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इच्छाशक्ति

इच्छाशक्ति

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अभी गर्मियों की छुट्टियां पड़ चुकी हैं। साल भर बच्चे पढ़ाई पूरी करके और मम्मियां घर के काम करके त्रस्त हो चुकी हैं। इसीलिए सबको गर्मी की छुटियों का इंतज़ार रहता है। अपनों से मिलने की और अपनी थकान दूर करने की तलब - सी लगती है। ऐसा लगता है जैसे सबको और एक साल के लिए पावर बुस्टर मिल जाता है। चाहे दादा - दादी हो या नाना - नानी हो, साल भर से पलकें बिछा के बैठे रहते हैं अपने पोते - पोतियों को मिलने के लिये और कुछ वक़्त बिताने के लिए।

चलिए आप सबको मैं अपनी गर्मी की छुटियों की एक कहानी बताती हूँ। एक बार गर्मी की छुट्टियों में मैं अपने मम्मी - पापा और बहनों के साथ मामा के घर गई थी। बहुत जगह घूमे, मामा के साथ खेलना, मामी के मज़ेदार जोक्स, नानी की कहानियां और कई मज़े किये। अब घर वापस आने का समय आ गया था।

जिस दिन घर वापस अपनी गाड़ी में लौट रहे थे तब मेरे मन में घटगावँ स्थित माँ तारिणी मंदिर जाने की बहुत इच्छा हुई क्योंकि मेरी उनमें बहुत श्रद्धा है , उनके मंदिर तो बहुत बार गई हूँ लेकिन आज कुछ ज्यादा ही इच्छा हो रही थी माँ से मिलने की। मैंने पापा और ड्राइवर अंकल से पूछा कि क्या हम मंदिर के रास्ते से जा सकते हैं, मुझे माँ के दर्शन की बहुत इच्छा हो रही है। पापा बोले नहीं बेटा, अब तो 7 बज रहे हैं और रात को चोरों का भी डर रहता है और रास्ता भी ठीक नहीं है। मैं थोड़ी दुखी हो गई क्योंकि मैं अपनी माँ तारिणी के लिए नारियल भी लायी थी। मेरी माँ को नारियल बहुत पसंद है। लोग तो अपनी मन्नत के लिए एक सौ आठ नारियल का दान करते हैं और उन्हें नारियल की देवी भी बुलाते हैं। पापा जैसे ही मना किये मैं थोड़ा दुखी होकर अपने स्थान पर बैठ गई, दुख के कारण आँखों से आंसू भी निकलने लगे।

मन ही मन माँ तारिणी जी को स्मरण की और बोली माँ आपसे मिलने की बहुत इच्छा हो रही है पर अब मैं क्या करूँ ? सोचते - सोचते और रोते - रोते कब आँख लग गई पता नही चला । करीबन रात 9 बजे के आसपास मुझे पापा की और ड्राइवर अंकल की आवाज़ सुनाई दी और दोनों मुझे जगा रहे थे कि देखो बेटा तुम्हारी माँ का मंदिर आ गया।

मै चौंक गई और पूछी आप तो इस रास्ते से नहीं आने वाले थे । तब ड्राइवर अंकल बोले कि जहाँ से रास्ता दो हिस्से में बंट रहा था, वहाँ मैं समझ नहीं पाया कि किस तरफ जाना है और उसी समय पता नहीं मुझे जैसे लगा कि कोई मेरे हाथ से स्टीयरिंग को मंदिर की रास्ते की तरफ मोड़ रहा है। कुछ देर बाद मुझे पता चला कि ये तो माँ तारिणी जी के मंदिर वाला रास्ता है। 

मैं बहुत अचंभित थी, मंदिर के सामने गाड़ी रुकी। मंदिर की रोशनी, उसका तेज, मानो लग रहा था कि माँ अपना आंचल फैलाए मेरी ही प्रतीक्षा कर रही हो और यही बोल रही हो कि जिसे मुझसे मिलने की इतनी इच्छा हो उसे मैं निराश कैसे कर सकती हूँ। मैं दौड़ के अंदर गई, पंडित जी को नारियल सौंप के ,माँ तारिणी जी के उस ममता रूपी आंचल में लिपट गई।

तब पता चला, मन की शक्ति के आगे तो भगवान भी हार मानते हैं।

दोस्तों, जब भी आप ओडिशा जाएंगे घटगावं स्थित माँ तारिणी मंदिर देखना मत भूलियेगा। साथ में नारियल भी लेके जाना, बहुत दयालु है मेरी माँ। सबके ऊपर कृपा करती हैं, लेकिन मन में इच्छा होनी चाहिए।।

जय माँ तारिणी 

संकट हारिणी ! 

                         

आप सबकी,

 मिताली


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