mahaveer bishnoi

Drama Romance

2.3  

mahaveer bishnoi

Drama Romance

कुछ मैं कहुँ कुछ तुम

कुछ मैं कहुँ कुछ तुम

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"गुंजन बेटा ! सामान पैक कर लिया किया " गुंजन की माँ रीमा जी बोली।

"हाँ ! माँ बस कर रहीं हूँ " गुंजन जोर से अपने कमरे से बोली।

"अच्छा फोन रखती हूँ, नहीं तो मम्मी से डाँटेगी " गुंजन फोन पे किसी से बात करते हुए अपने बेड से खड़ी होती हुई बोली।

"अरे बाबा ! तू समझ क्यों नहीं रहा है मुझे जाना पड़ेगा। " गुंजन फोन पे बोलती है।

"मैने मम्मी को बोला था, मैं फ्रेंड के यहां रह लूंगी लेकिन मानी नहीं, मम्मी बोली तुझे अकेले नहीं छोड़ सकते"

"चार -पाँच दिन बोल रहीं है मम्मी "

"ओहो... जनाब का मन पहले कैसे लगता था"

गुंजन लगातार किसी लड़के से फोन पर बात कर रही थीं।

"हट पागल... " गुंजन थोड़ा शर्माते हुए बोली।

"अच्छा मम्मी आ रहीं हैं, मैं फोन रखती हूँ , और ..और .. मैं नहीं बोल रही... अच्छा ठीक है...आई... लव... यू... और बाई बाई मजनू " ऐसा बोल कर गुंजन फोन कट कर देती है।

गुंजन... अपने माँ बाप की एकलौती लाडली बेटी।  खूबसूरत के साथ पढ़ने में जितनी तेज उतनी ही तेज बोलने में और काम करने में। कॉलेज में उसके सात माह हो गये थे और उसको इन सात माह में एक लड़का मिला जिसको गुंजन बहुत ज्यादा पसंद करती थी। इन दोनों ने अभी एक महीने से ही बात करनी स्टार्ट की हैं। आज गुंजन गाँव जा रही थी अपने चाचा के बेटे की शादी में। गुंजन का जाने का मन नहीं था लेकिन शादी घर में होने से उसको जाना जरूरी हो गया।

"अभी तक सामान पैक नहीं किया... हमारी ट्रेन छूट जाएगी, जल्दी कर, तेरे पापा टेक्सी ले के आ गये " गुंजन की मम्मी कमरे में आते ही बोला।  

गुंजन ने जल्दी जल्दी में एक बैग में अपना सारा सामान ठूसा और जल्दी से बहार आ गयी। जहाँ पर उसके पापा टेक्सी में सामान रख रहे थे। सात घंटे के सफऱ करने के बाद वे सब अपने गाँव के स्टेशन पहुंचे, जहाँ पर उसके चाचा जी का लड़का उनको लेने आया।

"प्राणम चाचा जी और चाची जी " विकास पैर छूते हुए बोला।

"जीते रहो " गुंजन के पिता जी बोले।

"और मोटी कैसी है... " विकास गुंजन को छेड़ते हुए बोला।

"चुप कर बंदर...नहीं तो यहीं मार खाएगा "

