Mamta Agrawal

Drama Romance

2.5  

Mamta Agrawal

Drama Romance

कशिश

कशिश

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स्नेहा सब काम निपटाकर स्टडी टेबल पर बैठी ही थी और, "ट्रिन ट्रिन" फोन की घंटी बजी। स्नेहा ने जल्दी से फोन उठाया।

"क्या बात है जानू, अब तक सोई नहीं तुम ? मेरी याद तो नहीं आ रही ?" शेखर ने शरारत से पूछा।

"सच्ची तुमसे कभी अलग नहीं रही न, नींद आ ही नहीं रही, आ जाओ जल्दी से।" स्नेहा ने भी शरारत से ही जवाब दिया। कुछ देर बस यूँ ही शरारत भरी बातें चलती रही।

"अच्छा ! अब सो जाओ जल्दी से। कल सोने नहीं दूंगा।" मुस्कुरा कर स्नेहा ने फोन बंद किया।

डायरी खोली, वैसे उसका नियम नहीं था रोज़ लिखने का, पर आज कुछ लिखने का मन हो रहा था, आज शेखर भी नहीं थे, बच्चे सो गए थे, और सच में नींद भी तो नहीं आ रही थी।

आज का दिन शायद बहुत खास था उसके लिए। बस दिनभर सोचती ही रही थी। अमित और अपने बारे में।

आज ५ मई २०१४, २५ साल हो गए आज। वक़्त कैसे पंख लगा कर उड़ गया और कितना कुछ बदल गया ज़िन्दगी में। कितने उतार चढ़ाव, कितना संघर्ष।

५ मई १९८९ आज ही का दिन था अमित जब मैं तुम से आखरी बार मिली थी। अपने आप से वादा करके की अब मैं तुमसे कभी नहीं मिलूंगी। पर क्या निभा पायी थी ? शायद नहीं, हाँ मिली नहीं थी तुमसे तुम्हारी इतनी कोशिशों के बाद भी, पर क्या भुला पायी थी तुम्हें, नहीं अमित मेरी डायरी का हर पन्ना तुम्हारी यादों की अमानत था।

मुझे याद है वो दिन जब पहली बार हम मिले थे, पापा के बॉस की बेटी मीना दीदी ने पहचान करवाई थी हम दोनों की, और लिखते लिखते वह अतीत में खो गयी।

"अमित, ये स्नेहा है कल ही इसके पापा गुडगाँव से यहाँ ट्रान्सफर होकर आये हैं।"

"स्नेहा अमित मेरे काकाजी का बेटा है तुम्हारी ही क्लास में है, पुणे की बेस्ट कॉलेज में पढ़ता है इसके पापा की अच्छी पहचान है कॉलेज में।"

मैंने और अमित ने हाथ मिलकर हेलो किया। अमित पहली नज़र में बहुत स्मार्ट लगा था। घुंघराले बाल, नीली आँखें, गोरा रंग और गुलाबी होठों पर एक हलकी सी मुस्कान। बहुत अच्छा लगा।

वो भी शायद मुझे ही देख रहा था। मैंने काली स्कर्ट और लाल रंग की टॉप पहन रखी थी, खुले बॉबकट बाल और करीने से किया हुआ हल्का मेकअप। उसने कहा "लेट्स बी फ्रेंड्स !" मुझे अच्छा लगा। मैंने हामी भर दी।"अमित!" मीना दीदी ने कहा "स्नेहा बहुत ब्रिलियंट है, बोल्ड और मॉडर्न भी, फर्स्ट इयर में यूनिवर्सिटी टॉप किया है। तुम्हारी कॉलेज में एडमिशन लेना चाहती है। स्नेहा के पापा अभी टेक ओवर में बिजी रहेंगे। क्या तुम स्नेहा की हेल्प करोगे पढ़ाई में। "कम ऑन मीना दीदी, आपने कहा है तो फॉर श्योर।" अमित ने कहा "स्नेहा कल तुम मुझे यहीं मिलना सुबह १० बजे अपने पेपर्स के साथ। हम लोग एडमिशन की फॉर्मेलिटी पूरी कर लें। दूसरे दिन अमित बाइक लेकर आया था मुझे लेने। और अगले ३-४ दिन हम लोग कॉलेज-यूनिवर्सिटी और घर के ही चक्कर लगाते रहे। आखिर मुझे उसकी कॉलेज में एडमिशन मिल गयी थी। बहुत हेल्प की थी अमित ने और पूरा ख़याल रखा था मेरा। बात बात में कोई चुटकुला छोड़ देना उसकी आदत में था। हँस हँस कर पेट में बल पड़ जाते। कहूँ तो एक अच्छा दोस्त मिल गया था नयी जगह में। मेरे थैंक यू कहने पर कहा "इसकी कोई जरुरत नहीं, लेकिन मैं पढ़ाई में थोड़ा सा पीछे हूँ। लास्ट मिनट में पढ़कर पास होता हूँ। बस अपनी नोट्स मुझे दे दिया करना।"

