी भी जगह वहाँ होनी थी.

आमिर- समझदार तो तू है ही और तू चाहती ही मेरा दिल किस पर है और मैं क्या चाहता हूँ....तेरे साथ इतना कुछ तो हुआ है अब तक समझ आ गयी होगी मेरी हाँ में हाँ  मिलाने में ही भलाई है.

आमिर कल्पना के सामने हरे रंग सूट रखता है.

आमिर- हरा रंग हमारे मुसलान में एक दुल्हन निकाह के वक़्त पहनती है हमारा निकाह तो नहीं हो सकता लेकिन तू मुझे दुल्हन का एहसास तो दे ही सकती है. तेरे पास रात तक का वक़्त है अच्छे से सोच और रात को जब मैं वापिस आऊँगा तो या तो तू ख़ुद ये सूट पहन कर मेरे पास आ जाना और या फिर मैं ख़ुद तुझे ये सूट पहनाऊँगा.

इतना कह आमिर वहाँ से चला जाता है और उस कमरे को फिर से बाहर से बंद कर देता है. आमिर अपने आदमियों के साथ किसी काम के सिलसिले वहाँ से चले जाता है और घर को बाहर से बंद कर दिय. कल्पना अपनी पूरी जान लगा कर ख़ुद को छुड़ाने की कोशिश करती है वो ख़ुद को रस्सियों से छुड़ा लेती है और जैसे-तैसे आमिर के घर से भी बाहर निकल जाती है और अपने घर वापिस भाग जाना चाहती थी. लेकिन जैसे बाहर निकल कर जैसे ही सड़क पर पहुँचती है वो वहाँ के वातावरण को देख हैरान हो गयी थी. वो देखती उस सड़क के किनारे पर जितनी भी दुकाने थी उन सभी दुकानों का नाम उर्दू भाषा में लिखा हुआ था. आदमी सफ़ेद या काले कुरते पजामे में आ-जा रहे थे और औरतें बुर्के में थी और उसे मस्जिद से अलाह-हु-अकबर की आवाज़ें आ रही थी. कल्पना फलों की दुकान के पास खडी थी जिसका मालिक एक बुजुर्ग था. उसका नाम “इमरान” था. उससे पूछा की “अंकल ये कौन सी जगह है.” तुम्हे कहाँ जाना है बेटी इमरान ने पूछा. “अंकल मुझे मुंबई से थोड़ी एक गाँव है वहीँ जाना है कल्पना ने कहा.  

“इमरान - लेकिन बेटी मुंबई तो हिन्दोस्तान में है और ये तो पाकिस्तान है.” ये सुन कल्पना एक दम से चौंक गयी के वो कहाँ पहुँच गयी. एक ऐसा देश जहाँ उसकी पहचान सिर्फ़ एक हिन्दोस्तानी है. कल्पना इधर-उधर नज़र घुमाई तो उसे जगह-जगह पर आमिर अली के पोस्टर लगे दिख रहे किसी राजनीति लोगों के साथ. कल्पना ये देख कर भी हैरान थी. कल्पना फिर उसे अंकल से पूछा आमिर अली की पोस्टर की और इशारा करते हुए की “अंकल ये कौन है”.

इमरान- इनका नाम आमिर अली है ये बहुत बड़े व्यापारी है पाकिस्तान के और इस साल राजनीति  में भी आ रहे है नेता बनने के लिए. व्यापारी क्या एक नंबर के गुंडे ये लोग. अरे पूरी की पूरी गैंग है इनकी. यहाँ की सरकार, पुलिस सब इनके अधीन है सब जगह इसी की चलती है. कट्टर मुसलमान है इनके सभी बन्दे और इनकी सबसे बड़ी दुश्मनी है औरत जात से. इनके लिए तो बस लड़कियाँ  सिर्फ घर के काम के लिए बनी है. तेरे ही जैसी मेरी 20 साल की बेटी थी “फातिमा” बहुत खूबसूरत थी और उसे पड़ने का बहुत शौंक था. लेकिन इस कमीने आमिर ने सब लड़कियों का स्कूल जाना बंद करा दिया और फ़तवा जारी करा दिया लड़कियों के स्कूल जाने के खिलाफ़ लेकिन,  फातिमा जिद्दी थी बोली स्कूल जाना हमारा हक़ है और उसने अपने साथ अपनी दोस्तों को इकठा करके स्कूल जाने की माँग की और बात पूरे पाकिस्तान में पानी की तरह फैली और बाक़ी लड़कियाँ  भी फातिमा के लिए खड़ी होने लगी. हमने उसे खूब समझाया लेकिन वो नहीं मानी. आमिर को ये बात बहुत खली एक बार जब वो सुबह स्कूल जाने के लिए निकली बीच बाजार उसे गोलियाँ सो भुन दिया गया. मैंने अपने इसी हाथों उसे दफनाया. अलाह इसे कभी ख़ुशी नहीं देगा एक बार इसको इसका क़र्ज़ चुकाना पड़ेगा लेकिन मुझे मेरी बेटी पर गर्व था क्यूँ कि वो औरों  के लिए लड़ी थी और वो मरी नहीं हमारी नज़र में शहीद हुई है.” और वो बुजुर्ग की आँखों में आँसू आ चुके थे अपनी बेटी की दास्तान सुना कर. “लेकिन तुम इतनी परेशान क्यूँ हो बेटी क्या परेशानी है मुझे बताओ : इमरान बोलता है”

