Mitali Paik "Akshyara"

Drama

4.8  

Mitali Paik "Akshyara"

Drama

सच्चा सारथी

सच्चा सारथी

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अरे बाप रे ! बहुत समय हो गया है,। अभी इतनी रात को घर पहुँचूंगी तो पापा मेरी जान ही ले लेंगे। मुझे कभी भी बाहर नहीं छोड़े इतनी देर तक किसी भी कॉलेज के प्रोग्राम में। आज हमारे बैच का फेयरवेल था। बहुत मिन्नते करके आयी थी कॉलेज में। साथ में पापा का सख्त हिदायत था की शाम को छह बजे से पहले घर पहुंच जाऊं। लेकिन ये अर्णव है ना, इसके साथ बात करते करते कब समय निकल जाता है पता ही नहीं चलता है। अर्णव मेरा प्यार है। एक दिन उसके बिना, मैं कल्पना भी नहीं कर सकती हूं। लेकिन ये सब बातें पापा को कौन समझाए ?

उनके लिए तो बस पढाई और पढाई और फिर मेरी शादी। पिता के स्थान पर तो वो उचित हैं। ये सब सोचते सोचते घर पहुंची और जाकर देखती हूं की गेट पर ताला लगा हुआ है। मम्मी को आवाज़ लगाई। मम्मी रोती हुई आयी और बोली तुझे तो पापा कुछ नहीं बोलेंगे लेकिन सारा गुस्सा मुझ पर निकाल लेते हैं। पापा के उपर बहुत गुस्सा आया। अंदर जा के मैंने पूछा मम्मी पर क्यों चिल्लाते हो, जो बात है मुझे बताओ। पापा मुझे ऐसे देखे की जैसे मुझे मार ही डालेंगे। तुरंत मुझे पूछ बैठे " ये अर्णव कौन है और ये सब कब से चल रहा है"। इस सवाल की आशा नहीं थी पापा से।मैं भी पापा की हिम्मतवली बेटी थी। तुरंत जवाब दिया। की प्यार करती हूं उससे। उसके सिवा किसी और से शादी भी नहीं करनी मुझे। पापा रो दिये और बोले तुझे बुखार होने पर ड़ॉक्टर की लाईन लगवा देता था मैं। कितने महँगे कपड़े गहने पहनती हो, घर में इतने नौकर चाकर हैं। इस समाज में हमारी एक इज्जत है और ऊंचा स्थान है। लेकिन तुम एक नीच कुल के ग़रीब लड़के से शादी करना चाह्ती हो । जान बूझ के अपने भविष्य को अन्धेरे में धकेल रही हो। ये तुमने क्या कर लिया मेरी गुड़िया। कल से तेरा बाहर जाना बंद। अभी से लड़का देखना शुरु करूँगा और कुछ ही दिन में शादी भी कर दूंगा। मै रोती हुई उधर से निकल पड़ी।

रात भर सो नहीं पायी, बचपन से ले के अभी तक पापा ही मेरे हीरो थे, पता नहीं ये अर्णव कब आ गया ।पिता की जगह ले लिया। बहुत बेचैनी महसूस हो रही थी। धीरे से उठ के मम्मी को आवाज़ लगाई। मम्मी पास आ कर बोली पागल लड़़की तबियत खराब हो जायेगी, अभी तक जगी है।मै अर्णव और पापा के बीच किसको चुनु??? समझ नहीं आ रहा है। बहुत बड़े धरम संकट में पड़ गयी हूं। माँ बचपन से लेकर अभी तक हर मुश्किलों में तुमने मेरा साथ दिया है। आज भी मुझे सही सही बताओ, किसको चुनू, इक्कीस साल से रिश्ते में बंधे मेरे पिताजी से या 2 साल से प्यार की रिश्ते में बंधी हुई अर्णव के साथ। मेरे सिर को अपने गोद में लेते हुए माँ बोली, बेटा अगर पत्नी धर्म निभाने जाउंगी तो तेरे पिता की साथ दूंगी और मातृ धरम की सोचू तो तेरा साथ दूंगी।  मैं बहुत उत्सुक हो गयी माँ का जवाब सुनने के लिए। भगवान के मन्दिर की तरफ उंगली दिखाते हुई माँ बोली वो कौन है ?

