कर्त्तव्य
कर्त्तव्य
कई दिनों से मन बहुत खराब है, पता नही क्यों अजीब - सा भारीपन महसूस हो रहा है, क्यों इतनी परेशान हूँ ? कुछ समझ नहीं आ रहा है । फिर सोचा कि आज इस बेचैनी का कारण तो ढूंढ़ के ही रहूंगी । हरा भरा परिवार है, मेरे पति प्राइवेट कंपनी में एक ऊँचें पद पर हैं, तनख्वाह भी इतनी अच्छी मिलती है कि घर खर्च, बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने के बाद भी बच जाती है । कम उम्र में अपना खुद का घर भी हो गया । फिर ये उलझन कैसी ?
सुबह आठ बजे के अंदर चाय, नाश्ता, बच्चों को टिफिन और इनके लिये दोपहर का खाना भी बना के देना पड़ता है । देखा जाये तो एक एक्सप्रेस की तरह बनना पड़ता है।
उसके बाद फिर घर के बाकी काम, मन तो तब उदास हो जाता है जब हमारे पतिदेव रात को नौ बजे घर लौट के जल्दी खाना देने की फरमाइश रखते हैं ताकि वो जल्दी सो के सुबह जल्दी आफिस जा पाएं । तब ये सोच के आँखों में आंसू आ जाते हैं कि क्या इनके पास एक मिनट भी नही हमारे लिए ? रविवार तो पलक झपकते ही निकल जाता है सारे रुके हुए काम को करने में और सोमवार की तैयारियों में ।
पर आज तो ठान ही लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाये इनसे पूछकर ही दम लूंगी कि क्या इनका मेरे प्रति प्रेम समाप्त हो गया है ! सारे दिन पलके बिछाकर इंतज़ार करो और बदले में ये सुनने को मिलता है कि खाना जल्दी दो, सुबह जल्दी ऑफिस जाना है।
आज तो सोते समय पूछ ही लिया कि क्या आपके पास मेरे लिए कोई समय नही है ? अचनाक ही ये गुस्से से चिल्ला उठे किसके लिए कर रहा हूं इतना काम ? तुम्हारे शौक पूरा करने और बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए, ताकि तुम लोगों को कोई कमी ना महसूस हो । तुम लोगों के लिए जी जान लगा देता हूँ और तुम मेरा एहसान मानने की बजाय ऐसे फालतू के सवाल पूछ रही हो ? मै भी चिल्ला उठी, मै कोई तुम्हारे घर की नौकरानी नही हूँ ? तुम्हारे लिए और तुम्हारे बच्चों के लिए सारा दिन पिसती रहती हूँ । तुम को तो मेरा एहसान मानना चाहिए । झगड़ा इतना बढ़ गया था कि हम ये भी भूल गये थे की हमारा तेरह साल का बेटा हमारे पास था । उसको देख थोड़ा चुप हो गए हम लोग । हमे ऐसे झगड़ते हुए देख कर वो बोला,
"पापा - मम्मी, आप दोनों ये सब काम किसके लिये कर रहे हो ? हमारे लिये ना ? आप दोनों वही कर रहे हो जो संसार में हर माँ - बाप करते हैं, अपने बच्चों को एक बेहतरीन ज़िंदगी देना । हर अच्छा पति अपनी पत्नी को खुश देखना चाहता है और हर अच्छी पत्नी अपनी पति को । आप लोग तो बस अपना कर्तव्य कर रहे हो । कोई किसी के ऊपर एहसान नही कर रहा है, अपने निजी जीवन से थोड़ा वक्त निकाल के कभी साथ में अनाथालय या फिर वृद्धाश्रम जैसी जगह पर जाइये और उन लोगों के लिए कुछ करिये तब शान से बोलिएगा की हम कुछ महान काम किए हैं ।"
पता नही चला हमारा बेटा कब इतना बड़ा और समझदार हो गया ! हम पति - पत्नी दोनों एक दूसरे को देख के ये समझ गये थे कि हम तो बस अपना अपना कर्तव्य निभा रहे थे और उसी में अपनी झूठी महानता ढूंढ रहे थे। फिर थोड़ी ग्लानि और हल्की मुस्कान के साथ अगले दिन के काम के लिए सोचने लगे । लेकिन इस बार कोई महानता का भाव नही था, अगर कुछ था, तो वो था अपने अपने कर्तव्य पूर्ति की भावना...।