कल्पना ये सुन ख़ामोश थी और वहाँ  से वापिस आमिर के घर जाने लग गयी. क्यूँ कि उस आदमी के कहने के अनुसार वो भाग कर कहीं नहीं जा सकती थी. क्यूँ कि बिना पासपोर्ट के वो वापिस हिन्दोस्तान नहीं जा सकती थी और यहाँ की सरकार और पुसली सब आमिर के अधीन थे और इस अनजान देश में किसी को जानती तक नहीं थी. वो भाग कर कहीं नहीं जा सकती थी आमिर के आदमी जगह-जगह फैले हुए थे. लेकिन कल्पना एक बात समझ आ गयी थी की सिर्फ़ हिन्दोस्तान में ही लड़कियों के साथ ऐसा सलूक नहीं होता था और भी देश थे जहाँ पर लड़कियों की दुनिया सिर्फ़ घर की चार दीवारी तक सीमित थी. कल्पना ये भी समझ चुकी थी की रहीम जैसे लड़के मासूम हिन्दू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फसा लेते थे और उनमें  से कुछ लड़की प्यार के जाल में बिलकुल अंधी हो जाती वो अपना धर्म परिवर्तन कर लेती थी और कुछ के साथ ये लोग हिन्दू रीती रिवाज़ में शादी करने के बाद उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव डालते थे शादी के बाद लड़की मजबूर हो जाती थी और मजबूरी में धर्म परिवर्तन कर लेती थी और कल्पना जैसी लड़कियाँ  जो धर्म परिवर्तन करने से मना कर देती थी पहले उन्हें मारते-पीटते थे अगर फिर नहीं मानती थी और डटी रहती थी तो ऐसी लड़कियों को हिन्दोस्तान से समुन्दर के ज़रिये पाकिस्तान लाया जाता था क्यूँ कि ना तो वो उन लड़कियों को छोड़ सकते थे क्यूँकि उनके गिरोह का भाँडा फूट जाता और ना ही उन्हें मार सकते थे क्यूँ कि वो उनसे अच्छी कमाई कर सकते थे और इसीलिए वो उन्हें पाकिस्तान लाकर बेच देते थे.  

लेकिन उस बुजुर्ग की बेटी फातिमा की कहानी सुनने के बाद कल्पना अन्दर भी कुछ उसके जैसा करने का एहसास जागने लग गया था. जैसे फातिमा बाकि लड़कियों के लिए लड़ी थी. वैसे ही अब कल्पना भी लड़ना चाहती थी. कल्पना इस गिरोह को ख़तम तो नहीं कर सकती थी क्यूँ  कि इस गिरोह में आकाश न तो पहला शख़्स था और ना ही आमिर आखिरी. ऐसे बहुत से लोग थे जो आम लोगों के बीच एक हिन्दोस्तानी बन कर घूम रहे थे और लड़कियों के विश्वासों  से खेल रहे थे. लेकिन कल्पना उन तीनो लड़कियों की जान बचा कर कुछ तो कर सकती थी जो इस वक़्त रहीम(आकाश) के घर कैद थी और कल्पना को उन लड़कियों के पास सिर्फ एक आदमी के ज़रिये पहुँच सकती थी और वो था आमिर अली. कल्पना वापिस उसी कमरे में बैठ गयी जहाँ पर आमिर ने उसे कैद किया था. जब रात को आमिर वापिस घर पर आया तो सीधा कल्पना के पास पहुँचा और पूछा कि  उसने क्या फैसला लिया. तो कल्पना ने जवाब दिया की उसे कुछ वक़्त चाहिए तैयार होने के लिए. ये आमिर मुस्कुराने लग गया. कल्पना नहा कर आमिर के दिए हुए हरे सूट को पहनने लग गयी थी. इस बीच आमिर अपने लोगों के साथ बैठ कर शराब पी रहा था और फिर उसने अपने सभी दोस्तों को जाने के लिए बोल दिया. उसके घर पर काम करने वाले काका को भो जाने को बोल दिया और जो उसके बॉडीगार्ड थे उन्हें भी. आमिर अपने कमरे में था और कल्पना आमिर के दिए सूट में उसके कमरे में आती है वो बहुत खूबसूरत लग रही थी.

