लालच

लालच

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आरुष- तुम ठीक हो अब ?

श्रेया-काफी हद तक।

आरुष- अचानक क्या हो जाता है तुम्हें ?

श्रेया- वो बहुत ही गलत था।

आरुष- इतनी बड़ी बात नहीं थी श्रेया।

श्रेया-बड़ी बात नहीं थी ? उस दुकानदार ने 200 की चीज़ 600 में दी।

आरुष- अरे तो सब करते है आजकल, बिज़नेस है।

श्रेया-मुझे नफरत है लालची लोगो से।

आरुष-इतनी की उसका सिर फोड़ दिया, जैसे तैसे मामला रफा दफा करवाया मुझे ही पता है।

श्रेया-मैं उसका मर्डर कर देती।

आरुष-हे भगवान शांत हो जाओ अब।

श्रेया- कॉल कर लूं ? फ्री हो तो ?

आरुष- फ्री हूं पर कॉल से कोई फायदा नहीं।

श्रेया- ऐसा क्यों ?

आरुष- फोन में कुछ दिक्कत है या तो मुझे सुनाई नहीं देता या सामने वाले को।

श्रेया- तो दूसरा ले लो।

आरुष- अभी नए फोन के लिए पैसे नहीं है।

श्रेया- महंगा लेना होगा तुम्हें ?

आरुष- हाँ।

श्रेया- एक काम करो नेट पर सर्च मारो किसी साइट पर जहाँ पुराने फोन मिलते है।

आरुष- पुराना नहीं लेना मुझे।

श्रेया- बात तो सुनो, कई बार पैसे वाले लोग नया फोन लेकर इस्तेमाल नहीं करते, क्योंकि उससे बेहतर वर्जन आ जाते है।

श्रेया- शायद सेल में मिल जाए।

आरुष- हम्म कोशिश करता हूं, चलो बाय

सिस्टम मैसेज- आरुष सेल साइटस खंगालता हैं, एक नया फोन उसे सेल के लिए दिखता है पर उस पर कोई फोन नम्बर नहीं है केवल पता है

सख्त जरूरत और नए फोन के लालच में आरुष वहाँ जाने की सोचता है

श्रेया का मैसेज

श्रेया- और हीरो देखा कोई फोन ?

आरुष- हाँ बस निकल रहा था, बहुत महंगा फोन चिल्लर में मिल रहा है।

श्रेया- मतलब ? इतना लालच सही नहीं आरुष, लालच घर बर्बाद कर देता है। बात तो करो पहले वहाँ पर।

आरुष- नहीं, उस पर कोई नम्बर नहीं है एड्रेस है सिर्फ

श्रेया- ऐसे कैसे ? हमेशा नम्बर होते है

आरुष- किसी लड़की का होगा, इसलिए नम्बर नहीं किया होगा पब्लिक, चलो मैं जा रहा हूं

श्रेया- किस तरफ ?

आरुष- संजय नगर का लास्ट ब्लॉक।

श्रेया- वो तो बड़ा ही सुनसान से एरिया है।

आरुष- हाँ क्योंकि रेलवे ट्रैक बिल्कुल पास में है इसलिए ज्यादा रिहाइशी नहीं है

श्रेया- ठीक है आकर बताना और आते हुए यादव स्वीट्स से रसगुल्ले ले आना।

आरुष- ठीक है जी मैडम।

सिस्टम मैसेज- आरुष अपने दोस्त अरविंद को मैसेज करता है।

आरुष- हेलो दोस्त क्या हाल ?

अरविंद- क्या भाग्य हमारे, मिल गई श्रेया से फुरसत ?

आरुष - अरे यार तू अपनी जगह है श्रेया अपनी जगह।

अरविंद- चल चल काम बता किस काम से फोन किया है ?

आरुष- बहुत कमीना है तू, मेरे साथ जरा संजय नगर तक चल फोन लाना है।

अरविंद- ओहहो पॉकेट मनी आ गई लगता है।

आरुष- नहीं भाई, सेकंड हैंड लेना है साइट पर देखा अभी।

अरविंद- जाँच पड़ताल कर ली ?

