Mamta Agrawal

Tragedy Inspirational

4.2  

Mamta Agrawal

Tragedy Inspirational

विडंबना

विडंबना

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स्मृति कुछ परेशान सी थी कमरे के कोने में अकेली बैठी जैसे कुछ सोच रही थी.


"मैं कौन हूँ। क्यों हूँ इस दुनिया में? कोई मुझसे प्यार नहीं करता। पर क्यों क्यों? मेरी क्या गलती है?”. चिल्ला उठी वह. फिर हताश होकर बैठ गयी


"क्यों। क्यों पूछ रहे हो? मुझ से ? ऐसे न कहूं तो क्या कहूं?”


कल स्कूल में स्कॉलरशिप परीक्षा के फॉर्म भर रहे थे सब. मुझे भी देना है. टीचर ने कहा मैं होशियार हूँ मेरे को भी ये परीक्षा देनी चाहिए। कल पूछा पापा से तो बोले “स्कूल में भेज रहे हैं इतना बहुत है ये ज्यादा की परीक्षा वरीक्षा देने की जरूरत नहीं। हम फीस नहीं भर सकते.”


“अब बताओ। कल भैया ने नए जूते मांगे तो फटाक से उसे बाजार ले गए. भैया के पास पहले से दो जोड़ी जूते हैं फिर भी. मेरेको फीस के सौ रुपये दे देते तो क्या होता।? पर नहीं। क्यों ? क्योकि मैं लड़की हूँ हैं न”


माँ से कहा तो बस चुप चुप रोने लगी. बोली “बहस न करों लड़की का जन्म ऐसा ही होता है.”


“अब बताओ. ऐसा क्यों? मैं भी तो इंसान हूँ.”


“कल दादी ने लडडू बनाये। भैया को बुलाकर अपने हाथों से दो दो लडडू खिलाये। मैंने मांगे तो जोर से डांट दिया। बोली अपने मन को ललचाना बंद करो अगले घर जाना है लड़कियों के इतने लाड चाव ठीक नहीं. फिर माँ को भी डांटने लगी। बोली लड़की की जात को इतना सर न चढ़ाओ”


“अब बोलो!! एक लड्डू मांग लिया तो क्या सर चढ़ गयी मैं. भैया बिलकुल पढ़ाई नहीं करता लेकिन उसके लिए नया बस्ता नयी किताबे, नया कंपास और मेरे लिए? भैया की पुरानी किताबें, उसके छोड़े हुए पेन पेन्सिल, उसकी छोटी हुई शर्ट? मेरा भी मन करता है नया पहनने का कुछ खाने का, खेलने का. पर ना. मुझे तो घर के काम सीखने होंगे. अगले घर जो जाना है. हुह! ”


छोटी मुन्नी कितनी सुन्दर है फिर भी कल पापा माँ से कह रहे थे फिर से दहेज़ का सामान पैदा कर लाई. दादी भी बात बात में माँ और मुन्नी को कोसती है.


आपको बताऊँ माँ भी पढ़ीलिखी है हिसाब किताब जानती है लेकिन फिर भी दादी और पापा छोटी छोटी बात के लिए उनको डांटते हैंक्यों पैदा किया मुझे जब पापा को, दादी को, माँ को मेरी जरूरत नहीं थी? क्यों जियूं मैं जब बड़े होकर मेरी भी गत माँ जैसी होने वाली है?”


वह रो पडी और दोनों हाथों में चेहरा छिपाकर बैठ गई. लेकीन फिर एक ही मिनट बाद उठ गई जैसे मन में कुछ ठान लिया है. चेहरे से आनसू पोंछकर बुलंद आवाज मे कहा - 


"लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। मैं अपने दम पर पढाई करुँगी। कुछ बन के दिखाउंगी। और पापा के नहीं अपने भरोसे माँ और मुन्नी को नयी ज़िंदगी दूंगी।"


दोनों हाथों को आसमान की तरफ उठाये और ऊपर देखकर बोली "भगवान मैं जानती हूँ आप मेरा साथ देंगे।"



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