आमिर उसे अपने करीब लाता है. जैसे ही वो कल्पना की और करीब आता है कल्पना उसके पेट में चाकू घुसा देती है. आमिर ये देख हैरान हो जाता है और दर्द से तड़पने लग जाता है कल्पना उसे धक्का देकर बिस्तर पर गिरा देती है. वो दो-तीन बार फिर से गुस्से में उसके पेट में चाकू घुस देती है और आमिर वही मर जाता है. कल्पना आमिर का फोन उठाती है और आमिर के फोन से रहीम(आकाश) को मैसेज भेजती की “रहीम मुझे तुमसे जरूरी काम है अभी के अभी घर आओ और हाँ सुनो अकेले आना किसी के साथ नहीं”. कल्पना उसके फ़ोन को अपने पास रख लेती है. उधर रहीम को जैसे ही वो मैसेज मिलता है वो फ़ौरन गाड़ी में आमिर के घर के लिए निकल पड़ता है और कल्पना घर से बाहर निकल कर दरवाजा बंद कर देती है और खुद को घर के बगल में छुपा लेती है. रहीम आमिर के घर पर पहुँचता है वो गाड़ी से निकलता है घर के अन्दर चले जाता है इस बीच कल्पना उसकी गाड़ी के पास पहुँचती है डिक्की को खोलती है और उस डिक्की के अन्दर छुप कर बैठ जाती है और डिक्की को बंद कर देती है. उधर घर के अन्दर रहीम आमिर को ढूँढ रहा होता है और जैसे ही वो आमिर के कमरे के अन्दर पहुँचता है वो आमिर की लाश को देख कर हैरान हो जाता है तभी रहीम को एक और मेसेज आता है आमिर के फ़ोन से की “आमिर को तो बचा नहीं पाया अब उन तीन लड़कियों बचा सकता है तो बचा ले मैं उसे छुड़ाने वाली हूँ कल्पना”. रहीम कल्पना का नाम पढ़कर गुस्से में आ जाता है. उधर कल्पना फ़ोन को बंद कर देती है डिक्की मे बैठे हुए. रहीम तेजी से फिर से गाड़ी में बैठता है और अपने घर पहुँच जाता है जहाँ पर उसने तीनों लड़कियों को कैद किया हुआ था. उस घर में 6 और बन्दे थे जो उन लड़कियों पर निगरानी रख रहे थे. रहीम उन सभी 6 बन्दों को कल्पना की फोटो दिखता है और बोलता की अपने सभी आदमियों को ये तस्वीर भिजवा दो हर तरफ़ ढूँढो कल्पना को. पुलिस तक भी मदद लो हर इक घर और गली को छान मारो.

वो सभी आदमी निकल जाते है कल्पना को ढूँढने के लिए और रहीम घर में अकेला होता है और गुस्से में शराब पी रहा होता है और जैसे ही मुड़ कर दरवाजे की तरफ देखता है कल्पना खड़ी होती है उसी हरे सूट में और पीछे चाकू छुपाया होता है. रहीम गुस्से में अपने हाथ में पकड़े शराब के गिलास को फेंक देता है. वो गुस्से में कल्पना की और बढता है उसके पास पहुँच कर उसे जैसे ही मारने लगता है कल्पना आकाश को पहले ही गले लगा लेती है कल्पना की आँखों में आँसू आ रहे थे. रहीम(आकाश) ख़ुद को कल्पना से दूर करता और देखता है की उसके पेट में चाकू घुस हुआ था. कल्पना उस चाकू को निकलती है और फिर से घुसा देती है और साथ में रो भी रही थी. क्यूँ कि कहीं न कहीं वो आकाश को बहुत प्यार करती थी. वो उसका पहला प्यार था और उस पर बहुत विश्वास करती थी. आकाश ज़मीन पर गिरा जाता है और तड़पने लग जाता है. कल्पना भाग कर उन लड़कियों के कमरे में पहुँचती है जहाँ पर उन्हें बंदी बनाया हुआ था. तीनों लड़कियाँ कल्पना को देख हैरान हो जाती है. कल्पना सभी के हाथ-पैर खोलती है और भागने लग जाती है घर के दरवाजे के पास रहमान गिरा होता है वो उन्हें देखता है और बोलता है की तुम कभी बच नहीं पाओगी पूरा पाकिस्तान तुम्हे ढूँढने में लग जायेगा. कल्पना और बाक़ी तीन लड़कियाँ  वहाँ से भाग जाती है और रहीम तड़प रहा होता है. उनके भागने के बाद आमिर का छोटा भाई रशीद अपने साथियों के साथ रहीम के पास पहुँचता है रहीम तड़प रहा होता है और रशीद उससे पूछता है की कहाँ है वो तो रहीम इतना ही बता पाता है की कल्पना को ढूँढो बस बाक़ी की तीनो लडकियाँ उसी के साथ होंगी और कल्पना ने ही आपके भाई आमिर और मुझे मारा है. इतना कह कर रहीम मर जाता है.