"अच्छा... तेरी इतनी हिम्मत " विकास ने मज़ाक में उसकी चोटी पकड़ते हुए बोला।

"अरे अब बस करो.. घर जाके लड़ लेना" गुंजन के पापा बोले।

"घर चल तू....तेरे को बताती हूँ " गुंजन झूठ का गुस्सा दिखाते हुए बोली।

सब घर पहुंचते हैं। सब का जोरों से स्वागत करते हैं। कोई आकर गुंजन के सर पे हाथ फरते हैं तो कोई आकर गाल खीचते हैं। शादी वाले घर में कितनी रौनक होती हैं। कोई यहां भाग रहा है तो कोई वहा भाग रहा हैं। सभी के चेहरे पे खुशी साफ झलकती दिखाई देती हैं, सब परिवार एक साथ इकट्ठा होते हैं, खूब हँसी मज़ाक और मस्ती करते हैं, पुरुष लोग अपनी अपनी जिम्मेदारीयाँ लेते हुए काम कर रहे हैं, कुछ औरतें खाना पका रहीं होती हैं तो कुछ औरतें अपनी ननद और देवरानी की चुगली करती हुई पाई जाती हैं, बूढ़े लोगों का अलग ही काम होता हैं कौन पैर छू के गया और कौन बत्तमीज नहीं, बच्चे यहां वहां भाग रहे होते हैं अगर कोई कोई बच्चा गिर गया तो उसकी मम्मी की डांट दूर से सुनाई पड़ती हैं। लड़कियाँ तो एक साथ इकट्ठा होकर पता नहीं क्या -क्या प्लान बना रहीं होती हैं, और लड़कों का सिर्फ एक ही काम होता हैं वो हैं लड़कियों को ताड़ना।

गुंजन अपने कजन के साथ बैठ कर गप्पे हाँक रहीं थीं तभी उसकी चाची बोली "तुम लोग मंदिर चलोगी... अगर जाना है तो बाहर आ जाओ, गाड़ी इंतजार कर रहीं हैं "

"चल ना गुंजन मंदिर जाके आते हैं" गुंजन की कजन चंचल बोली।  

"नहीं यार ! मन नहीं है "

"चल चुप चाप " चंचल गुंजन को हाथ पकड़कर खींच लेती है।

" अरे विकास... हमें जरा मंदिर छोड़ आ " चाची बोली।

"मुझे कोई दूसरे काम जाना हैं...आप लोगों को कार्तिक छोड़ देगा " विकास दूर से ही बोला।

"अच्छा ठीक हैं...कार्तिक को जल्दी भेज " चाची जी बोली।

"आंटी जी...ये कार्तिक कौन हैं? " गुंजन ने पूछा।

"विकास का फ्रेंड हैं, बहुत मदद करता हैं हमारी, दो दिन से काम करवा रहा हैं " चाची जी बोली।

सामने से कार्तिक आते हुए दिखाई देता हैं, रंग गेहूँआ, कद काठी में दुबला पतला और आकर्षक चेहरा।  एक बार के लिए तो गुंजन भी अपनी नज़रें नहीं हटा पाई।

"चले आंटी जी " बिना किसी को देखे कार्तिक गाड़ी में बैठ गया।

बाद में चाची जी के साथ गुंजन ओर चंचल पिछली सीट बैठ गये, और गाड़ी चल पड़ी।

" तू किस चीज का बना हैं रे... कभी थकता नहीं हैं क्या " चाची जी बोली।

"नहीं तो... किसान का बेटा हूँ, थकना सीखा ही नहीं " कार्तिक ने सीधे गाड़ी चलाते हुए बोला।

"अभी थोड़ी देर पहले तुम लोग इतने जोर -जोर से क्यों हँस रहे थे? " चाची जी बोली।

"रूपाराम ग़लती से ताऊ जी पे गिर गया था... फिर क्या था ताऊ जी जो उसके पीछे भागे लेकिन भागते भागते ताऊ जी ही ज़ोर से गिर गये, ताऊ जी उठ कर वापस आ रहे थे तो उनका मुँह पूरा रेत से भरा हुआ था लेकिन ताऊ जो हँसे फिर हम अपनी हँसी रोक नहीं पाए, "

"सच में " चाची जी ज़ोर से हँसती हुई बोली।

इस तरह चाची जी और कार्तिक आपस में बात कर रहे थे लेकिन गुंजन और चंचल चुप चाप सुन रहीं थीं।  पता नहीं क्यों गुंजन की नज़रें बार -बार उस दर्पण पे जा रहीं थीं जो गाड़ी के अंदर लगा होता है। गुंजन खुद को रोक नहीं पा रहीं थीं उस दर्पण की तरफ देखने से। अचानक गुंजन की फोन की रिंग बजती हैं जिसमे "माय लव " नाम की इनकॉल हो रहीं होती है।  

गुंजन फोन कट कर देती है, उसका कारण उसकी चाची जी का साथ होना। वे सभी लोग थोड़ी देर में मंदिर पहुंच जाते हैं और भगवान के दर्शन करते हैं। ये मंदिर कृष्ण का है, जो गाँव का सबसे पुराना और बड़ा मंदिर हैं। मंदिर के चारों तरह हरियाली थी और इसके पीछे एक बहुत बड़ा मैदान जो पेड़ और पौधों से भरा हुआ, जिससे मंदिर की शोभा और बढ़ गयी।  