आरुष- तू चल ना व्योमकेश बक्शी।

सिस्टम मैसेज- दोनो शाम करीब 6 बजे संजय नगर के बताए हुए एड्रेस पर पहुंचते है

दरवाजा खटखटाने पर एक लड़की दरवाजा खोलती है, वो उन्हें अंदर आने को कहती है जैसे ही दोनो अंदर आकर पीछे घूमते है वो दरवाजे पर नहीं दिखती

अरविंद- अरे ये कहाँ गई ?

आरुष- वो आ रही किचन से।

अरविंद- पर ये तो ?

आरुष-चुप बैठ ना।

सिस्टम मैसेज- वो लड़की उनके ठीक सामने बैठ जाती है,उसके हाथ मे एक मोबाइल बॉक्स है

नीता- मेरा नाम नीता है, और ये रहा फोन।

सिस्टम मैसेज- आरुष बॉक्स को खोलकर फोन देखता है,एकदम नया, लेटेस्ट महंगा फोन, जैसे ही फोन हाथ मे लेता है एकदम से चोंक कर अरविंद की तरफ देखता घूरता है फिर नॉर्मल हो जाता है

आरुष- जी कितना लेंगी इस फोन का ?

नीता- जो आप दे दे।

अरविंद- ऐसे कैसे मैडम ?

नीता- जी बस ऐसे ही, मुझे और नया लेटेस्ट वाला लेना है।

आरुष- पर ये भी नया ही है।

नीता- आपको फोन चाहिए तो पैसे दीजिए और जाइए।

आरुष-5000

नीता- ठीक है।

आरुष- सच मे !! ये कम से कम 70 हजार का फोन है।

नीता- मेरे लिए ये राख है।

सिस्टम मैसेज- फटाफट 5000 रुपए देकर दोनों वहाँ से निकल जाते है

अरविंद-ये लड़की कुछ पागल थी क्या ?

आरुष- जो भी हो हमारा तो फायदा हो गया।

अरविंद- एक बात बता तूने फोन लेने के बाद मुझे घूर कर क्यों देखा था ?

आरुष- मैं क्यों घूर कर देखूंगा ? उस लड़की का असर हो गया शायद.

आरुष- चल यादव स्वीट्स से रसगुल्ले लेकर जाने है।

अरविंद-ओहहो ये भी श्रेया जी का आश है।

सिस्टम मैसेज-दोनो बाइक से उतर कर रसगुल्ले ले लेते है,और श्रेया के घर की तरफ चल देते है. रात के 8 बज चुके रास्ते मे एक सुनसान पार्क के पास आरुष बाइक रोकता है।

अरविंद- क्या हुआ ?

आरुष- टॉयलेट आई है।

अरविंद-चल मुझे भी करनी है।

आरुष- पानी की बोतल और रसगुल्ले लेले कहीं मेरे पैसो के रसगुल्ले कोई और ही खाए।

सिस्टम मैसेज-दोनो एक पेड़ के पास फ्री होकर हाथ धोते है,

अरविंद-सुन एक एक रसगुल्ला खा ले, भूख लगी हैं।

आरुष-नही मैं नहीं खाऊंगा।

सिस्टम मैसेज- तभी आरुष चेहरे को नीचे झुकाकर बोलता है

आरुष- पर मैं खाऊंगा।

अरविंद- क्या है बे ? कभी खाऊंगा कभी नहीं खाऊंगा।

आरुष-ये नहीं खायेगा पर मैं खाऊंगा।

अरविंद- मुझे डराने की कोशिश बेकार हैं, ये ले रसगुल्ला

आरुष-(रसगुल्ला खाने के बाद) चल अब यहीं खड़ा रहेगा, रात में मीठा खायेगा मोटा हो जाएगा।

अरविंद-तूने भी तो खाया अभी।

आरुष-तुझे 2 खाने है ऐसे ही खा ले, मेरा नाम क्यो लगा रहा है ?