कॉलेज में अमित की वजह से बहुत जल्दी कुछ अच्छे दोस्त सहेलियाँ मिल गयी। एक अच्छा खासा ग्रुप बन गया था बस दिनभर पढ़ाई के साथ साथ धमा चौकड़ी मची रहती। घर जाने का मन ही न करता।

अचानक स्नेहा ने पीठ पर किसी का हाथ महसूस किया। चौंक कर वर्तमान में पहुँची स्नेहा ने देखा। श्रुति कह रही थी "मम्मी क्या कर रही हो, सो जाओ रात के १ बज रहे हैं।" "हाँ सोती हूँ बेटा।" उसने कहा और पानी पीकर, बत्ती बंद करके बिस्तर पर लेट गयी। पर नींद कहाँ थी आँखों में उसकी। फिर यादों में खो गयी।

"अमित ! स्नेहा पहली बार स्टडी टूर पर जा रही है। इतने दिन मैंने उसे अकेले कहीं नहीं भेजा। तेरे कहने पर भेज रही हूँ। इसका ख्याल रखना !" मम्मी अमित से कह रही थी। और स्नेहा पैकिंग में व्यस्त थी। बहुत खुश थी वह। पहली बार घर की चारदीवारी से दूर अपने दोस्त सहेलियों के साथ दो हफ्ते के टूर पर जाना बहुत अच्छा लग रहा था। और फिर साथ में अमित भी तो था। कितना हँसी मज़ाक करता रहता था।

चेन्नई में जब सब लोग स्टडी टूर से वापस आकर होटल पर शाम में आराम कर रहे थे, उसने अमित से कहा "मुझे बीच पर जाने का बहुत मन है, प्लीज ले चलो।" अमित मैडम से इजाजत लेकर उसे मरीना बीच ले गया था। पहली बार किसी बीच पर आई थी वह। साथ साथ चल रहे थे दोनों। चलते चलते उसने अमित का हाथ पकड़ लिया और दूर तक चलते रहे दोनों बिना कुछ कहे। पानी की लहरों ने कदमों को छुआ तो बहुत अच्छा लगा। उसने सैंडल खोल दिए और हाथों में पकड़ कर पानी के किनारे किनारे चलने लगी। अचानक एक बड़ी तेज लहर आई, उसके पैर लड़खड़ा गए और गिर पड़ी वह। हाथों से सैंडल छूट गए। अमित को भी तेज झटका लगा और गिरते गिरते बचा था वह भी। लेकिन हाथ नहीं छूटने दिया। खुद को जल्दी से संभालकर उसे भी संभाला और पानी के बाहर ले आया था। कितनी डर गयी थी वह। अमित के सीने पर सर रख दिया था। अमित उसके सर पर हाथ फेरता रहा। फिर अपनी जैकेट पहनाकर होटल ले आया था। रात हो गयी थी सब परेशान थे। लेकिन अमित ने सब संभाल लिया था। उसके बाद पूरे टूर में वह और अमित हमेशा साथ साथ रहे थे। बहुत गहरी दोस्ती हो गयी थी उन दोनों में। बल्कि कुछ दोस्त तो पीठ पीछे लव बर्ड्स कहने लगे थे उन्हें। जब भी ऐसा कुछ कानों पर पड़ता वह शरमा जाती। लेकिन जब सोचती तो ऐसी कोई बात नहीं है। बस सर झटक देती।

