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कोरोना की जंग में हम लापरवा क्यों?
आज विश्व में कोरोना महामारी अपना रौद्र रूप दिखा रही है।जिसमे कई विकसित देश भी चपेट में आ चुके है।जहाँ पर स्वास्थ्य सुविधा भी बहुत अच्छी है।लोगो को वहाँ पर लॉक डाउन करके एवं कोरोना की जाँच करने के पश्चात क्वारन्टीन एवं आईशोलेशन में रखा जा रहा है। कई देशों की स्थिति भी नियंत्रण में आ चुकी है।
इसी बीच भारत के कईं स्थानों खासकर दिल्ली से कुछ विचलित करने वाली तस्वीरें आ रही है जहां से गरीब मजदूर वर्ग हजारों की तादाद में पैदल ही अपने घरों की तरफ कूच कर रहा है।लोगों के अंदर इतना भय कैसे व्याप्त हो गया यह भी प्रश्न चिन्ह उठा रहा है?लोग अपने अपने घर के लिए पैदल ही चल दिए है।जबकि केंद्र सरकार द्वारा 21 दिनों की लॉक डाउन किया जा चुका है। लोगो को जागरूक होकर उचित जहाँ पर रह रहे है। वहीँ पर रहना चाहिए था।राज्य सरकारों को केंद्र के साथ मिलकर एक ठोस रणनीति बनानी चाहिए थी। जिससे लोग भुखमरी एवं असहाय महसूस न करते एवं सरकार का इस जंग में सहयोग करते।
हालाँकि यह सही भी है कि ऐसे आपातकाल में इंसान अपने घर जाना चाहता है। लेकिन चिंता की बात यह है कि लोग मधुमक्खी के छत्ते की तरह झुंड बनाकर चल रहे हैं। जेबें खाली, बाजार बंद और यातायात का साधन नहीं, फिर किसके भरोसे लोग छोट-छोटे बच्चों के साथ सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर निकल पड़े हैं। केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण से पैदा संकट से निपटने के लिये 15 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान कर दिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कह दिया कि दिल्ली में गरीब लोगों को खाने किल्लत नहीं होगी। दिल्ली सरकार की मानें तो रैन बसेरों के साथ-साथ स्कूलों में भी खाने की व्यवस्था की जा रही है।दूसरे प्रदेशों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। यदि इन सब इंतज़ामों के बावजूद लोग पैदल ही अपने-अपने घरों की तरफ जा रहे हैं तो व्यवस्था प्रणाली में कोई न कोई दोष जरूर रह गया है। दिल्ली वाले दिल्ली जा रहे हैं, बिहार वाले बिहार जा रहे हैं, यूपी वाले यूपी जा रहे हैं, मध्य प्रदेश वाले मध्य प्रदेश जा रहे हैं।बिहार के नेता बिहारियों की चिंता में दिल्ली फोन कर रहे हैं, दिल्ली के लखनऊ, लखनऊ के हरियाणा और राजस्थान के गुजरात। ऐसा प्रतीत होता है कि कोरोना महामारी से उत्पन्न इस आपा-धापी में न तो कोई दूसरे प्रदेशों के लोगों को आश्रय और भोजन देने का इच्छुक है और न ही कोई दूसरे प्रदेशों में ठहरने और खाने-पीने का इच्छुक है।
एक प्रश्न यह भी उतपन्न होता है कि ऐसे भयानक संक्रमण काल में किसी को घर जाने से रोकना और किसी को 500-600 किलोमीटर चलकर घर जाने की सलाह देना, दोनों ही स्थितियां सही नहीं है। ऐसे में घर से दूर रुकने वाला भी बाद में संक्रमित हो सकता है और घर जाने वाला अपने परिवार,गांव, बस्ती में संक्रमण ले जा सकता है।
जनसंख्या में भारत से बहुत छोटे मगर कहीं ज्यादा विकसित देश इटली में कल एक ही दिन में कोरोना ने 919 लोगों की जान ले ली। हम तो अभी इतने कोरोना पाज़ीटिव लोगों की पहचान भी नहीं कर पाए। कोरोना अब उस स्तर पर आ चुका है जहां जरा सी लापरवाही हुई तो हमें सोचना तो क्या सांस लेने तक का मौका नहीं मिलेगा। इतना सबकुछ होने के बाद सरकारें लोगों को यातायात के साधन मुहैया करा रही है।यह अच्छी बात है कि लोग अपने अपने घर पहुँच तो जाएंगे परन्तु एक बात सरकार एवं आम नागरिकों को सोचने वाली यह है कि जब वह अपने अपने गाँव पहुँचेंगे तो स्थिति कितनी विकट होने वाली है। राज्य सरकारों को अब यह ध्यान देने की जरूरत है कि अब जितने लोग आ रहे है उनको सर्वप्रथम स्कूल या अन्य जगह एक कैम्प बना कर पहले 14 दिन क्वारन्टीन में रखे उनकी जाँच करें।जो स्वस्थ्य हो उनको घर जाने दे। जो संक्रमित हो उनको तत्काल उपचार करवाए।देश हित के लिए और कड़ाई से लॉकडाउन का पालन करवाए।लोग अभी जागरूक नही दिख रहे है। लोग इस महामारी के समय भी हिन्दू -मुस्लिम, जात- पात, क्षेत्र की राजनीति में खोए हुए है।जो कि आने वाले भारत के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है। हम सभी को स्वविवेक एवं स्वयं से घर में रहना चाहिए। और राष्ट्र हित में अपना महान योगदान देना चाहिए।क्यों कि अगर 'जान' है तो 'जहान' है।
जय हिंद, जय हिंद के निवासी...