सिस्टम मैसेज- इतना कह आरुष बाइक की तरफ बढ़ गया। अरविंद भी हँसते हुए चल दिया।

अरविंद को घर पर छोड़कर आरुष श्रेया के रूम पर जाता, क्योंकि उस दिन उसकी रूम मेट अपने घर गई हुई है।

आरुष- ये लो अपने रसगुल्ले और जल्दी से मेरा मुँह मीठा करो।

श्रेया-अभी बाहर निकाल दूंगी गलत बातें की तो।

आरुष-अरे मैं ही रसगुल्ले लाया, मुझे ही नहीं दोगी।

श्रेया-अच्छा मुझे लगा कि..

आरुष- मुझ पर भरोसा करो।

सिस्टम मैसेज-फिर अचानक गम्भीर होकर बोला

आरुष-किसी पर भरोसा मत करना लोग अपनो का खून बहा देते है।

श्रेया-क्या हुआ तुम्हें ? ऐसे क्यो बोल रहे हो ?

आरुष- क्या बोल रहा हूं ? मुझे तबियत सही नहीं लग रही मैं जा रहा हूं।

सिस्टम मैसेज- आरुष घर पहुँच कर रात 12 बजे मैसेज करता है।

आरुष-श्रेया मुझे डर लग रहा है।

श्रेया- सोए नहीं अभी, मैं एग्जाम की तैयारी कर रही हूं।

आरुष-मैंने अभी कमरे में एक बच्चे को देखा।

श्रेया-🤔🤔🤔🤔

आरुष-मैं लेटा था, मेरे सामने से निकल कर बाहर गया।

श्रेया-मकान मालिक के यहाँ कोई आया हो।

आरुष-वो तो खुद बाहर शादी में गए हुए है।

श्रेया-तुम थके हो नींद में शायद.

एक घंटे बाद

आरुष-अरविंद जगा है तू ?

अरविंद- हाँ, एग्जाम है पूरा कॉलेज जगा है।

आरुष-मेरे कमरे में कोई बच्चा है।

अरविंद- हा हा हा

आरुष-मजाक नहीं है, मैंने श्रेया को भी बताया.. मैं सो नहीं पा रहा वो बार बार मुझे लांघ रहा है सोते हुए।

अरविंद- ओह

आरुष-मेरे रूम का पंखा उल्टा चल रहा है, मैं पागल हो जाऊंगा।

अरविंद-सुन सुन मैं आता हूं, पापा को लेकर वो इन ताकतों से परिचित है।

आरुष- जल्दी आ वो मुझे कमरे के कोने में खड़ा घूर रहा है, मुझे हार्ट अटैक आने वाला है, मैं मरने वाला हूं।

सिस्टम मैसेज- आधे घंटे बाद, अरविंद अपने पिता जो कि आत्माओं से सम्पर्क करने में माहिर है उन्हें लेकर आता है

धर्मेश-आरुष बेटा दरवाज़ा खोलो, हम लोग है।

सिस्टम मैसेज-दरवाजा खुलता है आरुष बिस्तर पर बहुत बुरी हालत में डरा हुआ बैठा है।

धर्मेश-दरवाजा किसने खोला ?

आरुष- उसने।

सिस्टम मैसेज- अरविंद और आरुष इधर उधर देखते है उन्हें कोई नहीं दिखता

अरविंद- हमे बता आरुष शुरू से हुआ क्या ?

सिस्टम मैसेज- इतने में धर्मेश जी अपने इंस्ट्रूमेंट लेकर पूरे कमरे में घूमकर छान बीन करने लगते है

आरुष-मैंने रूम पर आकर लॉक खोला तो लगा कोई बिल्कुल पीछे खड़ा है मेरे।

आरुष-मैं घुमा तो एक छोटे से बच्चे का साया पहले सबसे निचली सीडी पर फिर ऊपर की तरफ भागते हुए देखा

अरविंद- ओहहो क्या है ये सब ?

