लव एट कैफ़े कॉफ़ी डे
लव एट कैफ़े कॉफ़ी डे
गोवा के मीरामार, समुद्र किनारे बैठी निधि, ऊपर आसमान में घर लौटते पशु-पक्षियों की ओर देख रही थी। शाम के साढ़े-छ: बज गये थे। और धीरे-धीरे सूरज ढलता हुआ नज़र आ रहा था। इसके कारण नज़ारा और भी सुन्दर हो गया था।
निधि एक इक्कीस-बाईस साल की बी. ए ग्रेजुएट थी। उसे कहानी लेखन का बड़ा शौक था। वह एक कहानी पर, पिछले एक महीने से काम कर रही थी, जो अब पूरी होने ही वाली थी। कहानी का सिर्फ आखरी अध्याय बचा हुआ था। समुद्र किनारे बैठकर वह अपनी कहानी के आखरी अध्याय के बारे में सोच रही थी। काफ़ी देर वह सोचती रही, फिर उसे लगा कि उसे एक कप कॉफ़ी की जरूरत है।
वह कॉफ़ी पीने नज़दीक के ही कैफ़े कॉफ़ी डे (सी.सी.डी) में चली गयी। हमेशा की तरह, आज भी वहाँ भीड़ बहुत थी। निधि एक खाली टेबल पर जाकर बैठ गयी। उसने अपने लिए कोल्ड कॉफ़ी ऑर्डर की और वह अपनी कहानी की स्क्रिप्ट पढ़ने लगी।
लगभग छब्बीस-सत्ताईस साल का एक शख्स, एक हाथ में कॉफ़ी का ग्लास पकड़े, फ़ोन पर बात करते-करते निधि की तरह आ रहा था। उसका पैर टेबल से टकराया और हाथ में जो कॉफ़ी का ग्लास था, वह निधि के टेबल पर गिर गया और उसकी पूरी स्क्रिप्ट ख़राब हो गयी।
"ये क्या किया आपने ?" निधि ने गुस्से से पूछा।
"आय ऍम सॉरी; गलती से गिरा।"
"सॉरी ? आप जानते भी है, आपने क्या किया है ?"
"पता है, मैंने सिर्फ कॉफ़ी गिराई है।"
"शट आप। आपने मेरी पूरी कहानी पर पानी फेर दिया।कुछ ही दिनों में मुझे ये कहानी सब्मिट करनी थी।"
"ओ! आय ऍम रियली सॉरी, मिस ऑथर।"
"फिर से सॉरी ? क्या आपकी इस सॉरी से मेरी स्क्रिप्ट ठीक हो सकती है ?" निधि उसपर चिल्लाई।
"कहानी की राइटर आप ही है ना ?"
"हा, तो ?"
"तो फिर से लिखो इसमें कौनसी बड़ी बात है ?"
"पगाल हो आप ? पूरा महीना लगा मुझे इसे पूरा करने में।"
निधि उससे ऊँची आवाज़ में बात कर रही थी। कैफ़े में मौजूद सब लोग उन दोनों की तरफ़ ही देख रहे थे। उस शख्स ने निधि से घबराये हुए स्वर में पूछा,
"अगर आपको कोई दिक्कत न हो, तो मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ?"
"क्या ये जगह मेरी है ?"
"जी नहीं, पब्लिक प्लेस है।"
"तो फिर आप मुझसे क्यों पूछ रहे है ?"
"एक कहानी के खातिर आपको इतनी टेंशन लेने की कोई जरुरत नहीं है।"
"क्यों ?"
"बिकॉज़ एव्री मोमेंट इस अ स्टोरी। ये बात मैंने कई बार सुनी है।'
"इतना आसान नहीं है जितना आपको लगता है।"
"क्यों ना मैं आपकी मदद करू ?"
"आपने कहानी बिगाड़ने में काफ़ी मदद की है मेरी।"
"प्लीज़, मे आय ?"