रशीद को गुस्से से आग बबूला हो जाता है उसके आदमी रशीद कल्पना की तस्वीर पकड़ते है और बोलते है की भाई यही है कल्पना. हमारे पास बाक़ियों की तस्वीर नहीं है लेकिन वो इसी के साथ होंगी. रशीद अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था और गुस्से में ऐलान कर देता है की पूरे एरिऐ  एक-एक घर की तलाशी लो, सड़कों की तलाशी लो, पुलिस को भी आगाह करो वो चारों बच कर नहीं निकालनी चाहिए और पाकिस्तान से बाहर जाने वाले सभी गैरकानूनी रास्तों पर अपने आदमियों को खड़ा कर  दो. उस पूरे एरिये में हलचल मच जाती है. रशीद के आदमी सड़कों पर कारें, बाइक्स, पैदल तलवारें लेकर सड़कों पर कल्पना को ढूँढने निकल जाते है. घर-घर की तलाशी लेनी शुरू कर देते है. क्यूँ कि कहीं न कहीं उन्हें गिरोह के भेद खुल जाने का भी डर था. उधर कल्पना और बाक़ी लड़कियाँ  घबराते हुए भाग रही होती है. जगह-जगह पर उन्हें आमिर के आदमी मिलते है और किसी तरह से उनकी नजरों से बचते हुए आगे बढ़  रहे होते कल्पना देखती है की जिस और वो भाग रहे सामने से आमिर के बन्दे आ रहे थे. वो खुद और बाकि तीनो लड़कियों के लेकर बाएँ तरफ बंद गली में छुप जाती है. वो देखते की आमिर के बन्दे उस गली के पास से गुज़रते हुए निकलते है गाड़ियों पर हाथो में बंदूके पकड़े हुए. जैसे ही वो लोग निकल जाते है कल्पना उस गली से बाहर निकलते ही बुजुर्ग आदमी से टकरा जाती है और बुजुर्ग आदमी के सारे फल जमीन पर गिर जाते है. वो बुजुर्ग आदमी कोई और नहीं इमरान था. जिस इमरान ने कल्पना को आमिर के बारे में बताया था और अपनी बेटी फातिमा की कहानी बताई थी. इमरान उसे देख कर पूछता है की क्या हुआ बेटी इतनी घबराई हुई क्यूँ हो. कल्पना जैसे ही इमरान को देखती है थोड़ी राहत मिलती है उसे “अंकल प्लीज हमे बचा लीजिये आमिर के आदमी हमारे पीछे पड़े हुए है. कल्पना बोलती है”

क्यूँकि इमरान आमिर से नफ़रत करता था क्यूँ कि उसी ने उसकी बेटी को मरवाया इसीलिए वो सभी लड़कियों को बचाते हुए अपने घर ले जाता है. इमरान अपने घर के दरवाजे पर खड़ा होता है और ताला खोल रहा होता है कल्पना और बाकी लड़कियाँ  उसके साथ खड़ी होती है घबरायी हुई. जब इमरान सभी को लेकर घर के अन्दर जाता है तब इमरान के घर के सामने वाले घर में एक आदमी था मुस्तुफा जो इमरान के साथ उन चारों लड़कियों को अन्दर जाते देख रहा था. मुस्तुफा को थोड़ा  अजीब लगा क्यूँ कि इससे पहले इमरान के घर कभी कोई लड़की नहीं आती थी. कल्पना इमरान को सारी कहानी बता देती की क्या क्या हुआ था उन सब के साथ और ये भी बता देती है उसने आमिर का खून कर दिया और रहीम का भी और अब उसके आदमी हमारे पीछे पड़े है. एक बार के लिए तो इमरान को सुक़ून मिलता है की जिसने उसकी बेटी को मारा था उसे आज किसी ने मार दिया था. अब इमरान को भी मौत का डर नहीं था क्यूँकि उसकी बेटी का बदला कल्पना जैसी लड़की ने ले लिया था इसीलिए अब वो उसकी मदद करने को तैयार था और उन्हें वादा करता है तुम सभी को मैं कल ही हिन्दोस्तान के लिए रवाँ करवा दूँगा चाहे कुछ भी हो जाए. वो अपने दोस्त “अकरम” को फोन करता है और आधी रात को अकरम इमरान के पास पहुँचता है जहाँ पर इमरान अकरम को पूरी कहानी बता देता है.

अकरम चारों लड़कियों यहाँ पर देख हैरान हो जाता है और उसने कहा की अभी आपके घर आते वक़्त आमिर के आदमियों ने मुझे कल्पना की तस्वीर दिखाई और पूछ रहे थे की इसे देख या नहीं. बहुत खतरनाक है चारों लड़कियों का बचना अभी कल सुबह तक वो उस एरिया में भी पहुँच जायेंगे और एक-एक घर की तलाशी लेंगे. तो इमरान अकरम को बोलता है कुछ भी हो जाये कल तक इन्हें पाकिस्तान से रवाना करना है हमे. तो अकरम एक सलाह देता है की पाकिस्तान से जो माल बाहर भेजा जाता है कंडेनर में भर कर शिप के ज़रिये इंडिया को वो कंडेनर वाली शिप उसका बड़ा भाई चलाता है. मैं उसे बोल कर इन चारों लड़कियों को चुप-चाप उस कंडेनर में कहीं छुपा देंगे एक बार शिप पकिस्तान से निकल गयी उसके बाद कोई खतरा नहीं होगा. लेकिन अगर हम पकड़े गए तो हमारे पूरे परिवार को ख़तम कर दिया जायेगा. इसीलिए हमे संभल कर निकलना होगा और शिप सुबह निकलेगी 9 बजे तक. इस दरमियाँ  आमिर का भाई रशीद हर तरफ कल्पना को ढूँढ रहा होता है. अगली सुबह अकरम उन चारों लड़कियों को बुरका पहना देता है. कल्पना उस बुजुर्ग इमरान का बहुत धन्यवाद करती है. अकरम, कल्पना और बाक़ी  की तीनों  लडकियाँ  इमरान के घर से पीछे के दरवाजे से निकल जाते है. जहाँ से उन्हें कोई देख नहीं पाता. सभी लड़कियाँ  बुर्के में होती है. इमरान अलाह से दुआ करता है की चारों को सही सलामत हिन्दोस्तान पहुंचा दे. बचते बचाते सभी लडकियाँ  शिपयार्ड पर पहुँच जाती है अकरम के साथ. वहाँ  पर अकरम का भाई वसीम खड़ा  होता है और सभी को अपने साथ चलने के लिए कहता है. वो चारों लडकियाँ शिप के पास पहुँच जाते है और जैसे शिप में जाने लग जाते है पीछे से कुछ आदमी वसीम को रुकने को बोलते है वसीम, अकरम और सभी लड़कियाँ  रुक जाती है. वो आमिर के ही आदमी होते है क्यूँ कि आमिर के भाई रशीद ने पकिस्तान से बाहर जाने के सभी गैरकानूनी रास्तों पर निगरानी रखने को कहा था इसीलिए वो वहाँ खड़े होते है. उनमे से एक के पास कल्पना की तस्वीर होती है.