"माँ.. हम थोड़े घूम के आते हैं " चंचल बोली।

"ठीक है पर जल्दी आना, घर पे बहुत काम है "

"हम जल्दी ही आ जाएगे आंटी जी "गुंजन जाते जाते बोली।

गुंजन ने चंचल को बोला मुझे एक फोन करना है तू बस दो मिनट रुक। उसने दूर जाकर तुरंत अपना फोन निकाला और सीधा कॉल किया।

"सॉरी.. सॉरी.. सॉरी ...हम मंदिर आ रहे थे और चाची जी भी साथ में थीं इसलिए फोन नहीं उठाया "

"हाँ.. बाबा मैं एकदम ठीक हूँ, तुम चिंता मत करो "

"अभी आए हुए एक दिन भी नहीं हुआ और तुम आने की बात कर रहे हो "

गुंजन लगातार फोन पर बात कर रहीं थीं वो भी अपने प्यार से। थोड़ी देर बात करने के बाद गुंजन फोन कट कर देती है और सामने देखती है तो चंचल सामने ही खड़ी हुई हैं।

"हूँ... तो कौन हैं तुम्हारा सपनों का राजकुमार " चंचल ने बोला।

"बताना पड़ेगा क्या...? " गुंजन ने धीरे से कहा।

"कोई शक मैडम जी " दोनों वहीं बैठ जाती है।

" पुनीत नाम है उसका, मेरी ही क्लास में पढ़ता है। जब मैं पहली बार कॉलेज गई तो उसने बहुत मदद की थी मेरी, फॉर्म लेने से लेकर फॉर्म भर के देने तक। बाद में हमारी दोस्ती हो गयी, हम बस कॉलेज में ही मिलते और खूब हँसी मज़ाक करते, ना उसने मेरा नंबर माँगा और ना मैने उसका, हम सिर्फ कॉलेज फ्रेंड की तरह रहते थे, धीरे -धीरे कब प्यार हो गया पता ही नहीं चला, हमने तो अभी एक महीने से बात करनी स्टार्ट की हैं। " गुंजन बोली।

"बस.. ! इतना ही है.. पूरा बता, किसने पहले प्रपोज किया और कैसे किया " 

"मैं उस दिन कॉलेज की केंटीन में बैठी थीं, तभी वो आया और बोला मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूँ, मैने बोला कहो, तो बोला यहां नहीं कहीं अकेले, मेरे साथ चलो.... मैं उसके पीछे -पीछे चल दी और गार्डन में ले जाकर पहले तो आस पास देखा कोई है तो नहीं फिर घुटनो के बल बैठकर गुलाब का फूल निकालकर बोला - मैं तुम से बहुत प्यार करता हूँ, तेरे बिना जी नहीं सकता, जब से तुम को देखा था तब से तुम को प्यार करता हूँ ... फिर एक दो फ़िल्मो की लाइन व डायलॉग और बोला फिर चुप हो गया। "

"ज्यादा सस्पेंस ना बना... फिर क्या हुआ? "

"फिर क्या था, मुझे भी वो पसंद था तो मैंने भी हाँ कह दिया और वो जोर से उछल पड़ा और आकर गले लग गया। "

"अच्छा... फिर किस किया? "

"कुछ ज्यादा ही नहीं बोल रही है तुम, ऐसा कुछ नहीं हुआ था और मुझे ये सब करने का कोई शौक नहीं है "

"फिर क्या लव स्टोरी हुई.. हीरो ने हीरोइन को किस नहीं किया तो क्या किया? " चंचल ने ऐसे ही मुँह बनाते हुए बोला।

"मुझे ये सब करने का कोई शौक नहीं हैं और प्यार दिलो से होता है, जिस्म से नहीं। "

चंचल अपना कंधा गुंजन के कंधे से मारते हुए बोली "अच्छा ठीक है, लेकिन उनकी फोटो तो दिखा दे "  