"ओके; बताओ आपके पास कोई कॉन्सेप्ट है ?"
"है ना, जो कुछ भी अभी हुआ है, वो सब लिख लो और इसपर एक कहानी बनाओ; सिम्पल।"
"मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ।"
"मैं कहाँ मज़ाक कर रहा हूँ ?"
"बहुत शुक्रिया, पर मुझे आपकी मदद की कोई ज़रूरत नहीं। वैसे भी मुझे देर हो रही है, मुझे अब चलना चाहिए।"
जब निधि घर पहुँची, तो वह काफ़ी गुस्से में थी। पूरे एक महीने की मेहनत उसने बरबाद कर दी। वह मन ही मन सोचने लगी- 'मेरी ही स्क्रिप्ट मिली थी क्या उस पागल को कॉफ़ी गिराने के लिए ?' एक ज़ोर का तमाचा लगाने का जी कर रहा था उसका, मगर क्या करती ? पहले से ही लोग देख रहे थे। इस वजह से उसने ज्यादा कुछ कहा नहीं। वह मन ही मन उसे बुरा भला कहती रही।
निधि के पास और कोई रास्ता नहीं था। एक हफ़्ते के अंदर कैसे भी कर, उसे कहानी सब्मिट करनी ही थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इतने कम समय में कैसे कर पायेगी ?
फिर उसे उस शख्स की बात याद आ गयी। 'एव्री मोमेंट इस अ स्टोरी' वैसे उसने गलत तो बिलकुल भी नहीं कहा था। निधि ने जल्दी से कलम उठाई और आज जो कुछ भी हुआ, सब लिख दिया।
अगले दिन शाम, निधि फिर उस समुद्र किनारे जा बैठी।वह आगे की कहानी सोच रही थी। तभी किसीने पीछे से आकर उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने मुड़ कर देखा तो वही कॉफ़ी वाला शख्स था।
"अब क्या मुझ पर कॉफ़ी गिराने आये है ?" निधि ने उसे देखते ही गुस्से से कहा।
उसके हाथ में एक गुलाब का फूल था, जो उसने निधि को सॉरी कहते हुए दे दिया।
"हाय मिस ऑथर; मेरा नाम समीर और आप ?"
"निधि।"
"वैसे क्या करती है आप ?"
"मुर्दों को ज़िन्दा करती हूँ।"
"जी ? ये कौनसा काम है ? ये तो डॉक्टर्स भी नहीं कर सकते।"
"तो फिर आप जानते हुए भी पूछ क्यों रहे है ?"
"आप बड़ी जल्दी गुस्सा हो जाती है।"
वह अपना काम करने लगी और समीर वहाँ चुपचाप बैठकर उसे देखता रहा। निधि के खुले हुए बाल, होठों पर हलकी सी मुस्कान, मासूम सी शकल और प्यारी सी आँखों को समीर निहार रहा था।
"निधि, सी.सी.डी चले ?"
"क्यों ? फिर कॉफ़ी गिरानी है आपको ?"
"तो फिर, कही और चले ?"
"कही नहीं, मुझे बस घर जाना है। "
"ठीक है। चलो मैं छोड़ देता हूँ। "
"नहीं, मैं चली जाउंगी। आपको बेवजह तकलीफ़ क्यों ?"
