Rajiv Ranjan Sinha

Comedy Thriller

4.4  

Rajiv Ranjan Sinha

Comedy Thriller

लॉरी ड्राइवर

लॉरी ड्राइवर

6 mins
570


जनवरी का महीना है। पटना के बाइपास से एक लॉरी हनुमान नगर के ९० फ़ीट पर रात के बारह बजे उतरती है। लॉरी सामानों से पूरी तरह से से पैक है। ९० फ़ीट पर उतरते ही ड्राइवर इधर-उधर देखने लगता है। तभी उसकी नज़र एक राहगीर पर पड़ती है। 

ड्राइवर राहगीर से पूछता है, “पाटलिपुत्र कॉलोनी जाना है।”

राहगीर हाथ से इशारा करते हुए कहता है, “आगे दाएं और फिर बायें जाकर आगे का रास्ता किसी से पूछ लेना।”

“ठीक है।” कहकर ड्राइवर गाड़ी आगे बढ़ा देता है। 

आगे जाने पर उसे तिराहा मिलता है। उसे समझ में नहीं आता है कि अब किधर जाना है। तभी उसकी नज़र एक राहगीर पर पड़ती है। 

वह उससे पूछता है, “पाटलिपुत्र कॉलोनी जाने का रास्ता किधर से है?”

राहगीर बाएं वाले रास्ते को दिखाते हुए कहता है, “इस रास्ते से आगे जाने पर एक पुल दिखेगा। पुल पर चढ़ने के बाद दाहिने हो जाना। पुल से उतरने के बाद किसी से पूछ लेना।”

“ठीक है।” कहकर वह गाड़ी आगे बढ़ देता है।

पुल से नीचे उतरने के बाद उसे चौराहा मिलता है। किधर जाना है इस दुविधा में वह गाड़ी रोक देता है। वह सोचता है ‘दिन का वक़्त होता तो वह किसी दुकान वाले से पूछ लेता। रास्ते पर इतने लोग होते हैं कि किसी से भी पता पूछा जा सकता था। पर आधी रात में.....’ तभी उसकी नज़र एक राहगीर पर पड़ती है। 

“वह राहगीर से पाटलिपुत्र कॉलोनी का रास्ता पूछता है। राहगीर उसे रास्ता बताते हुए कहता है कि आगे किसी से पूछ लेना।”

ड्राइवर गाड़ी आगे बढ़ाते हुए सोचता है ‘ये तो वही आदमी था जिससे मैंने पहले और दूसरी बार रास्ता पूछा था। नहीं ….ऐसा कैसे हो सकता है? पैदल वह इतनी दूर मुझसे पहले कैसे पहुंच सकता है? मेरा भ्रम होगा।’ 

आगे बढ़ते हुए उसे एक गोलंबर दिखता है। जहां से उसे छह तरफ़ जाने का रास्ता दिखता है। वह इधर-उधर देखते हुए किसी आदमी की तलाश करने लगता है। जो उसे रास्ता बता सके। तभी उसकी नज़र एक राहगीर पर पड़ती है। वह राहगीर को आवाज़ देता है। राहगीर उसकी अवाज़ सुनकर उसके समीप चला आता है। राहगीर पर नज़र पड़ते ही ड्राइवर के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती है। ठंड के मौसम में भी वह पसीने से लथपथ हो जाता है। वह अंदर से इतना डर जाता है कि उसे घबराहट-सी होने लगती है। वह घबराहट में उससे कुछ पूछ नहीं पाता है। उसकी बोलती बंद हो जाती है। 

राहगीर कहता है, “ये पाटलिपुत्र कॉलोनी ही है। जाना कहां है?”

ड्राइवर गमछे से माथे का पसीना पोछते हुए धीमी आवाज़ में कहता है, “स्कू ..... ल..... के पास।”

राहगीर, “यहां बहुत सारे स्कूल हैं। कौन-से स्कूल के पास जाना है ?”

वह कमीज़ के पॉकेट से एक कागज़ का टुकड़ा निकालकर उसकी तरफ़ बढ़ा देता है। 

राहगीर कागज़ के टुकड़े को लेकर उसमें लिखे स्कूल का नाम पढ़ते हुए कहता है, “स्नहे किडस पैराडाइज़ जाना है।” वह हाथ से इशारा करते हुए कहते है, “यहां से सीधे जाने पर बाएं की तरफ़ एक मोड़ मिलेगा। गाड़ी जैसे ही बाएं की तरफ़ मोड़ोगे तो पहला मकान छोड़कर दूसरा मकान जो दिखेगा वही स्कूल है।”

ड्राइवर गाड़ी आगे बढ़ा देता है। वह अंदर से बेहद घबराया हुआ है। वह उसके बताये मोड़ से आगे बढ़ा जाता है। फिर उसे याद आता है कि उसे तो पहले वाले मोड़ में ही मुड़ना था। वह गाड़ी को पीछे करते हुए मोड़ के पास चला आता है। फिर वह गाड़ी का स्टीयरिंग बाएं की तरफ़ मोड़ते हुए आगे बढ़ता है। मोड़ से दूसरे मकान के कंपाउंड में उसे लाइट जलते हुए दिखती है। कंपाउंड की दीवार पर उसे स्कूल का एक बड़ा सा बोर्ड टंगा हुआ दिखता है। वह स्कूल से आगे बढ़ते हुए गाड़ी को एक एटीएम के पास रोक देता है। वह गाड़ी से उतरकर एटीएम के पास चला जाता है। एटीएम के अंदर उसे एक गार्ड दिखता है। वह गार्ड से एक पता पूछता है। गार्ड उसे मोड़ के पास वाले मकान के बारे में बता देता है। वह गाड़ी को पीछे करके उस मकान के पास रोक देता है। मकान के बरामदे में बल्ब जल रहा होता है। वह गाड़ी से उतरकर मकान के दरवाज़े को खटखटाता है। तीस-बत्तीस साल का एक शख़्स दरवाज़ा खोल देता है। 

“राम प्रसाद जी का मकान यही है ?” कहकर ड्राइवर गाड़ी की तरफ़ देखने लगता है। 

शख़्स कहता है, “हां यही है।”

ड्राइवर पॉकेट से एक कागज़ निकालते हुए पूछता है, “वो हैं क्या ?”