चंचल फोन में फोटो देख रही थीं, तभी पता नहीं क्यों गुंजन की नज़र अपने आप ही थोड़ी दूर मंदिर की सीढ़ी पर पड़ी जिस पर कार्तिक बैठा था, गुंजन को ऐसा लग रहा था जैसे उसको वो बहुत पहले से जानती हैं, गुंजन अपनी नज़रें कार्तिक से हटा ही नहीं पा रहीं थी, वो बस उसे देखे ही जा रहीं थी, तभी कार्तिक ने इस तरफ देखा और नजर से नजर मिली, गुंजन का दिल जो -ज़ोर से धड़कना शुरू हो गया और गुंजन ने अपनी नज़रें झुका के दूसरी तरफ देखने लगी। गुंजन को कुछ समझ नहीं आ रहा था की उसके साथ क्या हो रहा है, उसका दिल इतना ज़ोर -ज़ोर से क्यों धड़क रहा है?  

तभी पीछे से कार्तिक की आवाज़ आती हैं।

"चंचल दीदी... चलना नहीं है क्या? चाची जी बुला रहीं हैं। "

चंचल एकदम से फोन से ऊपर देखकर ज़ोर से बोली "अभी आए भईया ... बस दो मिनट "

"ये लो तुम्हारा फोन... वैसे काफी हैंडसम है लड़का, कब बात करवा रही हो इससे "

"पहले यहां से तो चलो.. वरना चाचा जी करवा देगी बातें " गुंजन खड़ी होती हुई बोली।

दोनों एक दूसरे से मज़ाक करते हुए गाड़ी में आकर बैठ जाती हैं और गाड़ी घर की तरफ दौड़ पड़ती हैं। मंदिर बहुत दूर तो नहीं था लेकिन रास्ता खराब होने से आधा घंटा लग गया घर पहुंचने में।

शाम हो गयी थी और घर में चहल पहल कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी थी क्योंकि घर पर और मेहमान भी आ गये थे। शादी का सारा रीति रिवाज़ कल से शुरू होने वाले थे इसलिए गाँव के लोग अपने -अपने घर जाने लगे। जो औरतें गीत गा रहीं थीं वो अब ज़ोर -ज़ोर से हसीं -ठिठोली कर रहीं थीं। कुछ के लोग खाना खिला रहे थे तो कुछ यहाँ वहां मेहमान का आदर सत्कार कर रहे थे।

धीरे धीरे पूरी तरह से अंधेरा हो गया और घरों की लाइट जलना स्टार्ट हो गयी। यहां शादी का घर था इसलिए पूरी तरह लाइट की सजावट की हुई थी।

काफी रात हो चुकी थीं और गुंजन काफी थक चुकी थी इसलिए गुंजन ने खाना खाकर सोने का निर्णय लिया। लेकिन घर में बहुत ज्यादा मेहमान होने से सोने की जगह नहीं थीं, इसलिए उसने ऊपर जाकर सोने का मन बनाया। लेकिन ऊपर भी जगह खाली नहीं थीं, पता नहीं किस -किस के बच्चे सोये हुए थे। शादी के घर में ये एक आम समस्या होती है, अनजान बच्चे हर जगह सोये हुए मिल जाते हैं। बड़ी मुश्किल से चंचल और गुंजन ने ऊपर एक सोने की जगह तलाश की और सो गये। गुंजन को नींद आ रही होती तभी उसका फोन बजता हैं, फोन पुनीत का था। गुंजन ने फोन उठाकर धीरे से कहाँ "हम कल बात करते हैं, मैं बहुत थक गयी और मेरे पास बहुत सारे मेहमान भी हैं "ऐसा बोल कर गुंजन फोन रख देती है।

"अपने आशिक़ को बोलो हम खा नहीं जाएगे तेरी महबूबा को " गुंजन को छेड़ते हुई चंचल बोली।

गुंजन आँखें बंद किये हुए बोली " चुप -चाप सो जा वरना मार खा लेगी "