"बेवजह तो नहीं कह सकती आप। इसके पीछे 'कॉफ़ी' एक बहुत बड़ी वजह है।"
इस बात पर निधि और समीर हँस पड़े।
रात के करीब एक बजे, समीर हस्पताल से घर लौट रहा था। एक इमरजेंसी सर्जरी के कारण उसे काफ़ी देर हो गयी थी। घर पहुँचते ही वह उसी हालत में बिस्तर पर पड़ गया। उसके कमरे में सारी चीज़े यहाँ-वहाँ बिखरी पड़ी थी। कुछ कपड़े नीचे जमीन पर गिरे हुए थे। टूथ ब्रश तो सोफ़े के नीचे पड़ा था। उसका कमरा किसी स्टोर रूम से कम नहीं लग रहा था। वह इतना थका हुआ था, कि सब सामान ठीक से रखना भी उसने मुनासिब नहीं समझा और वैसे ही सो गया।
सुबह साढ़े-चार बजे एक फ़ोन कॉल ने उसकी नींद ख़राब कर दी। उसने फ़ोन उठाया तो पता चला, कि हस्पताल में एक इमरजेंसी केस है और पेशेंट की हालत गंभीर है।इसलिए उसे तुरंत ही हस्पताल के लिए निकलने को कहा।
समीर के लिए तो जैसे मुसीबत खड़ी हो गयी, जब उसे अपनी कुछ चीज़े जगह पर नहीं मिली। पहले तो उसे टूथ ब्रश नहीं मिल रहा था। उसे ढूंढने में पन्द्र मिनट ऐसे ही चले गये। फिर उसकी शर्ट, जिसे इस्त्री की जरूरत थी।इस्त्री करने में वक्त लगेगा इसलिए उसने बिना इस्त्री किये ही पहन ली। जब उसने आईने में देखा, तो उसे अजीब लगा। उसने शर्ट उतरी और इस्त्री कर के फिर पहन ली और हस्पताल के लिए निकल पड़ा।
सर्जरी के बाद, समीर रेस्ट रूम में बैठा हुआ था। रात को उसकी नींद ठीक से पूरी नहीं हो पायी थी और सवेरे-सवेरे दिन की शुरुवात तो एक इमरजेंसी से हुई। थोड़ा देर से हस्पताल पहुँचने के लिए उसे डाँट भी सुननी पड़ी। वह थका हुआ था और थोड़ा परेशान भी लग रहा था। ये सारी बातें उसके दिमाग में चल रही थी। तभी एक नर्स आयी और उसे कहने लगी,
"डॉक्टर, एक्सीडेंट का केस है, आपको तुरंत इमरजेंसी वार्ड में बुलाया है।"
"ठीक है, मैं आता हूँ।"
वह जब इमरजेंसी वार्ड पहुँचा, तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। जो भी उसने देखा, उसपर उसे यकीन ही नहीं हो रहा था।
कुछ समय बाद...
निधि ने जब आँखें खोली, तो समीर को देख कर वह थोड़ा चौक गयी। वह घबराई हुई भी लग रही थी। समीर ने उसे पानी पिलाया।
"निधि, रिलैक्स।"
"आप यहाँ कैसे ?"
"डॉक्टर्स को हॉस्पिटल में ही होना चाहिए ना निधि ?"
"आपने कभी बताया नहीं।"
"आपने कब मुझे बताने दिया ? वैसे मैं जान सकता हूँ कि ये एक्सीडेंट कैसे हुआ ?"
"शाम के समय मैं घर लौट रही थी और रोड़ क्रॉस करते समय, पता नहीं कैसे किसी की गाड़ी से टकराई।"
"आप इतनी लापरवाह कैसे ? छोटी बच्ची नहीं है आप।"
"डाँट सुनने का अब मेरा बिलकुल भी मन नहीं है, डॉक्टर साहब।"
"आप आराम करो। मैं आपसे बादमें मिलता हूँ।"
"ठीक है।"
अगले दिन सुबह, समीर निधि को देखने गया। दीवार पर जो पोस्टर्स थे, निधि उनकी तरफ़ देख रही थी। समीर को वह परेशान सी नज़र आयी। वह जाकर उसके पास बैठ गया। पता नहीं निधि किस ख्याल में इतनी डूब गयी थी, कि उसे समीर के आने तक का पता नहीं चला।
"कहाँ खोई है आप ?" जरा यहाँ देखने का कष्ट उठाइये।
"आप कब आये ?"
"दो मिनट से यही बैठा हूँ।"
"सॉरी।"
"किस बात की फ़िक्र है आपको ?"