दूसरी तरफ मुस्तुफा जिसने रात को चारों लड़कियों को इमरान के घर जाते देखता था वो सड़क से अख़बार ले रहा था वो अपने घर से काफी दूरी पर था. उस अख़बार वाले के पास आमिर का भाई रशीद पहुँचता है और उस अखबार वाले को कल्पना की तस्वीर देता है और बोलता है की तेरे पास जो भी आदमी आये उससे इसके बारे में पूछना. मुस्तुफा पास में ही खड़ा होता है वो रशीद से सवाल करता है की इसे क्यूँ ढूँढ रहे हो तो रशीद बताता है इस लड़की ने आमिर और रहीम दो लोगों  का ख़ून किया है और अपने साथ तीन लड़कियों को लेकर फरार है. ये चारों लडकियाँ  कहीं छुपी हुई इसीलिए ढूँढ रहे है सबको, तो मुस्तुफा तस्वीर देखता है और बताता है की यही लड़की थी. कल आधी  रात के वक़्त मेरे सामने वाले घर में इमरान भाई कल चार लड़कियों के साथ आये थे और चारों लडकियाँ  बहुत घबराई हुई थी. ये सुन रशीद ख़ुश हो जाता है और मुस्तुफा को गाड़ी में बिठाता है और इमरान के घर के ले-जाने लिए बोलता है.

उधर शिपयार्ड पर आमिर के आदमी वसीम के पास पहुँचते है और पूछते है की ये चारों लडकियाँ  कहाँ जा रही है तो वसीम बोलता है मेरी बहने है भाईजान शिप घुमाने को बोल रही थी इसीलिए साथ ले जा रहा था इन चारों को. तो आमिर का आदमी बोलता है की हमे भी चार लड़कियों की ही तलाश है कहीं ये ही तो नहीं, वसीम बोलता है की नहीं भाई ये तो मेरी बहने है. तो आमिर का आदमी बोलता है ठीक है तो चेक करा. सभी डर जाते है की जैसे अब सभी का खेल ख़तम होने वाला हो. आमिर का आदमी अपनी जेब से कल्पना की तस्वीर निकलता है और चारों लड़कियों को लाइन में खड़ा कर देता है और कल्पना सबसे पीछे खड़ी होती है. आमिर का आदमी पहली लड़की का बुरका हटाता है और कल्पना की तस्वीर इसे उसका चेहरा मिलाता है नहीं मिलने वो उसे साइड कर देता है. फिर दूसरी लड़की का बुरका हटा कर चेहरा देखता है वो भी नहीं मिलता है फिर से भी साइड कर देता है. फिर तीसरी लड़की का चेहरा हटाता है वो भी कल्पना से नहीं मिलता उसे भी साइड कर देता है और फिर वो कल्पना के पास पहुँचता है. सभी डर जाते है और सभी के माथे से पसीने छूटने लग जाते है. कल्पना भी डर मारे के रो रही होती है की अब वो पकड़ी गयी. वसीम और अकरम भी डर के मारे लाल हुए होते है. वो जैसे ही कल्पना का बुरका हटाने लगता है अचानक उसका फ़ोन बजता है वो कल्पना के बुर्के को छोड़ देता है और फ़ोन उठता है और कुछ सेकंड की बात के बाद वो फ़ोन काट देता है. सभी फिर से डर जाते है और आमिर का आदमी कल्पना की तस्वीर को जमीन पर फेंक देता है और बुरका पहनी कल्पना को बिना ही देखे जाने के लिए बोलता है सभी हैरान होते है और वसीम सभी को शिप के अन्दर जल्दी से जाने के लिए बोल रहा होता है. लेकिन कल्पना हैरान थी कि ये क्या हुआ इसीलिए वो धीरे धीरे चल रही थी. आमिर का दूसरा आदमी उससे सवाल करता है की भाई क्या हुआ उसे जाने क्यूँ दिया तो वो बोलता है की रशीद भाई का फ़ोन आया था बोल रहे थे की उन चारों लड़कियों का पता चल गया है की वो कहाँ पर छुपी है वो सभी किसी बुजुर्ग इमरान के घर पर छुपी हुई थी. वो सभी वहीँ पर पहुँच रहे है और हमे भी पहुँचने का आर्डर है और उन चारों लड़कियों के साथ-साथ उस बुजुर्ग इमरान को भी मारने का आर्डर है.