अगली सुबह जब गुंजन की आँख खुली तो चारों तरफ बच्चे और औरतों के नींद में तलीन शरीर पड़े हुए थे। बड़ी मुश्किल से वह नीचे आ पाई। गुंजन को जल्दी उठने की आदत थी इसलिए वह जल्दी उठकर नीचे आ गयी थी। अभी तक सूर्य ने अपनी किरणों को पूरी तरह नहीं खोला था इसलिए अभी तक अंधेरा था। लेकिन घर में चहल पहल बढ़ गयी थी, घर के बड़े बुजुर्ग उठ गये थे, काम करने वाली औरतें और आदमी भी अपने -अपने काम व्यस्त हो गये थे।  

"ओये मोटी... तू कब उठी, कल घर आने के बाद कहाँ ग़ायब हो गयी थी... चल तेरे को चाय पीलाता हूँ " विकास ने एक साथ सवालों की झड़ी लगाते हुए बोला।

"अब रुक भी जा... और कितना बोलेगा, चल चाय पीला "

दोनों पीछे लगे टेंट में जाते हैं, जहाँ पर लोगों के लिए पकवान बनाए जा रहे थे। एक बड़ी सी केतली में चाय भरी हुई थीं जो मेहमान के लिए बनाई हुई थी, विकास ने दो कप लिए और उसमे चाय भरकर एक कप गुंजन को दिया और एक कप आप ने लिया।

"चल कहीं बैठ के बात करते हैं " विकास चलते हुए बोला।

दोनों एक जगह पे जाके बैठ जाते हैं, और साथ में चाय की चुस्की लेते हुए बातें करते हैं।

"भाभी जी, को देखा हैं " गुंजन चाय की चुस्की लेते हुए बोली।

"सामने तो नहीं देखा हैं, लेकिन फोटो ज़रूर देखी है " विकास ने उत्तर दिया।

"कभी बात वात तो की होगी "

"नहीं.."

"मतलब.. सिर्फ फोटो देखकर शादी कर रहे हो "

"तुम तो जानती हो गाँव का हॉल, यहां लड़के -लड़की की मर्जी नहीं पूछी जाती हैं, सिर्फ खानदान पूछे जाते हैं। हमारी मर्जी यहां कोई मायने नहीं रखती हैं। यहां सिर्फ घर के बड़े लोगों को अगला खानदान पसंद आना चाहिए, जहाँ घर के बड़े लोग बोलेंगे वहीं हमको शादी करनी होगी चाहे आप की मर्जी हो या ना हो "विकास ने एक साथ बोला।

"सच बताना भाई... तुम इस शादी से ख़ुश हो "

"मेरी खुशी यहां कोई मायने नहीं रखती हैं, अगर घरवाले इस शादी से ख़ुश हैं तो मैं भी खुश हूँ ।

"तुम ताऊ जी को मना क्यों नहीं कर देते, अभी तक तो कुछ नहीं बिगड़ा है, अगर तुम से ना हो पाए तो मैं बात करूँ।" गुंजन चाय का कप नीचे रखते हुई बोली।

"तुम पागल तो नहीं हो गयी हो, तुम जानती नहीं हो क्या मेरे पापा को, जान से मार देंगे हम दोनों को...और तुम को किसने ने कहाँ मैं ख़ुश नहीं हूँ और एक दिन शादी तो वैसे भी करनी हैं, मर्जी चाहे मेरी हो या घर वालों की बात एक ही हैं " विकास बोला।

"भाई.. बात यहां मर्जी की नहीं है.. बात यहां तेरी खुशी की है, तेरे को उसके साथ पूरी ज़िन्दगी गुजारनी है .. तू पूरी ज़िन्दगी उसके साथ ख़ुश रह पाएगा... क्या वो तेरे को पूरी ज़िन्दगी ख़ुशियाँ दे पाएगी और ये फोटो से तो पता नहीं चलेगी की वो कैसी हैं। " गुंजन बोली।

"ये बात वो लड़की भी सोच सकती है, लेकिन फिर भी हम शादी कर रहे हैं ना... मैंने क्या बोला था यहां हमारी खुशी, हमारे जज़्बात, हमारी मर्जी कोई मायने नहीं रखती हैं... और किसने कहाँ हम ख़ुश नहीं रह सकते हैं, हमारे माँ -बाप ख़ुश रहते हैं ना तो हम क्यों नहीं " विकास बोला।

"भाई पहले की बात अलग हैं और अब की बात अलग... ये जरूरी नहीं हैं इस तरह से शादी कर के सब ख़ुश रहे "

