smriti srivastava

Drama Romance

4.9  

smriti srivastava

Drama Romance

बेपनाह इश्क़

बेपनाह इश्क़

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"न जाने क्यों खुद को अकेला सा पाया है 

हर एक रिश्ते में खुद को गवाया है 

शायद कोई तो कमी है मेरे वजूद में 

तभी हर किसी ने हमें यूँ ही ठुकराया है " .....

आज बहुत दिनों बाद यूँ ही अकेले बैठे बैठे उसकी याद आने लगी। न जाने कितने हसीन लम्हे जिए थे हमने साथ में , कितना प्यार करते थे हम एक दूसरे से , कितने सपने संजोय थे हमने पर .. यह सब सोचते हुए कब आँखे लग गयी पता ही नहीं चला । अचानक फ़ोन की घंटी बजी , तो आँखे खोलते हुए वाणी ने फ़ोन उठाया । हेलो ! हेलो ! पर कुछ जवाब नहीं आ रहा था । वाणी ने फ़ोन रख दिया और अपने कामो में व्यस्त हो गयी । इतना सारा काम था, और उसने तो अपना ध्यान भटकाने के लिए ओवर टाइम भी करना शुरू कर दिया था । वो नहीं जानती थी वो क्यों कर रही.. पर उसे इतना पता था की उसे बस अब दूर जाना है अपने प्यार से और अपनी ज़िंदगी को एक नया मोड़ देना है। वो ये सब करना तो नहीं चाहती थी पर वक्त की मांग थी और वो बेबस होकर उसे पूरा कर रही थी ।

वाणी ! अब चलो ओवरटाइम का भी समय खत्म हो गया है ..आज रात ऑफिस में ही सोने का प्लान है क्या ? ये आवाज वाणी की दोस्त वेदिका की थी । थोड़ी देर और !वाणी ने जवाब दिया । अचानक उसका कंप्यूटर बंद हो गया ..अरे ये क्या हुआ ? वाणी परेशान होते हुए बोली। अरे अब तो भगवन भी नहीं चाहते है तू और काम करे अब चल न कहते हुए वेदिका चुपके से बहार निकली ।

ये तूने किया था न वेदिका , तूने ही पीछे से लाइट काटा है न ...अरे नहीं कहते हुए वेदिका ने उसका हाथ पकड़ कर उसे ऑफिस से बाहर खींचते हुए कार में बैठा दिया ।

अच्छा वाणी तूने मुझसे प्रॉमिस किया था न तू अपनी लवस्टोरी मुझे सुनाएगी तो कब सुना रही है ?? अरे यार ! वेदिका तू चल न घर..अब लेट नहीं हो रहा तुझे?एक तो ऑफिस में मेरा कंप्यूटर बंद कर दिया और अब बकवास कर रही है ..वाणी ने झल्लाते हुए कहा । देख वाणी तू कितना भी गुस्सा कर ले मैं तेरे से नाराज नहीं होने वाली हूँ..कहते हुए वेदिका ने कार रोकी चलो अब पहुंच गए हम ।

वाणी और वेदिका दोनों बहुत अच्छी सहेली थी ..दोनों एक ही कंपनी में काम करती थी और कॉलेज के दिनों में दोनों की खूब जमा करती थी ..जॉब के बाद दोनों ने एक फ्लैट ले लिया था और साथ ही रहती थी .."एहसास ऐ दर्द हम क्या बताए,

एहसास ऐ जख्म हम क्या दिखए,

हर रात जर्रा जर्रा कर टूटते है हम,

सुबह खुद ही खुद को तिनका तिनका समेटते है हम "

