कटु यथार्थ : कर्तव्य की कसौटी
कटु यथार्थ : कर्तव्य की कसौटी
मेरे स्मृतिपटल पर एक झिलमिलाती आंखों की तस्वीर उभर रही है, एक कपकपाते होंठों की, एक थरथराती हाथों की मानो किसी को पुकार रहे हो... किसी के सहारे की उम्मीद कर रहे हो... पर कोई नहीं था वह उनका अपना। एक झल्लाहट भरी आवाज आती है, "बाबा कहाँ जा रहे हो उधर? गिर जाओगे तो बेटा नहीं आएगा सँभालने..."
एक बार फिर नजरे शर्म की चादर ओढ़े झुक गयी... आंखें आँसुओं से भर गयी और बेमन से फिर से उन थरथराती हाथों को सौंप दिया किसी गैर के हाथों में... शायद ये उनकी मज़बूरी थी या यू कह लो इसके अलावा उनके पास कोई और विकल्प ही न था।
जिन हाथों ने हमारी नन्ही उँगलियों को पकड़ कर हमे चलना सिखाया... हमारे चोट पर अपने प्यार का मरहम लगाया, हमें सही गलत का फर्क समझाया... हमें हर राह पर मार्गदर्शन दिया, हमारी गलतियो को नज़र अंदाज किया... हमें भरोसा दिलाया, टूट के बिखर जाने पर हमें हौसला दिया... हर मुश्किल परिस्थितियों में हमारा हाथ थामा, आज हम उन हाथों को सौप रहे है किसी गैर के हाथों में, जिनकी देखभाल के मोहताज हो गए है, जब उन हाथों को हमारी सबसे ज़्यदा जरुरत थी, यह सच सुनने में बहुत कडवा है दोस्तों पर यही यथार्थ है।
माना की इस भाग दौड भरी ज़िंदगी में सब अपने भविष्य के लिए सोच रहे है... पर उनका क्या? उनके बारे में कौन सोचेगा जिन्होंने हमारे उज्ज्वल भविष्य के लिए अपना सब कुछ हँसते हँसते दाव पे लगा दिया? जिन्होंने हमारी खुशियों के लिए अपनी खुशियाँ कुर्बान कर दी... उनके बारे में आखिर कौन सोचेगा? चंद पैसो के मोहताज वो लोग जो उनकी सेवा के नाम पर उनका शोषण करते... क्या हमारे माँ-बाप उनकी जिम्मेदारी है?
ज़िंदगी के चंद वर्ष पीछे पलट कर देखो दोस्तों... अपने क्रोध, अहंकार को परे रख कर सोचो, याद आएंगे वो मजबूत हाथ जिन्होंने हमेशा हमें सहारा दिया, वो मजबूत कन्धा जिसपर सर रख कर तुम चैन की नींद सोते थे, वो बाहे जिन्होंने हमेशा तुम्हें अपने सीने से लगया।
आज वो निरुपाधिक प्यार करने वाली हाथे कमजोर हो चुकी है, उन्हें हमारे प्यार और सम्मान की चाहत है, उन झिलमिलाती आँखों को आज भी हमारी चाहत है...
लौट जाओ, सबकुछ भूल कर और गर्व से थाम लो उनका हाथ शायद उनकी छूटती साँसों की डोर को मिल जाए चंद घंटो की मोहलत।
"माँ-बाप की दुआ ज़िंदगी बना देती है
खुद रोएगी मगर आपको हँसा देगी
इन आंखों को कभी न रुलाना दोस्तों
एक बून्द पूरी धरती हिला देगी..."