mahaveer bishnoi

Drama Tragedy Crime

2.6  

mahaveer bishnoi

Drama Tragedy Crime

गाँव का एक सच

गाँव का एक सच

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सबसे पहले मैं आप सभी से माफ़ी माँगना चाहता हूँ कि यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है, ऐसा सत्य जो मेरे आस-पास ही घटी हैI ऐसी घटनाएँ मुझे अवाक कर देती हैंI मैं आप सभी पाठकों के साथ इस घटना को साझा करना चाहता हूँI इसलिए इसे कहानी का नाम दे रहा हूँI

मेरी सुबह होने में थोड़ा समय ओर बचा थाI मैं चैन से नींद के आगोश में सो रहा थाI तभी मेरे कमरे में कुछ हरकत हुई, मेरी बड़ी बहन मुझे जगा रही थीं - "भाई, अभी तक सो रहा है, टाइम देख... चल खड़ा हो ओर मेरे को स्कूल छोड़ के आ, क्योंकि आज मेरी स्कूटी खराब हो गयी हैI"

वैसे तो अपने समय से पहले जगाए जाने पर मुझे दीदी पर थोड़ा गुस्सा आया पर चूंकि वो एक सरकारी स्कूल की एक काबिल अध्यापिका हैं, और पड़ोसी गाँव के बच्चे उसी स्कूल में पढ़ते हैं, तो उसे समय से पहले स्कूल पहुँचाना जरूरी हैंI गाँवों की पढ़ाई शहरों की पढ़ाई जितनी आसान नहीं होती हैंI ये बात मैं अच्छे से समझता हूँ, क्योंकि आधी पढ़ाई मैंने खुद गाँव से ही की थीI चाहे कड़ी धूप हो या हाड कपांने वाली सर्दी हो, बच्चे लम्बी दूरी तय करके स्कूल जाते हैंI

खैर आनन-फ़ानन में मैंने अपनी बाइक निकाली ओर दीदी को लेकर स्कूल की ओर चल दियाI उनका स्कूल हमारे गाँव से लगभग १५ किलोमीटर दूर थाI हम स्कूल पहुँचे तो देखा स्कूल की छुट्टी कर दी गयी हैI सामने बच्चों के झुंड आपस में बात कर रहे थेI दीदी अन्य अध्यापकों से पता लगाने गयी कि आखिर मामला क्या हैI

"क्या हुआ दीदी... स्कूल क्यों नहीं लगी?" मैंने अपनी दीदी से पूछाI

दीदी ने आकर जो बताया सुनकर मेरे होश उड़ गयेI बाइक वापस घुमाकर घर चलने को कहते हुए दीदी ने बताया इस गाँव की एक लड़की ने आत्महत्या कर ली हैI

"आत्महत्या पर क्यों....?" मैं वाकई काफ़ी अंचभित थाI

इस खबर की वज़ह से आज स्कूल बंद करवा दिया थाI

गाँवों में ऐसा ही होता है, किसी के चले जाने पर उस दिन स्कूलों में अवकाश कर दिया जाता हैI

मन में अफ़सोस लिए हम घर आ गएI सारा दिन मैं यही सोचता रहा कि ऐसी कौन सी मज़बूरी रही होंगी उस लड़की की जो आत्महत्या का विचार बना लियाI अगर कोई परेशानी थीं तो उस परेशानी से लड़ना चाहिए न कि उस परेशानी से हार मानकर अपनी अमूल्य ज़िंदगी को पूरा करनाI किसी समस्या का अंतिम हल आत्महत्या नहीं होता हैI खैर इसका कोई जवाब मुझे नहीं मिलाI

अगले दिन मेरी दीदी ने आकर जो बताया वो और भी हैरतअंगेज और दुखदायी थाI दीदी ने बताया असल में उस लड़की ने आत्महत्या नहीं की वरन उसके ही परिवार वालों ने उसकी जान ले ली थीI

"हत्या... पर क्यों?"

"वो किसी लड़के से प्यार करती थी, गलती से उसके परिवार वालों को पता चल गयाI बात कहीं इज्जत या झूठे अंहकार पे ना आ जाए इसलिए उसको मार कर फाँसी पे लटका दिया गयाI ताकि समाज में उनके खानदान की बदनामी ना होI"

गाँव के पिछड़ेपन का सबूत है ये घिनौनी घटनाI मैं सोचने पर बाध्य हो गयाI अपनी ही औलाद को कोई माता-पिता कैसे मार सकते हैं? क्या उन्हें संतान का कोई मोह नहीं था? मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, माँ की ममता उस समय कहाँ गयी जब उसे बेरहमी से मारा जा रहा था, क्यों उस माँ का दिल पत्थर हो गया? क्या उसके बाप को एक बार भी दया नहीं आयी जब वह अपने ही ख़ून का गला घोंट रहा था? जब वो लड़की अपनी ज़िंदगी के लिए गुहार लगा रही थी तब उन दरिंदो का ह्रदय क्यों नहीं पिघला?

ऐसा भी क्या समाज से डर कि अपने ही अंश का गला घोंट दिया गयाI माना कि उस लड़की ने छोटी-सी गलती की पर ऐसी सजा के बराबर तो नहींI

रही बात इज्जत की तो मैं उन ख़ूनी जालिम माँ-बाप से पूछना चाहता हूँ - "अपने बच्चे की जान लेने के बाद क्या अब इज्जत बढ़ गयी है?"

बात जितनी जंगल की आग की तरह फैली थीं, ठीक उसी तरह दब गयीI ना किसी ने पुलिस को बुलाया ओर ना ही किसी ने इस बात को ज्यादा तवज्जो दीI यहाँ तक उस लड़की का अंतिम संस्कार तक कर दिया गयाI

खैर उसने तो इस पापी दुनिया से विदा ले ली, पर उसने पीछे बहुत से सवाल समाज के लिए छोड़ दियेI

क्या किसी से प्यार करना गुनाह है, चलो मान लेते हैं प्यार करना गुनाह है, फिर भी किसी को मारना इसकी सजा नहीं हो सकतीI

हाँ, मैं जानता हूँ मेरे इस तरह से लिखने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला हैI सब कुछ समाज के सामने ही होता है, पर कोई विरोध जताने की हिम्मत नहीं कर पाताI यह बहुत ही दुःख की बात हैI कोई लोग तो यहाँ तक बोल देते हैं -"हमें दूसरों से क्या मतलब, उनकी औलाद है, वो जो चाहे करेंI

यहीं पर उन कातिलों को बढ़वा मिल जाता है, जिनके लिए इंसान की ज़िंदगी से ज्यादा उनका गुरूर मायने रखता हैI


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