मैं मुस्कुरा के बोली" वो तो मेरे कृष्ण है"। हाँ बेटा अभी वो ही तुमको सही मार्ग दर्शन करायेंगे। हां माँ काश ! वो इस कलयुग मे होते तो सारे मुश्किल परिस्थितियों का हल उन्ही से मांग लेती। अरे ! उनको कलयुग मेँ आने की क्या ज़रूरत, द्धापर युग मेँ भी उन्होने मनुष्य रूप लेके मुश्किलों का सामना कैसे करना है , हमे उसका संदेश दिये है। भगवान कृष्ण का नाम सुन कर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सारी समस्या दूर हो गयी। माँ को पूछा तुम बताओ ना ऐसी परिस्थिति में कृष्ण क्या करते??? बेटा तुम्हे याद है, भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा जी , अर्जुन को अपना दिल दे बैठी थीं। लेकिन बड़े भाई बलराम की यह इच्छा थी की वो उनकी इकलौती बहन का विवाह दुर्योधन से करवाते। इस बात से सुभद्रा बहुत दुखी थीं। वो अपने प्यारे भाई कृष्ण से पूछ बैठी, भैया अब मुझे इस धरम संकट से निकालिये। कृष्ण बोले सुभद्रा तुम रथ के पीछे अर्जुन को बिठा कर यहां से दूर चली जाओ सुभद्रा अचंभित हो गयी। तुरंत बोली भैया बड़े भाई के बात की अवहेलना करने से मुझे नर्क भुगतना पड़ेगा। ये पाप की भागी मै नहीं होना चाहती हूं। तो बड़े भैया तुम्हारी शादी दुर्योधन से करके सारा जीवन तुमको दुखी करेंगे तो क्या वो पाप नहीं है। याद रखो बहन प्यार से बढ़कर धर्म कुछ भी नहीं होता। अर्जुन तुमको नहीं, तुम अर्जुन को भगा ले जाओगे तो बड़े भैया अर्जुन को भी कुछ नहीं कह पायेंगे।ये बात सुनते ही मेरे आखों से अन्धकार का पर्दा उठ गया। मै मा को बोली माँ तुम मुझे भगाने की सलाह दे के पापा को धोखा नहीं दे रही हो?? माँ मुस्कुरा के बोली बेटा प्रेम से बढ़ कर कोई धर्म नहीं है।

मेँ और माँ एक दूसरे के तरफ देख के मुस्कुरने लगे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सारा जीवन वो मेरे जीवन के रथ की सारथी बन के मुझे मार्ग दिखा रही हो। फिर क्या होना था मे अर्णव के साथ भाग गयी। माँ, पापा को बोली की हमारी बेटी ने। बेचारे अर्णब को भी अपने माँ बाप से अलग कर दिया। हमारी बेटी को समझा के ले आओ और विधि पूर्वक शादी करवा दीजिए। लोग कब तक बोलेंगे। कौन सा लोग हमारे सुख दुख मे साथ देते हैं।हमारी बेटी की खुशी हमारे लिये बहुत मायने रखती है। बस फिर क्या होना था हमारी शादी बहुत अच्छे से सम्पन हुई। मुझे मेरी माँ की समझदारी पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था। शादी के बाद पता चला मेरे और अर्णव के घर के तौर तरीकों में ज़मीन आसमान का अंतर है। अब शादी के 8 साल बीत चुके थे। मुझे तो अर्णव के घर मेँ ऐड़जस्ट करने मेँ बहुत समय लग गया। अर्णव भी शुरुआत में मेरा बहुत खयाल रखते थे। अचानक पिछ्ले दो साल से मेरे उपर हुक्म चलाना शुरू कर दिये। जैसे खाली क्यूँ बैठी हो, बाहर जाकर देखो औरतें काम करके कितना स्मार्ट बन गयी हैं। थोड़ा बाहर काम करो।