शख़्स, “नहीं वो बाहर गए हुए हैं।”

“आपका सामान ......” कहते हुए उसकी नज़र जैसे ही उस शख़्स पर पड़ती है। वैसे ही वह लड़खड़ाकर गिरते हुए बेहोश हो जाता है।

जब उसे होश आता है तब वह ख़ुद को एक बिस्तर पर पाता है। वह हड़बड़ाकर बैठ जाता है। बैठते ही उसकी नज़र कुर्सी पर बैठे एक शख़्स पर पड़ती है। ड्राइवर उसे आंखें फाड़कर देखने लगता है। 

शख़्स उससे पूछता है, “कैसे हो ? तुम बेहोश क्यों हो गए ?”

ड्राइवर डरते हुए उससे पूछता है, “आप कौन हैं?”

वह कहता है, “मैं भूत हूं।”

“क्या?” कहते हुए उसकी चीख़ निकल जाती है। 

वह ड्राइवर से कहता है, “चुप…. तुम्हें क्या लग रहा है ?”

“आ… आ… प …. भ…. भू… त।” ड्राइवर हकलाते हुए कहता है।

शख़्स मेज़ पर रखे जग से एक गिलास में पानी उड़ेल देता है। 

गिलास उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहता है, “तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है ? पहले तुम पानी पी लो।”

ड्राइवर एक ही झटके में गट-गट करते हुए पूरा पानी पी जाता है। 

फिर वह थोड़ा सामान्य होते हुए कहता है, “बाइपास से उतरने के बाद हर जगह मुझे आप ही मिले। मैं जब भी किसी से पता पूछने के लिए गाड़ी रोकता तब उस जगह पर आप ही मुझे पता बताते। ये कैसे हो सकता है कि हर जगह पर आप मुझे पता बताने के लिए मौजूद हों। आप किसी सवारी से होते तो मैं मान भी जाता। पर आप तो पैदल थे। तब भला एक पैदल चलता आदमी मुझसे पहले किसी जगह पर कैसे पहुंच सकता है? ऐसा काम तो केवल भूत ही कर सकता है। मुझे यहां से जाने दो।”

शख़्स कहता है, “और, सामान का क्या होगा ?”

“कौन-सा सामान?” ड्राइवर बिस्तर पर से उठते हुए कहता है। 

शख़्स, “जो तुम दरभंगा से लेकर आये हो।”

“वो सामान गाड़ी में.....” ये कहते हुए ड्राइवर रूक जाता है। फिर वह उसकी तरफ़ देखते हुए कहता है, “मैंने तो आपको बताया भी नहीं था कि सामान कहां से आया है। तब आपको पता कैसे चला?”

उसकी बातें सुनकर शख़्स मुस्कुरा देता है। और, मुस्कुराते हुए वह कहता है, “तुम सही कह रहे हो। हर जगह मैं ही था। मैं और मेरे मालिक राम प्रसाद जी दो दिन पहले दरभंगा गए हुए थे। हम लोगों का मखाने का कारोबार है। वहां से मखाना लाना था। हम लोग किसानों से ही मखाना ले लिया करते हैं। किसान ने कहा कि दो दिन में यहां से एक लॉरी मखाना लेकर जायेगी। मेरे मालिक वहीं ठहर गयें। जबकि मैं आज दो बजे की बस पकड़कर वहां से निकल गया। हाजीपुर में भयंकर जाम था। चार-पांच घंटे के बाद जाम छूटा। बस को पटना बाइपास पहुंचते-पहुंचते बारह बज गए। हनुमान नगर ९० पर हम उतर गए। रात बहुत हो चुकी थी। कोई सवारी नहीं मिल रही थी। सवारी का इंतज़ार करते हुए मैं वहीं पर टहल रहा था कि तुमने मुझसे पाटलिपुत्र कॉलोनी जाने का रास्ता पूछ लिया। हम सोंचे कि तुम से ही कहेंगे कि तुम हमें भी लेते चलो। तभी मेरी नज़र लॉरी के अंदर पड़ी। देखा कि सीट पर एक आदमी सो रहा है। जगह नहीं थी तो मुझे कहना अच्छा नहीं लगा। पर जब मेरी नज़र तुम्हारी लॉरी के पीछे पड़ी तब मुझे लगा कि मैं पीछे लटक कर जा सकता हूं। और, यही काम मैंने किया। जहां भी तुम्हारी लॉरी रूकती वहां मैं उतरकर रास्ते पर चलने लगता। ये सोचकर कि कहीं तुम गाड़ी से उतरकर पीछे की तरफ़ न आ जाओ। हर जगह यही हुआ। गोलंबर के पास अगर तुम मुझे घर का पता बता देते तो उसी समय मैं तुम्हें यहां ले आता। पर तुमने वहां मुझसे स्कूल का पता पूछा।”

ड्राइवर राहत की सांस लेते हुए पूछता है, “क्या तुम सचमुच में भूत नहीं हो ?”

“मैं भूत नहीं चुड़ैल हूं..... चुप जब से मिला है तब से भूत भूत किये जा रहा है। जाओ बोरिया सब अंदर रखवाओ।” कहते हुए वह हंस पड़ता है।


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