आरुष-पता नहीं, उसके बाद जो भी हुआ मैंने तुम्हेंं फोन पर बता दिया था।

अरविंद-ये बला कहाँ से पीछे लग गई ?

सिस्टम मैसेज-तभी धर्मेश जी उन्हें चुप रहने को कह कमरे में पड़ी बॉल की तरफ इशारा करते है जो लगातार हिल रही थी।

धर्मेश-तुम्हारी अलमारी की दराज से वाइब्स आ रही है।

आरुष-उसमे केवल कुछ पेपर्स और नया फोन है, ओह नो !!!

धर्मेश- क्या हुआ ?

आरुष- वो..वो..नया फोन सब कुछ उसी के साथ शुरू हुआ है।

अरविंद-चलो फटाफट उसी लड़की के घर चलते है क्या चक्कर हैं।

सिस्टम मैसेज- सब तुरन्त धर्मेश जी की गाड़ी में बैठ संजय नगर निकल पड़ते है

वहाँ पहुँच कर घर के बाहर खड़े होकर गेट खटखटाते है।

धर्मेश-मेरे इंस्ट्रूमेंट बता रहे है यहाँ की वाइब्स और भी ज्यादा स्ट्रांग और नेगेटिव है, तुम्हारे रूम वाली से ज्यादा।

अरविंद-कोई दरवाजा नहीं खोल रहा।

सिस्टम मैसेज-तभी कोई अनजान आदमी आकर उन्हें टोकता है।

अनजान-क्या भाई ? कौन हो ? लॉक लगा है दिख नहीं रहा ?

सिस्टम मैसेज-पहली बार तीनो गौर करते है कि दरवाजे पर लॉक है।

आरुष- पर यहाँ जो लड़की रहती थी ?

अनजान- कौन लड़की ? यहां पिछले 2 सालों से कोई नहीं रहता।

आरुष- लेकिन मैं यहाँ कल आया था।

अनजान- आपको कोई गलतफहमी हुई है, आप कहीं और गए होंगे, यहाँ सब घर एक जैसे ही है।

अरविंद- नहीं यही घर है मैं भी आया था।

अनजान- सुनो तुम लोग यहाँ पर एक परिवार रहता था माँ बाप बेटी और एक छोटा बेटा

अनजान- छोटे भाई का कुछ लोगो ने किडनैप करके मार डाला था, और यहीं रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया था।

आरुष- आप क्या बोले जा रहे हो ?

अनजान-जी यही हुआ था। उसके बाद परिवार घर छोड़ कर चला गया था।

धर्मेश- क्या नाम थे बच्चो के ?

अनजान- अंशु बेटे का नाम और दूसरी बहन श्रेया, हां यही थे।

सिस्टम मैसेज- अरविंद और आरुष हैरानी से एक दूसरे को देखते है, कुछ सोचकर आरुष अरविंद के फोन में सिम डालकर श्रेया को फोन करता है।

श्रेया-क्या हुआ मिस्टर आरुष, मरे नहीं अभी डर कर ?

आरुष-ये सब क्या है ?

श्रेया-लालच , लालची हो सब के सब , महंगे फोन चाहिए सबको।

श्रेया-जानते हो जिन्होंने किडनैप किया था उन्हें महंगे महंगे फोन लेने का शौक था, मेरा मासूम भाई दोनो के लालच की भेंट चढ़ गया।

आरुष-ऐसा क्यों बोल रही हो ?

श्रेया- यहीं सच है केवल अपने शौक के लिए मेरे भाई को किडनैप कर मार डाला वो भी एक फोन के लिए।

श्रेया-भाई को मारकर तीसरे दिन ही ये फोन ले लिया था उन लोगो ने , पर मेरे भाई ने अपनी मौत के पैसे से लिये फोन से उनका जीना हराम कर दिया था।

श्रेया-हा हा हा, खुद ही मर गए डर से तड़प तड़प कर।

आरुष-लेकिन मेरे साथ क्यों ?