कल्पना इसे सुन लेती है की इमरान को मारने का आर्डर है आमिर के सभी आदमी इमरान के घर को निकल जाते है. उधर कल्पना और बाक़ी लडकियाँ शिप में चढ़ जाती है. लेकिन जैसे शिप चलने वाली होती है तब कल्पना को लग रहा होता है उसकी बजाय वो बेचारे इमरान को मार दिया जायेगा. उसे बचाना होगा इसीलिए वो बाक़ी तीनों लड़कियों को जाने के लिए बोलती है और कहती है मुझे जाना होगा इमरान अंकल को बचाने. वसीम बोलता है की इस बार तुम गयी तो वापिस नहीं आ पाओगी. तो कल्पना कहती है नहीं मुझे अपनी परवाह नहीं मुझे इमरान अंकल को बचाना होगा. सभी के मना करने के बावजूद भी कल्पना शिप से उतर कर इमरान के घर की तरफ भागने लग जाती है. वो जहाँ से आई थी उसी रास्ते से जाने लग जाती है क्यूँ कि  इमरान के घर से शिप यार्ड का रास्ता जादा दूर नहीं था. उधर वसीम बाक़ी तीनों लड़कियों को बोलता हमे जल्दी निकलना हमें खतरा हो सकता है हम कुछ ही ही देर कल्पना का इन्तेज़ार कर सकते है बस. उनमे में से एक लड़की बोलती है की कल्पना ज़रूर वापिस आऐगी.

उधर रशीद अपने तीन आदमियों के साथ इमरान के घर की तरफ जा रहा होता है उसके साथ मुस्तुफा बैठा होता है. रशीद और उसके तीन आदमियों की बड़ी-बड़ी काली दाढ़ी, सर पर काली मुस्लिम पगड़ी, काला कुरता-पजामा, चेहरे पर हैवानियत और हाथों में बड़ी-बड़ी बंदूके थी. उधर कल्पना पीछे के रास्ते से इमरान के घर के अन्दर आ जाती है और अगली तरफ के रास्ते के दरवाजे को बंद करने लग जाती है. इमरान कल्पना को यहाँ देख कर हैरान होता है और पूछता है की बेटी तू यहाँ क्या कर रही है तो कल्पना बोलती है की अंकल आपको भी हमारे साथ चलना उन लोगों को पता लग गया है की अपने हमे पनाह दी और अब आपको भी मारने के आर्डर है. तो इमरान बोलता है तो मर जाने देती बेटी तुम यहाँ क्यूँ आई मरने. “अपने ही तो कहा था ना की आपकी बेटी मेरे जैसी थी दिखने में और अपने मेरी मदद भी की थी तो आपकी बेटी आपको मरने के लिए कैसे छोड़ देती  - कल्पना बोलती है”

उधर रशीद मुस्तुफा से पूछता है इमरान के घर से बाहर जाने के कितने रास्ते है तो मुस्तुफा बताता है की एक रास्ता पीछे के दरवाजे से भी है. रशीद अपने आदमियों को फ़ोन करता है जो शिप यार्ड पर चेकिंग कर रहे थे और बोलता है इमरान के घर को पीछे से घेरने के लिए. कल्पना इमरान को जल्दी से पीछे के रास्ते से निकलने के लिए बोलती है. कल्पना और इमरान जैसे पीछे के दरवाजे से बाहर निकलते है वो देखते है आमिर के आदमीयों ने पीछे से उन्हें घेर लिया है. अब उनके पास कोई रास्ता नहीं था आगे के इलावा. इसीलिए वो पीछे के दरवाजे को जोर से बंद कर देते है. उधर रशीद इमरान की गली में पहुँच जाता है और मुस्तुफा उसे इमरान का घर दिखता है तो एक गाडी इमरान के घर के आगे आकर रूकती है और मुस्तुफा गाड़ी के रुकते ही उतर जाता है और भाग जाता है. कल्पना और इमरान जैसे आगे के रास्ते की और जाते है. रशीद ज़ोर ज़ोर  से उस दरवाजे को खटखटाने लग जाता है. वो लोग दरवाजा तोड़ कर अन्दर घुस गए. वो कल्पना की ओर बड़े लेकिन इमरान उन्हें हाथ जोड़ कर रोकने लग गया. तो रशीद ने इमरान को गोली मार दी. वो ज़मीन पर गिरा और मर गया.

