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Chanchal Tapsyam

Classics Inspirational Others

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Chanchal Tapsyam

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कश्मीर भारत का एक अटूट हिस्सा (भाग–01)

कश्मीर भारत का एक अटूट हिस्सा (भाग–01)

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                कश्मीर भारत का एक अटूट हिस्सा 

                               भाग–01

"मै सोने जा रहा हूँ कल सुबह अगर तुम्हे भारतीय सैनिक विमान की आवाज सुनाई न दे ... तो मुझे गोली मार देना।"


यह कोई और नहीं महाराजा हरिसिंह ही थे जिन्होंने कहा था कि अगर हिंदुस्तान की फौज़ एक दिन में कश्मीर न पहुंचे तो मुझे गोली मार देना....! आखिर ऐसा क्या हुआ था जो उन्हें ऐसा कुछ बोलना पड़ा।


"मै श्रीमान इंदर महेंद्र राज राजेश्वर महाराजधिराज श्री हरिसिंह जी जम्मू एवं कश्मीर नरेश तथा तिब्बत आदि देशाधिपति सार्वभौम सत्ता का इस्तेमाल करते हुए ... भारत संघ के साथ इस "इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन" पर दस्तख़त करता हूं ... मै इसी के साथ भारतीय संघ में शामिल होने का ऐलान करता हूं।"


इस ऐलान से जम्मू एवं कश्मीर का मसला हल हो जाना चाहिए था लेंकिन ऐसा नहीं हुआ....? उसके पीछे का कारण क्या था... ? और इसके लिए जिम्मेदार कौन था..? प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल , लार्ड माउंट बेटन या खुद... राजा हरिसिंह।

इस समस्या को समझने के लिए हमें राजा हरिसिंह को अच्छे से समझना पड़ेगा। राजा हरिसिंह को लेकर कई किस्से प्रचलित है कि वो ज्यादातर समय या तो बॉम्बे रेस कोर्स मे गुजारा करते थे या अपने रियासत की जंगलो में शिकार करते हुए। राजाओं महाराजाओं के लिए यह कोई नई बात नहीं थी।


देश के आजाद होने से पहले लगभग 565 रियासतें थी और जब देश आजाद हो रहा था उस समय अंग्रेजों ने इन राजाओं महाराजाओं से कहा कि ओ चाहे तो हिंदुस्तान में शामिल हों सकते है.. या चाहे पाकिस्तान में.. या अगर इन दोनों में नहीं शामिल होना हो तो स्वतंत्र रह सकते है इसको अंग्रेज "लैप्स ऑफ पैरामाउंटसी" बोलते थे। राजा हरिसिंह उन राजाओं में से थे जो स्वतंत्र रहना चाहते थे। चूंकि लॉर्ड माउंट बेटन, राजा हरिसिंह को पहले से ही जानते थे, वे उनसे मिलने कश्मीर पहुंचे वहां वे राजा हरिसिंह एवं जम्मू कश्मीर रियासत के प्रधानमंत्री रामचन्द्र काक से मिले। माउन्ट बेटन ने उनके सामने किसी भी, चाहे भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का न्योता दिया लेकिन प्रधानमंत्री रामचन्द्र काक ने स्वतंत्र देश की मांग की उसी समय माउंट बेटन ने उन दोनों को चेताया कि आपको किसी एक में शामिल हो जाना चाहिए अन्यथा परिणाम के लिए तैयार रहिएगा और जो भी निर्णय लेना हो 15 अगस्त से पहले ले लीजिएगा। इस मुलाकात में तय यह हुआ कि जैसे ही माउन्ट बेटन कश्मीर से दिल्ली पहुंचेंगे वे राजा हरिसिंह से मिलेंगे, लेकिन ... राजा स्वयं न आकर एक चिठ्ठी भेजी जिसमें उन्होंने पेट दर्द का बहाना बना कर मिलने से कतरा गए। उनका यह बहाना आज कश्मीर के मुद्दे को अनसुलझा बनाए रखा ।

माउंट बेटन कश्मीर से लौटकर जवाहर लाल नेहरू से मिले .. नेहरू ने माउन्ट बेटन से बेटन और राजा से मुलाकात के बारे में पूछा, माउंट बेटन ने बताया कि राजा उनको 22 जून को मिलने वाले थे लेकिन राजा तो आए नहीं उनकी चिट्ठी जरूर आई जिसमें उन्होंने पेट दर्द का बहाना बनाया , नेहरू ने बताया कि यह राजा की कोई नई आदत नहीं है यह उनका पुराना चाल है "जब मै उनसे मिलने कश्मीर गया था तब भी राजा ने यही बहाना बनाया था।"

समय बीता भारत आजाद हुआ लेकिन कश्मीर को लेकर अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला था। अंग्रेजो के भारत छोड़ते ही पाकिस्तान ने अपनी हरकत दिखानी शुरू कर दी, पंडित नेहरू पाकिस्तान की हरकतों के बारे में जानते थे, अब भारत को इस ओर कुछ न कुछ कदम उठाने की जरूरत थी।

