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Aarushi Patidar

Abstract Tragedy Inspirational

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Aarushi Patidar

Abstract Tragedy Inspirational

कुदरत की शक्ति और इंसान की हार

कुदरत की शक्ति और इंसान की हार

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मनुष्य सदियों से कुदरत की गोद में फलता -फूलता रहा है। इसी से ऋषि-मुनियों ने आध्यात्मिक चेतना ग्रहण की और इसी के सौन्दर्य से मुग्ध होकर न जाने कितने कवियों की आत्मा से कविताएँ फूट पड़ीं। वस्तुतः इंसान और कुदरत के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक- दूसरे के पूरक हैं। इंसान अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए कुदरत की ओर देखता है और उसकी सौंन्दर्यमयी बलवती जिज्ञासा प्राकृतिक सौन्दर्य से विमुग्ध होकर कुदरत में चेतना का अनुभव करने लगता है।


मनुष्य को कुदरत के साथ सामंजस्य बनाकर रहना चाहिये क्योंकि कुदरत की शक्ति के आगे मनुष्य सदैव लाचार ही रहेगा। प्रकृति एक ममतामयी मां की तरह अपने संसाधन रूपी ममत्व से हमारा दुलार करती है किंतु जिस तरह एक मां अपने बच्चों को उनकी बुरी आदतों के लिए न सिर्फ डाटती है बल्कि समय आने पर रुष्ट होकर उन्हें सजा भी देती है इसी तरह प्रकृति भी मानव को उसके अनुचित क्रियाकलापों के लिए विभिन्न रूपों में दंड देती है।


भूकंप, बाढ़, सुनामी, भूस्खलन आदि प्राकृतिक आपदाएं मां प्रकृति का क्रोध ही है जो वह मनुष्य को उसके विनाशकारी कामों के फलस्वरूप

दिखाती है। जब कुदरत अपना यह रौद्र रूप दिखाती है, तो इंसान उस प्रचंड शक्ति के आगे बेबस और लाचार हो जाता है।

केदारनाथ का भूस्खलन और बाढ़ इसका एक उदाहरण है। उत्तराखंड राज्य के केदारनाथ के प्रसिद्ध शिव मंदिर के आसपास की


वादियों पर होटल, बाजार, दस-दस फीट चौड़ी सड़कें, विश्राम स्थल बनवाए गए परंतु वादी यह बोझ सह नहीं पाई और जून 2043 में, वहां भारी बारिश के कारण भूस्खलन की स्थिति पैदा हो गयी। बाढ़ के कारण जान-माल का भारी नुकसान हुआ। बहुत से लोग बाढ़ में बह गए और

हजारों लोग बेघर हो गये।


नदी पर बांध बनाने से उसका प्राकृतिक बहाव बाधित होता है। इसी वजह से अगस्त 2018 में केरत्र में मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा के

कारण विकराल बाढ़ आ गयी जिसमें 3793 से अधिक लोग मारे गए थे, तथा 2,80,679 से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा था ।


कभी-कभी मानव अनजाने में कुदरत की शक्ति पर प्रश्न उठाता है और स्वयं को ही सबसे अधिक शक्तिशाली मानता है, परंतु कुदरत ने मार्च, 20 मैं, विनाशकारी सुनामी और उत्तर-पूर्वी जापान मैं भूकंप लाकर मनुष्य को गलत साबित कर दिया।


एक ओर अमेज़न के जंगल जल रहे हैं जो मानव निर्मित आपदा है, तो दूसरी ओर आस्ट्रेल्रिया के भी जंगल जल रहे हैं, जो कहने को तो प्राकृतिक आपदा है, परंतु यह परिस्थितियां भी मानव निर्मित ही है। यदि मनुष्य इसी तरह अनियंत्रित व्यवहार करता रहा, तो हो सकता है कि हमारी भावी पीढ़ी को दोबारा पाषाण युग मैं लौटना पड़ जाए


प्रकृति से प्रेम हमें उन्‍नति की ओर ले जाता है और इससे अलगाव हमारी अधोगति का कारण बनता हैं। अतः अब यह ज़रूरी हो गया है कि हम हर उस गतिविधि पर रोक लगायें जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है तभी हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को एक सुरक्षित भविष्य दे पाएंगे


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