उस दिन अमित कॉलेज नहीं आया था। कॉलेज की परीक्षा सर पर थी। और अमित ने उसकी प्रैक्टिकल बुक वापस नहीं की थी। तो कॉलेज से लौटते वक़्त सायकाल अमित के घर की तरफ मोड़ दी। पहली बार गयी थी उसके घर। आंटी ने कहा, "अमित कमरे में पढ़ रहा है वहीं चली जाओ। उसके कमरे में गयी। "वाह !" कमरा बहुत सलीके से सजा हुआ था। हर चीज अपनी जगह करीने से रखी हुई। दीवारों पर पेंटिंग्स टंगी हुई थीं। वह स्टडी टेबल पर प्रैक्टिकल बुक कॉपी कर रहा था। कितनी नाराज़ हुई थी वह। लेकिन अमित पर कोई असर नहीं हुआ। बोला "अब शांत भी हो जाओ स्नेहा ! मैंने कहा था तुम्हें, देखो ये मेरी फीस है तुम्हें एडमिशन दिलाने की।" तभी एक लड़की ट्रे में चाय और नाश्ता लेकर आई। साधारण शक्ल सूरत की लेकिन बहुत शालीन थी वह। लम्बी चोटी, मेकअप विहीन चेहरा, सलीकेदार सलवार कमीज और होठों पर मुस्कान। "हाय स्नेहा.." उसने कहा। पर ये उसे कैसे जानती है ? "स्नेहा पल्लवी से मिलो। मेरी बचपन की दोस्त। हमारे पड़ोस में ही रहती है। ये मेरे सभी दोस्तों के बारे में सबकुछ जानती है। फ़ाईन आर्ट्स में ग्रेजुएशन कर रही है। मेरे कमरे की सब पेंटिंग्स इसी ने बनाई है। चलो तुम दोनों बात करो तब तक मैं फटाफट कॉपी कर लेता हूँ।" उस ने फिर कहा। पल्लवी से कुछ इधर उधर की बातें हुई। बता रही थी की अमित बहुत तारीफ करता है स्नेहा की। लेकिन स्नेहा का ध्यान नहीं था। बस नोट्स और प्रैक्टिकल बुक लेकर वापस आ गयी थी। पता नहीं क्यों उस दिन मन ठीक नहीं लगा। पल्लवी अच्छी थी फिर भी अमित का पल्लवी की तारीफ करना अच्छा नहीं लगा था उसे। एक अजीब सी कसमसाहट, पहली बार लगा की उसे अमित से प्यार हो गया था। लेकिन अमित का व्यवहार एकदम सामाएक और साल ऐसे ही बीता। और इस साल उसके मन में प्यार का पौधा बढ़ने लगा था। हमेशा मस्ती करने वाली स्नेहा तब खोई खोई सी रहने लगी। अमित कई बार मज़ाक उड़ाता। शायद वह समझ गया था उसके मन की बात लेकिन कुछ कहा नहीं। बस हमेशा एक ही बात कहता "स्नेहा तुम्हें अपने सपने पूरे करने हैं। फाइनल की परीक्षाएं चालू हो गयी थी। इस बार परीक्षा का सेंटर दूर था। मम्मी के कहने पर अमित रोज़ उसे लेने आता। पेपर ख़त्म होने पर घर वापस छोड़ जाता।

टन टन टन, घड़ी ने तीन बजाये, लेकिन यादें पीछा नहीं छोड़ रही थी। पानी पीकर वह फिर स्टडी टेबल पर आकर बैठ गयी। फिर से लिखने लगी।

५ मई १९८९, उस दिन आखरी पेपर था। सोच लिया था मैंने। आज अपने मन की बात कह दूँगी अमित "अमित आज आखरी पेपर है। परीक्षा के बाद हम कहीं चलेंगे। कोई बहाना नहीं चलेगा।" किसी तरह पेपर ख़त्म हुआ। अमित ने डेस्क पर आकर कहा "चलो कहाँ चलना है ?" आज मन में हलचल थी। मैंने कहा "चलो, शहर के बाहर टेकडी पर जो गुफाये हैं वहीं जाकर बैठते हैं थोड़ी देर।" अमित आज अलग सी फरमाइश पर चौंका था। शायद उसने सोचा था हमेशा की तरफ फिल्म दिखाने की जिद करुँगी। हम घुमावदार रास्ते से टेकडी पर पहुंचे। मैं आज बाइक पर अमित की कमर में हाथ डालकर बैठी थी वहां हम दोनों अकेले थे। गुफा के बाहर सीढ़ी पर बैठ गए हम दोनों। कुछ देर बात करने के बाद अमित ने कहा "आज कुछ ख़ास बात है ? यहाँ क्यों लाई हो ?" मेरा दिल धड़क गया। कैसे कहूँ ! मैंने अमित की तरफ देखा और नजरें झुका ली। "कुछ कहना है ?" अमित ने कहा। मैंने नज़रें उठाई। उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर लरजते स्वर में कहा "अमित ! मैं नहीं जानती ये कब और कैसे हुआ। नहीं जानती कब तुम्हारी दोस्ती प्यार में बदली। बस इतना जानती हूँ बस हर वक़्त ख्यालों में तुम हो। सपनों में तुम हो। अब मेरा दिल सिर्फ तुम्हारे लिए धड़कता है... मुझे तुमसे प्यार हो गया है...आय लव यू अमित.. ।" मैंने किसी तरह कहा और नज़रें झुका ली। दिल जोर से धड़क रहा था। शर्म के मारे नज़र नहीं उठ रही थी। बस लग रहा था की अमित अभी "आय टू लव यू" कहके मुझे बाहों में ले लेगा। पर ऐसा नहीं हुआ। अमित ने हाथ छोड़ दिया। बस चुपचाप बैठा रहा। मैंने आँखे उठाकर देखा तो वो मेरी तरफ ही देख रहा था। जो कुछ भी था उसकी आँखों में... प्यार नहीं था। "कुछ तो कहो अमित" मैं कुछ नहीं समझ पा रही। "स्नेहा.. तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। लेकिन मैं तुमसे प्यार नहीं करता।" अमित ने कहा था।

