समझौते की वो हसीन रात
समझौते की वो हसीन रात
कितना अजीब है न बेटियाँ जब से जन्म लेती है माँ बाप शादी के लिए पाई पाई जोड़ने लग जाते है। चाहे कितनी पढ़ी लिखी क्यूं न हो हमारे समाज से आज भी दहेज़ जैसी प्रथा बस नाम मात्र के लिए ही खत्म हूँई है। आज भी हमारा समाज इस कुरीति की जंजीरो में बंधा हूँआ है |
माधयमवर्गी परिवार तो इसका असर सबसे ज़्यदा दिखता है ओह बेटी हूँई है अब तो पढाई पर भी खर्च करना पड़ेगा साथ ही शादी के लिए पैसे जोड़ने पड़ेंगे |जन्म से ही माँ बाप पर बोझ बन जाती है बेटियाँ।भले ही हमारे इतिहास में कल्पना चावला , सुनीता विलियम जैसी बेटियां क्यूं न हो,लेकिन इतिहास गवाह है बेटियां हमेशा बोझ बन कर ही रह जाती है।
आज माथे पर सजे बिन्दिये ,हाथो पर रची मेहन्दी ये साफ़ जाहिर कर रही थी अविका आज किसी और की होने वाली है। माँ बाप ने अपनी लाडली से जो उम्मीद किया था उसने पूरी ईमानदारी और निष्ठा से उसे पूरा किया ।माध्यमवर्गी परिवार से होने के बावजूद माँ बाप ने उसकी सारी इच्छाओ का ख्याल रखा।उसे कभी किसी चीज़ की तकलीफ महसूस न होने दिया।यू कह लो औकात से बढ़कर माँ बाप ने अविका की परवरिश की।पर अपनी बेटी को विदा कर उसे पराये घर में भेजने का अहसास सिर्फ माँ बाप ही समझ सकते है , इन्हें शब्दों में बया करना या कागज पर समेटना बहूँत ही मुश्किल है।शायद इन्ही सब वजह से घर में रिश्तेदारों के बीच खुशी का माहौल होने के बाबजूद माँ बाप की आँखे नम थी।
अविकाअविका। कहाँ हो बेटा ?? तैयार हो गयी।बारात आ गयी है लाडो।ये शब्द बार बार अविका के कानो में गूंज रहे थे।अंत में अविका ने धीमी स्वर में जवाब दिया हां माँ मैं तैयार हूँ। ठीक है बेटा तुम प्रिया के साथ नीचे आ जाना मैं मेहमानो को देखती हूँ ;कहते हूँई माँ ने अपनी लाडो को सीने से लगा कर उससे कहां बहूँत अच्छा लड़का है तुम बहूँत खुसनसीब हो जो तुम्हारा रिश्ता इस घर में तय हूँआ बहूँत खुश रखेगा तुमको बेटा कहती हूँई माँ निकल गयी। अविका ने पीछे छुपाए फोटो फ्रेम को निकाला और सीने से लगाकर कहां "सॉरी जय " प्लीज मुझे माफ़ कर देना।मैं जानती हूँ मैंने तम्हारे साथ धोखा किया पर मैं क्या करू बस मुझे माफ़ कर देना कहते हूँए वह बेतहासा रोने लगी।
फिर खुद को शांत कर अपने मन को समझाया नहीं अविका तुम हार नहीं मान सकती तुम्हे कठोर होना पड़ेगा।तुम्हे अपने परवरिश की कीमत चुकानी है।तुम्हे ये साबित करना है की तुम एक आदर्श बेटी हो। तुम्हे ये करना पड़ेगा।कहते हूँए वो अपनी लरखराती कदमो से आगे बढ़ी।
अपने प्यार की क़ुरबानी देकर अविका बहूँत भारी मन से नीचे उतर रही थी।आँखों में बस "जय " की तस्वीर।मन में सोच रही थी चाहती तो भाग भी सकती थी पर फिर सवाल मेरे माँ बाप के संस्कारो और उनकी परवरिश पर उठती।समाज के ताने मुझे उनकी नज़र से गिरा देते और मैं अनाथ हो जाती।पर जय के पास तो रहती न कितना प्यार करता है वो मुझसे।मैं उसके बिना कैसे जिऊंगी ? चाहती तो ज़हर भी खा लेती, पर नहीं मरने के बाद जय को क्या बोलती ? हमारा समाज ऐसा क्यूं है ? क्यूं यहाँ जातिवाद को प्यार से ज़्यदा अहमियत दी जाती है ?