"मेरी कहानी अभी तक पूरी नहीं हुई।"
"आपको इस हालत में भी कहानी की पड़ी है ?"
"हा।"
"अच्छा ठीक है। आप अपनी स्क्रिप्ट मुझे दे दो, मैं लिख देता हूँ आपके लिए।"
"क्या आप कैसे लिख पायेंगे ?"
"बिगाड़ी भी तो मैंने ही थी और अब ठीक भी मुझे ही करनी होगी। आप उसकी फ़िक्र मत करो। मैं कर लूंगा।"
"ठीक है। वैसे मैं कल घर जा सकती हूँ ना ?"
"हाँ, पर जाने से पहले मुझे स्क्रिप्ट देकर जाना और इस शनिवार को मैं आपकी कहानी पूरी कर के दे दूंगा।"
जब निधि हस्पताल से घर गयी, तो समीर के बारे में सोचती रही। उन दोनों की कैफ़े में पहली मुलाकात, वह याद कर रही थी। समीर का चेहरा जैसे उसकी आँखों में बस गया था और वह मन ही मन मुस्कुरा रही थी। इस समय उसके मन में काफ़ी सारे सवाल चल रहे थे। शनिवार का उसको बेसब्री से इंतज़ार था, क्यों कि वह उससे जल्द से मिलना चाहती थी। अब उसे समीर पसंद आने लगा था।
शनिवार की शाम, निधि तैयार हो कर समीर का इंतज़ार कर रही थी। वह उसे लेने आने वाला था। पहले कभी भी उसने इस तरह से किसी की राह नहीं देखी थी। मगर अब उसकी आँखों में समीर का इंतज़ार साफ़ नज़र आ रहा था। उसे आते देख निधि का चेहरा ख़ुशी से खिल उठा।
"हाय, डॉक्टर साहब।"
"हेलो, मिस ऑथर।"
"कैसी तबियत है आपकी ?"
"बिलकुल ठीक हूँ।"
"अगर आपकी इजाज़त हो, तो क्या हम सी.सी.डी चल सकते है ?"
"हाँ।"
निधि के मुँह से,'हाँ' यह जवाब सुनकर समीर हैरानी से उसकी तरफ़ देखता रहा। क्यों कि पहले तो वह किसी भी बात के लिए साफ़ इनकार किया करती थी। समीर उसको सी.सी.डी ले गया, जहाँ उनकी पहली मुलाकात हुई थी।
"आज भी मुझे डाँट सुननी पड़ेगी निधि ?"
"क्यों ? फिर से कॉफ़ी गिराने का इरादा है ?"
"नहीं, कभी नहीं। ये कहानी मैंने बड़ी मेहनत ने पूरी की है । सच में, ये सब बिलकुल भी आसान नहीं है।"
"वैसे, आपने उस दिन सही कहा था। 'एव्री मोमेंट इस अ स्टोरी' आप ही ने उस दिन बिगाड़ी थी और आज आपने ही इसे मेरे लिए पूरी की है।"
"ये रही आपकी कहानी, निधि जी।"
"बहुत अच्छी है। पर एक बात की कमी है।"
"क्या ?"
"शीर्षक।"
"वो हम बादमे देख लेंगे; अभी मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।"
"कौनसी बात ?"
समीर ने एक कागज के टुकड़े पर कुछ लिख दिया और उसे दे दिया। उसे पढ़ कर निधि थोड़ी सी मुस्कुराई। एक पल के लिए दोनों एक दूसरे की आँखों में खो गये। फिर निधि बोली,
"ये आप कह भी सकते थे।"
"आप बस सुनाती रहती है; कभी कुछ कहने नहीं देती, इसलिए लिख दिया। जवाब, हा या ना ?"
"आय लव यू टू डॉक्टर साहब।"
"आपकी कहानी का शीर्षक मिल गया निधि।"
"क्या ?"
"लव एट कैफ़े कॉफ़ी डे।"