अगली सुबह फिर से दोनों काम पर निकल गयी । आज वाणी अचानक ही ऑफिस से जल्दी निकल गयी । वेदिका को समझ नहीं आ रहा था जो लड़की ओवरटाइम करती है उसने आज अपना शिफ्ट तक पूरा नहीं किया । क्या हुआ है इसे ? ये सब सोचते हुए वेदिका ने वाणी को फ़ोन लगाया ...वाणी तू आज ऑफिस से जल्दी क्यों आ गयी ?क्या हुआ सब ठीक तो है न ? हां ! वेदिका तू चिंता मत कर मैं ठीक हूँ बस थोड़ा सर दर्द की वजह से जल्दी आ गयी । अच्छा ठीक है तू आराम कर कहते हुए वेदिका ने फ़ोन रखा ।

वाणी ने अपनी डायरी निकाली ... जन्मदिन की ढेर साड़ी बधाइयाँ ..कैसे हो तुम ? उम्मीद और दुआ करती हूँ की अच्छे होंगे । “पास नहीं हो फिर भी तुम्हे प्यार करते है देख कर तुम्हारी तस्वीर तुम्हे याद करते है” आखिर मोहब्बत भी तो बेइंतहा करती थी न तुमसे तो याद तो सताएगी ही न । तुम्हारे जन्मदिन पर मैंने फिर से माता रानी को चढ़ावा चढ़ाया और प्रार्थना की की तुम जहाँ भी रहो ख़ुश और सुखी रहो । शब्द नहीं मिल रहा क्या लिखू आगे… समझ नहीं आ रहा कैसे तुम्हे इन कागज के पन्नो पर समेटू।

"आँसू बन छलक जाते है वो जज्बात,

जो अक्सर पन्नो में और जुबान पर नहीं आते "

तुम् तो वो एहसास हो जिन्हे सिर्फ मैं ही महसूस कर सकती हूँ ..क्यों चले गए मुझे छोड़ कर ..एक बार सफाई देने का मौका तो देते ..और तुम तो मुझसे बेइंतहा मोहब्बत करते थे फिर कैसे नहीं समझ पाए मेरी दिल की बात ..क्यों मुझे इतना अकेला कर गए की बस तुम्हारी यादो के सिवा कुछ भी नहीं बचा मेरे पास ..जब भी तुझे याद करती हूँ मन बेचैन हो जाता है ..सीने में दर्द होने लगता है ..आँखों के अश्रु की धारा थम ही नहीं पाती …क्यों चले गए तुम एक ऐसा दर्द देके जिसे न किसे से बयां कर सकती न ही किसी के हाथ मेरे आँसू पोंछ सकते । इतना अकेला क्यों कर गए तुम आकाश... एक बेइंतहा दर्द देकर । आखिर क्या गलती थी ? एक बार डाँट के प्यार से गले तो लगा लिया होता । क्या ऐसा नहीं हो सकता था की मैं प्यार मांगू और तुम गले लगाकर कहो और कुछ ? पर अब तो इतनी देर हो चुकी है की न तुम वापस लौटोगे न ही मैं अब तुम्हारे पास आना चाहती ।

"उनके लबो को दू ,जुल्फों को दू या आँखों को तमाम दू, 

या रब तू ही बता दे अपने हश्र का किसको  इलज़ाम दू "