तमाम सवालो के कस्मकस में उलझी अविका आगे बढ़ रही थी ,आँखे नम थी एक तरफ माँ बाप एक तरफ जय। शायद अविका ने माँ बाप चुन कर एक बार फिर अपना बेटी होने का फर्ज निभा दिया।
घुंगट ओढ़े अविका नीचे आयी और जैसे ही उसने वरमाला लड़के के गले में डाला तो देखकर दंग रह गयी।"जय तुम यहाँ "?आए मैंने बहूँत मिस किया तुम्हे। कहते हूँए उसके गले से लिपट गयी।जय ने जवाब दिया मैंने भी तुम्हे बहूँत मिस किया अविका।
फिर जय ने उसे बताया ये सब तुम्हारे माँ पापा की वजह से हूँआ।वो मेरे घर तुम्हारे लिए हाथ मांगने आए।अविका बहूँत हैरानी से अपने माँ पापा की तरफ देख रही थी।वो अभी भी समझ नहीं पा रही थी ये सब हूँआ कैसे ?अपनी कौतुहल भरी नज़रों से वह सब की तरफ देख रही थी। तभी उसके पापा उसकी लाल डायरी लेकर सामने आए और बोले बेटा आज तुमने अपने माँ बाप और प्यार के बीच अपने माँ बाप को चुनकर हमे ये अहसास दिला दिया कि हमारी परवरिश में कोई कमी नहीं थी।तुम एक आदर्श बेटी हो कहते हूँए पिता ने अपनी बेटी को गले से लगाते हूँए कहां ,तो क्या हमारा फर्ज नहीं बनता की तुम भी ख़ुश रहो। तुमने आज तक हमसे कभी कुछ नहीं माँगा ,हमेशा बेबाकी से अपनी बेटी होने का फर्ज पूरा किया।तो आज तुम्हारी चाहतो, तुम्हारे अरमानो का गला घोट कर हम भी तो चैन से नहीं जी पाते न बेटा।हमने तुम्हारी सारी छोटी बड़ी आकांक्षाओ को पूरा किया ताकि तुम हमेशा खुश रहो तो फिर ये तो तुम्हारी पूरी ज़िंदगी का सवाल था। हम सब चाहते है हमारे समाज से जातिवाद हट जाए।हमारा समाज एक नयी सोच और नज़रिये से आगे बढे तो शुरुआत तो किसी न किसी को करनी पड़ेगी न।और शादी तो एक ऐसा बंधन है जो न सिर्फ दो दिलो को जोड़ता है बल्कि दो परिवारों को भी जोड़ता है।हम तुम्हारे मन की बात कभी जान नहीं पाते अगर ये डायरी हमे न मिली होती तो। इस डायरी में कभी तुमने बहूँत भावुक होकर लिखा होगा आज "मैंने एक समझौता किया अपने प्यार और अपने माँ बाप के बीच अपने माँ बाप का हाथ थमा।शायद मैं ख़ुश न रह सकू पर उन्हें कभी ये निराशा नहीं होगी की एक बेटी ने उनकी इज़्ज़त पे कीचड़ उछाल कर उन्हें समाज के कटघरे में अकेला छोड़ खुद चैन की ज़िंदगी जी रही।ये समझौता मुझे मंजूर नहीं "। बस तभी हमने सोच लिया था कि तुम्हारे समझौते को हम एक नया नाम देंगे फर्ज।
