लघु कथा ----दौलत और रिश्ते
लघु कथा ----दौलत और रिश्ते
जो हरी-हरी दिखती है दौलत वही होती है, यही तो जानते हैं हम l इसी दौलत का अभिमान करते हुए अपनों का भी दिल दुखाने से पीछे नहीं रहते l
सुमी भी इसी डंस से डस ली गयी थीl घर में नई बहु के पाँव क्या पड़े माँ बाप भी अहंकार से भर उठे l वो बेटी जो किसी बेटे से बढ़कर निश्छल भाव से हर जिम्मेदारी को ख़ुशी ख़ुशी-ख़ुशी निभा रही थी कि झुमके की चोरी का इलज़ाम लगा बैठी और आज भरे घर में तलाशी भी दे दीl
कम्बख़त ये दौलत सुख और मान कम बढ़ाती है दुःख और अपमान ज्यादा ही देती है, सुकून भी कम देती है छीनती ज्यादा है और तो और रिश्ते जोड़ती कम, तोड़ती ज्यादा हैl आज सुमी की मेहनत, लगन, ईमानदारी, प्यार उसके सादे से लहंगे और नकली मोतियों के रंग में डूब गये थेl नई बहु की मुँह दिखाई में दिए हीरों के हार की चमक सुमी के चेहरे पर तो थी लेकिन घर वाले कांच की चमक से ऊपर नहीं उठ पा रहे थेl साधारण से घर में ब्याही सुमी सोच स्वाभिमान और व्यवहार से सभी के दिलो की प्यारी थीl कहते है कि वक़्त के साथ रिश्ते भी बदल जाते हैं ....माँ बाप की अकेली बेटी भाइयों की अकेली प्यारी दीदी ... अपमान की सहेली और आज घर में सबसे अकेली हो गयी थी l