"तू इतनी समझदार कब से गयी मोटी...पहले तो नहीं थी। ओ.. अच्छा, ये शहर की हवा का असर हैं। और तू क्यों टेंशन ले रहीं हैं सब अच्छा होगा। " विकास बोला।

"ओ हेलो... मैं समझदार बचपन से थी लेकिन तेरे को आज पता चला हैं... भूत कहीं के " गुंजन ऐसे ही मुँह बनाते हुए बोली।

"अच्छा भाई... एक बात सच -सच बता, तेरे को कोई और लड़की पसंद है, जिसको तू बहुत ज्यादा प्यार करता हैं " गुंजन विकास के तरफ देखती हुई बोली।

"मेरे और भी बहुत काम हैं, जो तेरी ऐसी बकवास से इम्पोर्टेन्ट हैं " ऐसे बोलते हुआ विकास उठ के चला गया, और पीछे से गुंजन आवाज़ लगाती ही रह गयी।

अब सूर्य ने अपना उग्र रूप धारण कर लिया था। दीपावली के आस पास का समय था इसलिए ना तो ज्यादा गर्मी थीं और ना ही ज्यादा सर्दी। लेकिन दिन के समय सूर्य अपनी गर्मी ज़रूर दिखाता। शादी के घर में नहाने की बारी का आना मतलब कोई अच्छे कर्म का फल की प्राप्ति होने के बराबर है।

गुंजन इंतजार करते करते थक गयी लेकिन उसकी बारी ना आयी। कभी किसी की भुआ आ जाती तो कभी किसी की मामी आ जाती। गुंजन ने कंचन को बोला अब यहां बारी आना मुश्किल है कोई दूसरा स्नानघर है तो बता, लेकिन इस घर में तो ही एक स्नानघर था। तभी गुंजन को विकास दिखा।

" अरे भाई... रुक जरा... हमारी कोई नहाने की कोई व्यवस्था कर दे ना... यहां काफी देर हो गयी हैं बारी ही नहीं आ रही है। "

"तू रुक, मैं कोई व्यवस्था करता हूँ " ये कहते हुए विकास चला जाता है।

थोड़ी देर में विकास फिर आता है, और बोलता है" तुम लोग कार्तिक के घर चले जाओ, वहाँ कोई नहीं हैं.. मैं कार्तिक को बोलता हूँ तुम लोगों को छोड़ आएगा। "

कार्तिक का घर यहां दूर नहीं है, दो घर छोड़ के तीसरा घर उसका है। उसके घर में उसके पिता जी और उसकी छोटी बहन रहती हैं, माँ उसकी बहन के आने के बाद उनको छोड़ के चली गयी, उसके पिता जी दूसरी शादी नहीं की क्योंकि वो अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। कार्तिक शहर से पढ़ाई करके आया और यहां गाँव की सेवा में लग गया। गाँव के ग़रीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाता है, उसका सपना है गाँव को एक बहुत बड़ा गाँव बनाना जिससे यहां कोई भूखा न सोये। बिना जान पहचान के भी वो हर किसी की मदद करता है। विकास और कार्तिक साथ -साथ पढ़ें और बड़े हुए है इसलिए ये बहुत अच्छे दोस्त हैं।  ये सब बातें चंचल ने गुंजन को बताई जब उसने कार्तिक के बारे में पूछा? 

तभी सामने से कार्तिक आता हुआ दिखाई दिया और आते ही बोला "चले कंचन दीदी, तुम लोगों को घर छोड़ आऊँ "

"चलो चलते हैं...... चल गुंजन " कंचन खड़ी होती हुई बोली।

तीनों वहाँ से चल पड़ते हैं कार्तिक के घर की तरफ, तभी कंचन बोली " इस से मिलिए कार्तिक भैया, ये हैं गुंजन दीदी, शहर वाले ताऊ जी की बेटी " 

"हाई... " गुंजन ने मुस्कान के साथ बोला। बदले में कार्तिक ने भी एक कुछ ना बोल कर सिर्फ एक मुस्कान दी।

"बड़ा घमण्ड है तेरे भैया में... कोई रिप्लाई भी नहीं दे रहा हैं " चलते -चलते गुंजन ने कंचन के कान में धीरे से बोला।  