एक बेहद प्यारी प्रेम कहानी की ये अंत मैंने कभी कल्पना भी न की थी पर शायद तुम ख़ुश हो और तुम्हारी खुशी में ही तो मेरी खुशी है न जान। मिस यू आकाश ... काश ! तुम लौट कर अपनी वाणी को फिर से गले लगा लेते , तो सारे सिकवे गीले भूल कर हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करते पर तुम तो इतने बदल गए की इन २ सालो में तुमने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा । मेरे जान को हमेशा ख़ुश रखना खुदा उसके जख्मो की कीमत मेरी ज़िंदगी से काट लेना लिखते लिखते वाणी सो गयी । वेदिका घर आयी तो देखा वाणी का डायरी खुली हुई है और वो सो रही है ... तो वेदिका ने डायरी उठाई और सोचा चलो बड़ी दिनों बाद इसकी डायरी हाथ लगी है .. आज देखती हूँ क्या लिखा है इसने । सोचते हुए वेदिका उसकी डायरी पढ़ने लगी ।।पढ़ते पढ़ते उसके आँखों से भी आँसू आने लगी । उसने सोचा अभी आकाश को फ़ोन कर के पूछती हूँ क्यों गया वाणी को छोड़ कर ? इतना सोचते हुए उसने वाणी के फ़ोन से आकाश को फ़ोन लगाया और गुस्से से डांटते  हुए कहा क्या समझते हो तुम खुद को ?? जानते हो न कितना प्यार करती है तुमसे .. आज भी तुम्हारी जगह वो किसी को नहीं दे पायी । आकाश बेबाक का सुनता रह गया । इतनी साधारण सी लड़की जिसने कभी लड़को से बात तक नहीं किया उसने तुमसे प्यार किया , बेइंतहा मोहब्बत की ..और क्या कमी किया उसने तुमसे प्यार करने में जो तुम उसे इस कदर अकेला छोड़ गए ? कभी सोचा भी है उसके बारे में ? क्या बीत रही होगी उसपे ? किस कदर उसने संभाला है खुद को ? वेदिका के सवालो ने आकाश को मौन कर दिया । उसके पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं था । उसने बस इतना पूछा वाणी कहाँ है और कैसी है ? क्या मैं उससे मिल सकता हूँ ??वेदिका ने घर का पता आकाश को दे दिया ।

अगली शाम आकाश वाणी के दरवाजे पर खड़ा था । ये क्या वाणी इतनी बड़ी पद पर पहुंच चुकी है ? उसकी आँखे नम हो गयी .. और वो डोरबेल बजाने लगा । कुछ ही पलों में उसकी वाणी उसके सामने थी .. आकाश !! तुम यहाँ?? वाणी कितने सवाल करती हो गले तो लग जाओ न पहले ,फिर अपने सवालो का पिटारा खोलना ।। कहते हुए आकाश वाणी से लिपट गया और वाणी भी आकाश से लिपट गयी ...सारे सिकवे गीले भूलाकर दोनों ने एक दूसरे की नम आँखों को पोछते हुए कहा

कुछ खता रही होगी मेरी

कुछ खता तू अपनी मान ले

जो हो गया सो गया

चल आने वाले लम्हे को सवार ले "

ऐसा लग रहा था दोनों की तपस्या पूर्ण हो गयी थी ।। दोनों के आलिंगन में उनका आथाह प्रेम साफ़ झलक रहा था । आकाश ने सफाई देने की कोशिश की तो वाणी ने ...उसकी मुँह पर हाथ रखते हुए कहा रहने दो आकाश कुछ सवालो के जवाब मैं सुनना नहीं चाहती , तुम्हारी खमोशी तुम्हारी आँखे सब कुछ बयां कर रही है ...बहुत सी राते काटी है मैंने तुम्हारे यादो में ,जो सुकून तेरे एहसासो में है वो नींद में कहा।

वाणी मैंने तुम्हे अपने व्यवहार से बहुत दुःख पहुंचाया है | मेरा एहंकार मुझे तुमसे दूर कर रहा था और मैं इस बात को समझ ही नहीं पाया ... मैं ये महसूस ही नहीं कर पाया की तुम मुझसे बेइन्ताह बेपनाह प्यार करती हो और तुम्हारी छोटी बड़ी इच्छाओ को पूरा करना मेरा फर्ज था पर मैंने ऐसा नहीं किया तुम्हे खुद से दूर कर दिया ये जानते हुए की तुम आज भी मेरे लिए तड़प रही हो...मुझे माफ़ कर दो कहते हुए आकाश की आँखों से आँसू छलक गए ..आकाश ने क्रन्दित स्वर में कहा ....

"न चाँद की चाहत है , न सितारों की फरमाइश

हर जन्म में तू मिले , मेरी बस यही ख़्वाहिश है "

इस तरह आकाशवाणी फिर से एक हो गए।



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