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अब कहानी वापिस वहीं  आ जाती जहाँ कहानी की बिलकुल शुरू से शुरुआत  हुई थी. जिसमे चार लोग इमरान को मार कर कल्पना के हाथ-पैर  बाँध कर एक चौराहे पर ले जाते है. और फिर रशीद कल्पना के सामने बन्दूक तान देता है. कल्पना को मालूम था की उसकी मौत होने वाली थी और वो इससे ख़ुश थी. क्यूँ कि वो अब जीना नहीं चाहती थी. क्यूँ कि मौत से ज्यादा ज़ख़्म उसे ज़िन्दगी ने दिए थे. रशीद उससे पूछता है कि बाकी की तीन लडकियाँ  कहाँ है कल्पना बताने से इनकार कर देती है. उसी भीड़ में अकरम खड़ा हुआ जिसने कल्पना की भी मदद की थी. रशीद फिर से पूछता है की बाकी की तीन लडकियाँ  कहाँ है कल्पना खामोश रहती है. वो भीड़ की तरफ देख रही थी ज़िन्दगी की भीख माँगने के लिए नहीं बल्कि वो उस भीड़ में अपनी माँ को तलाश रही थी की कहीं उसकी माँ आ जाये और उसे गले लगा ले. वो अपनी माँ की गोद में चैन के नीद सोना चाहती थी जिसे काफी अरसा हो गया था. लेकिन वो खुश थी क्यूँ की जिस आमिर के कारण वो अपनी माँ से जुदा हुई थी और जो उसने कल्पना के साथ किया उसने उसका बदला ले लिए था और आकाश जैसे उसकी ज़िन्दगी की किताब में था ही नहीं. उसके दिल में अगर कोई चीज़ खल रही थी तो बस एक सवाल की क्यूँ उसकी माँ ने उसके सौतेले पिता को चुन कर उसे घर से भागने को कहा. क्यूँ  उसकी माँ उसके साथ नहीं आई. और शायद आज के बाद उसे इसका जवाब कभी नहीं मिलेगा. रशीद ने आखिरी बार कल्पना से पूछा कि बाक़ी  की लडकियाँ कहाँ है लेकिन कल्पना अब भी ख़ामोश रही.

रशीद को गुस्सा आया और गुस्से में उसने कल्पना पर गोली चला दी और पहली गोली कल्पना के पेट में जाकर लगी. कल्पना ज़मीन पर गिर जाती है उसकी आँखों से पानी आ रहा था उसके मुँह से ख़ून निकल रहा था. वो तड़प रही थी उसकी मौत उसके नजदीक थी. उधर अकरम अपने भाई वसीम को फ़ोन कर देता है जल्दी से जलदी शिप को ले जाओ कल्पना मर चुकी है. ये ख़बर सुन कर बाकी की तीन लडकियाँ रोने लग जाती है लेकिन उनकी आँखों में कल्पना के लिए गर्व के आँसू थे और वसीम उन लड़कियों को लेकर निकल जाता है. रशीद फिर दूसरी गोली चलाता और वो गोली कल्पना के पेट में जाकर लगती है. वो तड़प रही होती है लेकिन उसकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा होता. लेकिन वो इन आखिरी पल में भी अपनी माँ को याद कर रही थी. कहते है की इंसान ने जो अपने पिछले जनम कर्म किये होते है उसे अगले जनम में भुगतने पड़ते है यही भगवान् बनायीं दुनिया का एक पहला रुल था. लेकिन आज मैं इससे सहमत नहीं थी क्यूँ कि  मैं जानता थी की भगवान् इतने निर्दयी नहीं हो सकते थे. रशीद फिर से तीसरी गोली चलाता है और वो गोली कल्पना के माथे पर लगती है उसका शरीर पूरा लहूलुहान हो जाता है वो अपनी आँखों को बंद कर लेती और अपने दिल में बस एक सवाल लिए की क्यूँ माँ मुझे नहीं चुना का जवाब पाए बिना इस दुनिया से अलविदा हो जाती है और कल्पना मर जाती है.

PLACE: INDIA

अचानक एक किताब बंद होती है और प्रकाश की आँखें भरी होती है. दरअसल प्रकाश एक किताब के ज़रिये कल्पना की कहानी को पढ़ रहा था और प्रकाश के सामने विजय नाम का लड़का बैठा था जिसकी उम्र 24 साल थी. कल्पना की ये कहानी पड़ कर प्रकाश विजय से कहता है “तो कल्पना को इसका जवाब नहीं मिला की क्यूँ उसकी माँ ने ये फैसला लिए और क्यूँ वो कल्पना के साथ नहीं भागी”.