नेहरू ने पटेल को चिट्ठी लिखकर उनकी राय जानने की कोशिश की, उन्होंने पत्र ने पाकिस्तान की नापाक हरकतों को बयां किए और उन्होंने यह भी लिखा कि अब राजा के पास केवल एक ही रास्ता बचा है... शेख अब्दुल्ला और उनके साथियों की रिहाई। उन्होंने बताया कि अब शेख अब्दुल्ला इस विषय पर भारत का साथ देंगे क्योंकि वो भी नहीं चाहते है कि कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो जाए। शेख अब्दुल्ला को राजा का विरोध करने के चलते जेल में डाल दिया गया था।

यह शेख अब्दुल्ला कोई और नहीं फारूख अब्दुल्ला के पिता तथा उमर अब्दुल्ला के बाबा थे जो बाद में कश्मीर के मुख्यमंत्री भी बने। शेख अब्दुल्ला ने अपनी M.Sc की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की थी लेकिन कश्मीर में सरकारी नौकरी न मिलने की वजह से वे हमेशा सरकार पर पक्षपाती रहने का दोष लगाते रहते थे। शेख के अंदर एक नेतृत्व कर्ता की झलक दिखाई दे रही थी। 1932 में जब ऑल जम्मू कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस बनी तो शेख इसी का नेतृत्व कर रहे थे बाद में इसी का नाम नेशनल कॉन्फ्रेंस पड़ा। 

शेख अब्दुल्ला सेकुलर व्यक्ति थे इसी के चलते उन्होंने न जिन्ना को न ही मुस्लिम लीग को कश्मीर में पैर जमाने दिया और इन्हीं विचारों के चलते नेहरू और शेख ये बीच नजदीकियां बढ़ी।

 1946 में शेख अब्दुल्ला राजा के राजशाही को खत्म करने के लिए उनका विरोध कर रहे थे इसके कारण उनको गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन पंडित नेहरू के दबाव के चलते 29 सितंबर 1947 को रिहा कर दिया गया । अब देश आजाद हो चुका था लेकिन कश्मीर अभी भी दुविधा में था।

उधर मोहम्मद अली जिन्ना ने कश्मीर के साथ हुए स्टैंड स्टील अग्रीमेंट को तोड़ दिया तथा कश्मीर को पेट्रोल, अनाज आदि की सप्लाई बंद कर दी। पाकिस्तान किसी भी प्रकार से कश्मीर को पाकिस्तान के साथ मिलाना चाहता था। इस बात को जोर तब मिला जब पाकिस्तान से हथियारों,बंदूको से लैश घुसपैठियों ने 22 अक्टूबर 1947 को कश्मीर पर हमला बोला। एक तरफ हज़ारों की संख्या में घुसपैठियों ने श्रीनगर की तरफ धावा बोला और दूसरी तरफ कश्मीर में बगावत हो गई.. मुस्लिम सैनिकों ने सेना छोड़ कर घुसपैठियों से हाथ मिला लिया इससे उन घुसपैठियों के हौसले बुलंद हो गए और वे मुजफ्फराबाद तक पहुंच गए जो कश्मीर से लगभग 164 किमी दूर रह गया था। राजा विचलित हो उठे उन्होंने तत्काल अपने ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह को बुलाया। ब्रिगेडियर के पास चुनौतियों को हल करने तथा देश के लिए बलिदान देने की क्षमता थी। राजा ने हमलावरों को रोकने के लिए ब्रिगेडियर के साथ जाने को कहा, और यह भी कहा कि हमलावर ज्यादा से ज्यादा क्या करेंगे... जान से ही मरेंगे न। ब्रिगेडियर हमलावारों के चाल को समझते थे उन्होंने राजा को समझाया कि हमलावर आपको मरेंगे नहीं बल्कि कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने का दबाव बनाएंगे और दुनिया को यह दिखाएंगे की राजा स्वयं ही कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल कर रहे हैं।

अब हमलावर डोमेल पहुंच चुके थे उनको उरी तक पहुंचने में एक पतले (सकरे) पुल से होकर गुजरना था। ब्रिगेडियर सेना के साथ मिलकर पुल को धराशाई कर दिए जिससे हमलावारों को लगभग 48 घंटे वही रुकना पड़ा। वहां युद्ध हुआ ब्रिगेडियर जांबाजी से लड़ते–लड़ते शहीद हो गए। यह शहादत आज कश्मीर को पाकिस्तान में मिलने से बच लिया। 

हमलावर उरी तक पहुंच गए इससे राजा के होश उड़ने लगे अब उरी से श्रीनगर की दूरी केवल 90 किमी बची थी। उरी से आगे बढ़ते ही हमलावारों ने महोरा हाइड्रो पावर (बिजलीघर) को कब्जे में ले लिया तथा बिजली काट दी जिससे श्रीनगर अंधेरे में डूब गया अब श्रीनगर पर कब्जा करना उनके लिए बस चंद घंटों को बात थी। हमलावर आगे बढ़ते हुए बारामुला के क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे अब उनकी श्रीनगर से दूरी मात्र 54 किमी बची थी। अब सबको लगने लगा था कि कश्मीर, पाकिस्तान में शामिल होने की अंतिम क्षण में प्रवेश कर चुका है, हमलावरों के बारामुला पहुंचते–पहुंचते कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया। 


अब आगे की कहानी जानने के लिए पढ़े भाग–02 को, जिसके लिए आपको करना पड़ेगा थोड़ा सा इंतजार।





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