कुमार संदीप

Drama

5.0  

कुमार संदीप

Drama

करुण पुकार

करुण पुकार

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फुटपाथ पर फूट-फूट कर रोती उस विधवा असहाय महिला की तरफ किसी की नजर नहीं जा रही थी।

सभी ख़ुद में मस्त और व्यस्त थे। आने जाने वाले यात्रियों में से किसी एक की नज़र पड़ती भी थी उस विधवा की ओर तो वह अनसूना कर वहां से निकल जाता। किसी तरह ज़िंदगी गुजार रही थी वह असहाय बेबस महिला। शायद इस जहां में उसका कोई अपना अब शेष नहीं था।

वह कंपकपाती ठंड में खुले आसमां के नीचे बैठकर खूब रो रही थी। ख़ुद को कोस रही थी। ईश्वर से गुहार कर रही थी कि हे ईश्वर!दोनों पाँव भी अब आगे बढ़ने के लिए राजी नहीं हैं हर तरह से टूट चुकी हूँ ईश्वर या तो किसी का सहारा मिल जाए या दे दो आप मौत तोहफे में।

आज का समाज भी स्वार्थी है न ! उसे तो ख़ुद की तरक्की और उपलब्धि से मतलब है। मेरा अपना अब कोई नहीं है इस जग में। हे ईश्वर सुन लीजिए मेरी करुण पुकार। हाँ ईश्वर सुन लीजिए मेरी करुण पुकार।


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