"अरे ऐसा कुछ नहीं हैं... बस इसकी बोलने की आदत थोड़ी कम हैं " कंचन ने गुंजन के कान में फुसफुसाया।

 तीनों घर पहुंचते हैं, घर अच्छा था लेकिन बहुत बड़ा नहीं था, सामने एक चौकी जिस पर दो खाट पड़ी हुई थी, एक बरमदा, तीन कमरे के बीच एक बड़ा सा आँगन, दूसरी तरफ एक रसोईघर और उसके पास में ही एक छोटा सा मंदिर जिसमे भगवान की फोटो सजी हुई थी। छत के ऊपर एक और कमरा था जो काफी समय से बंद पड़ा है। घर के दूसरी तरफ एक स्नानघर और एक संडास बने हुए थे। और बाकी काफी जगह खुली पड़ी हुई थीं। घर पे कोई नहीं था, क्योंकि पिता जी शादी के घर पर थे और छुटकी स्कूल गयी हुई थी।

"तुम दोनों नहा लो, तब तक मैं तुम लोगों के लिए कुछ बना लेता हूँ " कार्तिक ने घर का दरवाज़ा खोलते हुए बोला।

"इसकी कोई जरूरत नहीं हैं, हम घर जाकर खा लेगे "कंचन ने तपाक से बोला।

"चलो... मैं कुछ पीने के लिए बना देता हूँ "

कंचन नहाने चली जाती है और गुंजन बैठे -बैठे कभी छत घूरती है तो कभी दीवार पे टंगे चित्रों को देखती हैं। कार्तिक अंदर कुछ बना रहा होता हैं। तभी गुंजन के पास फोन आता है।

"हाँ ! जी कैसे है जनाब " गुंजन मधुर आवाज़ में बोली ।

"तुम ने क्या कहा था? सुबह फोन करुँगी, ऐसे होता है फोन " पुनीत थोड़ा गुस्सा होते हुए।

"ओहो.. जनाब को गुस्सा आया हुआ हैं... हूँ ... मैं जानती हूँ गुस्सा कैसे शांत होगा "

"कैसे होगा " पुनीत फिर गुस्से में बोला।  

"फिर मुझे उन लोगों की तरह बात करनी होगी जो लोग प्यार में करते हैं.. मेरा बाबू, मेरा सोना.. मेरा ये, मेरा वो " 

"तो करो ना.. वरना मेरा गुस्सा और बढ़ जाएगा " पुनीत नकली गुस्सा करते हुए बोला।

"मुझे पागल कुत्ते ने थोड़े ही काटा, जो इस तरह बोलूगी "

"लेकिन मैं तो पागल हूँ ना, तेरे प्यार में " पुनीत ने बड़े मीठे तरीके से कहाँ।

"ओये होये.... बड़ी फ़िल्मी लाइन मारी जा रही है, अगर वो पागल है तो उससे कह दो हम भी उसके प्यार में पागल हुए जा रहे हैं " गुंजन ने बड़े ही फ़िल्मी अंदाज़ से कहा।  

दोनों बातों करने में इतना मशगूल हो गये थे की कंचन कब आई पता ही नहीं चला।

"ओ.. लैला मजनू... अब बस करो। अब जाके नहा के आ " कंचन ने आते ही बोला।

गुंजन ने जल्दी से अपना फोन कट किया और बोली " तू कब आयी? "

"जब तू अपने आशिक़ से आशिक़ी लड़ा रही थी " कंचन छेड़ते हुई बोली।

गुंजन नहाने के लिए बहार आ रही थी तभी उसको कार्तिक आता हुआ दिखाई दिया। दोनों ने एक दूसरे को देखा फिर निकल गये। गुंजन का दिल एक बार फिर ज़ोर -ज़ोर से धड़कना शुरू हो गया। वो तेजी से स्नानघर की तरफ भागी। वो सोचने लगी उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है, जब -जब कार्तिक से सामना होता है तब -तब उसका दिल क्यों ज़ोर से धड़कना स्टार्ट हो जाता है। वह कुछ समझ नहीं पा रही है।


शेष कहानी अगले भाग में :-



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