2 पैसे घर मेँ लाओ।ये सुन के मुझे रोना आता था और पापा की कही बातें याद आती थीं। पापा जो अपनी बेटी को कभी किसी काम को हाथ लगाने नहीं देते थे, आज उनकी वही बेटी बच्चे की स्कूल फीस , बैंक का काम्ं और कितना कुछ खुद करती है। पति छोटे छोटे काम भी मुझे बोलते थे करने के लिए। एकदिन गुस्सा आ गया मुझे और चिल्ला उठी की क्या आप मुझे पैसे कमाने की मशीन समझ रहे हो, और तो और घर की पूरी जिम्मेदारी मेरे कन्धों पे ड़ाल दिये हो। आप के लिए पूरे घर से बगावत कर ली और बदले मेँ मुझे आज ये दिन देखने को मिल रहा है। तुम मुझे प्यार करते थे की मेरे पैसे को। अर्णव कुछ नहीं बोले, उधर से चुपके से निकल गये।आज मायके की याद आयी। शादी के 6 साल तक तो सब ठीक था लेकिन ये अचानक ऐसे बदल क्यूँ गये??। सारे मर्द होते ही ऐसे है। प्यार के नाम से जैसे चिढ़ सी आने लगी थी। मेरे बेटी के लिए तो मुझे जिन्दा रहना पड़़ेगा।

भगवान को भी कोसती रही। कुछ दिन बाद अचानक हॉस्पिटल से फ़ोन आता है की अर्णव मुझसे मिलना चाह रहे हैं। तुरंत ऑफ़िस से निकल पड़ी। हॉस्पिटल पहुंच के देखती हूं अर्णव बिस्तर पे लेटे हुए हैं और मुझे अपने पास बुला रहे हैं। बोले पगली मेरे पास ज्यादा समय नहीं हैं। मैं पिछले 2 साल से कैंसर से जूझ रहा हूं। मैं निशब्द थी ! तुम्हे क्या हुआ? क्यूँ खामोश रहे हो तुम ? अपनी चुप्पी तोड़ कर मैंने उनसे पूछा कि आप क्या मुझे इतना पराया समझतें है कि मुझे ये बात बताना ज़रूरी नहीं समझे। मेरे हाथों को पकड़़ के बोले अगर तुम को बता देता पगली तो तुम ये जीवन की लड़ाई कैसे लड़ती। अपने खुद के पैरों पर कैसे खड़ी हो पाती तुम ? हर पल टूट जाती,। बिखर जाती तुम।

तुम्हारा ध्यान भटकता और तुम अपना काम लगन से नहीं कर पाती। आज अपने आप को देखो एक सीधी साधी लड़़की जो कुछ नहीं जानती थी, आज वो एक काबिल सॉफ़्टवेयर इंजीनियर है।तुम हर एक काम कर सकती हो जो एक मर्द कर पाता है। अब मुझे कोई अफसोस नहीं। मेरे जाने के बाद तुम सब कुछ बख़ूबी सँभाल लोगी। पिछले 2 साल मेँ मैंने तुम्हें बहुत दुख और दर्द दिये। लेकिन साथ ही साथ एक सशक्त नारी भी बना दिया। तुम मेरी प्रेमिका थी,। मेरी पत्नी हो और इस बात का मुझे हमेशा गर्व रहेगा।

भगवान को यही दुआ मांगता हूँ की हर जन्म में तुम मुझे मेरी धर्मपत्नी बन के मिलो। ये अर्णव के आख़िरी शब्द थे। खो गये मेरे अर्णव कही दूसरी दुनिया में। बस उनकी यादें रह गई हैं कभी कभी अपने आपको कोसती भी हूँ कि कैसे मैं उनके प्रेम को पहचान नहीं पायी। जो लड़की कृष्णा के दिखाये हुए रास्ते पे 8 साल पहले आँखें बंद करके चल दी थी, वो ही आज अपने सारथी पर कैसे अविश्वास कर बैठी। शायद मैं अभी भी प्रेम मे अपरिपक्व हूं।तभी तो उनका प्यार देख नहीं पाई। सही है सच्चे प्यार के लिए बड़ा अच्छा नसीब चाहिए जो मेरे कृष्ण जी ने मुझे दिया। अर्णव के रूप में एक सच्चा सारथी और हमसफर। कान्हा अगले जन्म भी मुझे मेरे अर्णव ही देना पर साथ मे उसके साथ का सुख भी। मिस यू अर्णव, तुम जहां भी रहो मेरे ही हो हमेशा।


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