विजय- कल्पना की माँ सावित्री ने बिलकुल सही फैसला लिया और ये बात कल्पना भी जानती थी. जब सावित्री आठ महीने के गर्भ से थी और अपने पति विजेंद्र के साथ हॉस्पिटल चेकअप के लिए गयी थी वो कोई इतेफाक नहीं था बल्कि विजेंद्र का प्लान था और जब विजेंद्र वापिस लोटे तब देखा की आमिर ने उसकी बेटी का बलात्कार कर दिया था और सावित्री तब जयादा हैरान हुई थी जब विजेंद्र आमिर से इसके बदले में पैसे ले रहा था और जब सावित्री ने विजेंद्र से इस बारे में झगडा किया. उस वक़्त विजेंद्र ने बोला की ये मेरा ही प्लान था और मैं जानता हूँ की आमिर ने कल्पना का बलात्कार किया है और अब मैं पुलिस को फोन करूँगा और पुलिस यहाँ पर पहुँचेगी...केस दर्ज होगा और पुलिस आमिर को पेश होने के लिए कहेगी.आमिर पेश होगा..पंचायत भी बैठाई जाएगी और तब पूरी पंचायत के सामने मैं रोने का नाटक करूँगा कि  मेरी बेटी की जिंदगी बर्बाद हो गयी है अब उससे कोई शादी नहीं करेगा और उस वक़्त आमिर कल्पना से शादी के लिए हाँ कर देगा और माफ़ी माँगेगा..पुलिस को हमने पहले ही पैसे चढ़ा  दिए है और तुम तो जानती पंचायत के सामने अक्सर ऐसे केस में लड़की की शादी ही कर दी जाती है और जब गुस्से में आकर सावित्री के बीच हाथापाई हो जाती है तब विजेंद्र कल्पना के पेट पर बहुत बुरी तरह से लातें मारता है जबकि वो आठ महीने के गर्भ से होती है और कल्पना ने जब रॉड मार कर विजेंद्र को बेहोश कर दिया था उसके बाद सावित्री  को जबरदस्ती वहाँ से भगा देती है ताकि जो आज हुआ था वो उसके साथ आगे ना हो. वो जानती थी पंचायत में फैसला कल्पना की शादी का ही लिया जायेगा इसीलिए उसने उसे भगा दिया.

प्रकाश- लेकिन जवाब तो अभी भी नहीं मिला की वो क्यूँ नहीं भागी उसके साथ.

विजय- क्यूँ की सावित्री को मालूम था की उसकी मौत होने वाली थी..जिस तरह से विजेंद्र ने सावित्री के पेट पर लात मारी थी उसे बहुत दर्द हो रहा था लेकिन वो कल्पना के सामने इस दर्द को दबा रही थी और कल्पना के आँखों से ओझल होने के बाद वो ज़ोर-2 से चिल्लाने लग गयी पूरा गाँव इकठ्ठा हो गया विजेंद्र बेहोशी से उठ गया. सावित्री को हॉस्पिटल ले जाया गया जहाँ पर डॉक्टर ने बोला की पेट पर वार होने की वजह से बच्चे की हालत नाज़ुक है इसीलिए उसे एक महीने पहले ही डिलीवर करना पड़ेगा वर्ना बच्चे की मौत हो सकती है इसीलिए एक महीने पहले ही सावित्री की डिलीवरी का ऑपरेशन किया गया लेकिन उस ऑपरेशन में सावित्री की मौत हो गयी थी और वो बच्चा जिंदा बच गया. इसीलिए कहीं न कहीं सावित्री को इस बात का पता लग चूका था की उसकी मौत होने वाली थी और वो जानती थी वो कल्पना के साथ भाग नहीं पायेगी और उसकी मौत के बाद कल्पना की शादी ज़बरदस्ती आमिर के साथ कर ही दी जाएगी.

प्रकाश- लेकिन आप इतने विस्तार से इस कहानी के बारे में कैसे जानते है.

विजय- क्यूँ उस दिन सावित्री ने जिस बच्चे को जनम दिया वो मैं ही था. लेकिन मेरी माँ सावित्री बच नहीं पाई. सावित्री मेरी माँ थी, कल्पना मेरी बहिन और अपने पिता को मैं कभी मैंने अपना पिता माना नहीं.

प्रकाश- और आपके यानी की कल्पना के सौतेले पिता कहाँ है अब.

विजय- उन्हें उनके कर्मो का फल मिल गया. बहुत दर्दनाक मौत हुई उनकी. वो कैंसर से पीड़ित थे और पूरी पूरी रात दर्द से चिल्लाते थे तड़पते थे. बार-बार कहते थे की की कैंसर के कीड़े उसे अन्दर से खा रहे है लेकिन वो कैंसर के नहीं उनके कर्मो के कीड़े थे. जब मैं 16 साल का था तब उनकी मौत हुई थी और मरने से पहले ही उन्होंने मुझे कल्पना और सावित्री के बारे में बताया था और तब से लेकर अब तक मैं अपनी बहिन कल्पना को ढूँढता रहा...तक़रीबन 6 साल तक मैं अपनी बहन कल्पना को तलाशता रहा और उसकी की तलाश मुझे पाकिस्तान ले गयी लेकिन उसके बाद कल्पना गायब हो गयी नहीं मिली क्यूँ कि उसकी पाकिस्तान में मौत हो गयी थी.

प्रकाश- इसीलिए हम आपके पास आये और इस वुमन डे पर कल्पना की कहानी को हम दुनिया तक पहुँचाऐंगे.....

विजय- ज़रूर....ताकि पूरी दुनिया को इन लोगों के बारे में पता लग सके.....क्यूँ कि कल्पना अकेली ऐसी लड़की नहीं थी उससे पहले और उसके बाद ना जाने कितनी ऐसी लडकियाँ थी जिनकी ज़िंदगियाँ  यूँ ही  गायब हो गयी थी. ना जाने कितनी लड़कियों  को प्यार के जाल में फँसा कर धर्म परिवर्तन कराया गया और जो नहीं मानी उन्हें बेच दिया और वो कहाँ गयी किसी को कुछ पता नहीं लगा....इसीलिए इस किताब का नाम भी “DISSEPEAR  WOMAN’S LIFES”  रखा था.

 

 

                       

                             THE END

 


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