श्रेया- लालच, तुम्हें भी लालच था सस्ते में महंगा फोन लेने का, चेताया था तुम्हें मैंने,

आरुष-क्यों कर रही हो ये सब ?

श्रेया-वो दोनो डर से मर गए, पर जब तक कोई खुद अपने लालच से गिल्टी होकर प्राण नहीं देगा, मेरे भाई को मुक्ति नहीं मिलेगी।

आरुष-तो तुम खुद ?

श्रेया- क्योंकि मेरे मन मे लालच नहीं, मेरा भाई नहीं चाहेगा ये।

आरुष-लेकिन ये फोन दो साल पुराना नहीं लगता।

श्रेया- बॉक्स खोल कर तो देखो अबकी बार।

सिस्टम मैसेज-आरुष जल्दी से अरविंद को बॉक्स खोलने को कहता है, दोनो उस समय हैरान रह जाते है जब अंदर से 2 साल पुराना मगर महंगा फोन निकलता है।

आरुष-तुम्हारे माँ बाप ?

श्रेया- विदेश में, पर मुझे अपने भाई को मुक्ति देनी थी मैं नहीं गई।

आरुष- और वो लड़की ?

श्रेया- मैं नहीं जानती उसे, पर वो भी दहेज के लालच की बलि चढ़ी थी भटक रही थी मुक्ति के लिए।

भाई के साथ वो भी मुक्त हो जाएगी, भाई के द्वारा ही सम्पर्क किया था उसने मुझसे।

आरुष- ठीक है मैं दिलवाऊंगा दोनो को मुक्ति।

अरविंद-क्या बकवास कर रहे हो।

आरुष-चुप रहो, मैं जो कर रहा हूं करने दो।

सिस्टम मैसेज- इतना कह कर आरुष वहीं पास में बने रेलवे ट्रैक की तरफ चल देता है, अरविंद और धर्मेश रोकने की कोशिश करते है पर वो इशारे से मना कर देता है।

रेलवे ट्रैक पर पहुँच आरुष बोलना शुरू करता है।

आरुष-अंशु, तुम्हारे साथ बहुत गलत हुआ। पर लालच और मजबूरी में फर्क समझो बेटा,

आरुष-सस्ता फोन लेना मेरी मजबूरी थी, मेरे पास पैसे नहीं थे पर इसके लिए मैंने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया।

आरुष- वो लोग लालची के साथ साथ क्रूर थे, भावनाओ से रहित तभी इतने मासूम से बच्चे को मारा।

आरुष-पर मैं श्रेया से प्यार करता हूं और उससे जुड़ी हर चीज़ से।

आरुष-हर चीज़ की जड़ ये फोन है मैं इसे ही नष्ट कर दूंगा बेटा, जाओ अपने मन से नफरत हटा कर मुक्त हो जाओ

आरुष-तुम खुले आसमान में जाओ

सिस्टम मैसेज- तभी ट्रेन की आवाज आती है, आरुष बीच ट्रैक पर खड़ा है, धर्मेश और अरविंद हटने के लिए चिल्लाते हैं, पर आरुष ट्रेन के बिल्कुल नजदीक आने पर फोन ट्रैक पर फेंक कर कूद गया।

तभी उसे दिखा अपने ठीक बगल वाली ट्रैक पर एक सफेद साया जो ऊपर की तरफ चला जाता है

आरुष- श्रेया तुम्हारे भाई को मुक्ति मिल गई। अब तुम भी इस नफरत से बाहर निकलो, आगे बढ़ो।

श्रेया-(रोते हुए) पर मेरे सर पर दो हत्याएं है, मैं ये जीवन नहीं ढो सकती।

आरुष- वो दोनो मरने लायक ही थे। बोझ मत रखो दिल पर, मैं आ रहा हूं तुम्हारे पास।

श्रेया-आ जाओ आरुष मुझे बहुत जरूरत है,

आरुष-आता हूं मेरा इंतजार करो।


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