"पर क्यों ?" बेसाख्ता सवाल निकल गया था मेरे होठों से। "स्नेहा ! तुम मुझे गलत मत समझना। मैं तुम्हे धोखे में नहीं रखना चाहता। पल्लवी और मैं एक दूसरे से प्यार करते हैं। विवाह में बंधने का वादा एक दूसरे से कर चुके हैं हम दोनों। मेरे मम्मी पापा उसे बहु के रूप में स्वीकार कर चुके हैं। बस मैं कुछ बन जाऊं फिर हम विवाह भी कर लेंगे।"

"लेकिन मैं !"

"समझता हूँ स्नेहा। मैंने तुम्हारे मन की बात बहुत पहले समझ ली थी लेकिन कुछ कहा नहीं था। अगर कह देता तो तुम पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाती और तुम्हारा सपना अधूरा रह जाता। पल्लवी मेरा बचपन का प्यार है। मैं उसे धोखा नहीं दे सकता। तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो। रहोगी भी। लेकिन मुझे माफ़ करना दोस्त मैं तुमसे प्यार नहीं करता।"

मैं आसमान से गिरी थी जैसे। सब कुछ फ्रीज़ हो गया था। क्या कहूँ मैं। जैसे गहरे कुँए से निकली हो मेरी आवाज। मैंने कहा था "ठीक है अमित। अब मेरे पास कहने को कुछ नहीं बचा। मुझे ख़ुशी है की तुम अपने वादे के पक्के हो। बहुत खुशनसीब है पल्लवी जिसने तुम्हे पाया। तुम्हारे प्यार को पाया। पल्लवी बहुत अच्छी है। तुम खुश रहना उस के साथ। मैं वादा करती हूँ तुम्हारी ज़िन्दगी में फिर कभी नहीं आऊँगी। बस एक रिक्वेस्ट है आज कुछ ऐसा उपहार दो जिसे मैं हमेशा अपने पास रख सकूँ।" "स्नेहा !" लरज गया था उसका स्वर, अपने हाथों में मेरे चेहरे को थाम कर कहा "तुम बहुत स्वीट हो सच में। लेकिन ये सब मेरी आँखों में देख कर कहो।" और बस बिखर गयी थी मैं। रो पड़ी एकदम उसके सीने पर सर रखकर और रोती रही हिचकियाँ लेकर। सिसक सिसक कर। "रो लो स्नेहा, आज जितना रोना है पर इसके बाद मुझे याद करके कभी मत रोना। मैं तुम्हारा दोस्त हूँ हमेशा।" पता नहीं कितनी देर रोती रही और अमित मेरे बालों को सहलाता रहा। सर थपथपाता रहा। धीरे धीरे शांत होती गयी थी फिर अमित ने धीरे से मेरा चेहरा ऊपर किया। होठों से मेरे माथे पर हल्का सा चुम्बन अंकित किया। फिर अपने होठों को मेरी दोनों आँखों पर रखकर चूम लिया। फिर हाथों से मेरे चेहरे को थाम कर कहा "तुम बहुत प्यारी हो स्नेहा.." और लरजते हुए होंठ मेरे होठों पर रखकर चूमने लगा। धीरे धीरे चुम्बन गहरा और गहरा होता गया। और मैं बस खो गयी अमित में। पता नहीं कितनी देर तक चूमता रहा वो मुझे। मुझे बस लग रहा था बस समय यहीं ठहर लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अमित ने मुझे अपने से अलग किया। और कहा "स्नेहा.. अब तुम इस चुम्बन को कभी नहीं भूल पाओगी। ये मेरी याद का तोहफा है।"

कितनी सच थी उसकी बात, आज पच्चीस साल हो गए, उसके बाद मैं अमित से कभी नहीं मिली। लेकिन एक पल को भी नहीं भूला वो चुम्बन, न उस चुम्बन की कशिश।

पांच बज गए थे, नींद न आनी थी, न आई, लेकिन आज सच में अपना वादा तोड़ने का मन है। आज मैं अमित से बात करुँगी। अब प्यार नहीं दोस्ती निभाऊंगी।

इसी निश्चय के बाद पेन बंद कर के जब उठी तो जैसे मन पंख की तरह हल्का हो गया। और बिस्तर पर गिरते ही स्नेहा नींद के आगोश में चली गयी।


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