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yashwant kothari

Drama

3  

yashwant kothari

Drama

कर्फ्यू में कवि

कर्फ्यू में कवि

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शहर बंद है। शहर में सन्नाटा है। गलियां सूनी है। चोपड़े अकेली शहर की दशा पर आंसू बहा रही हैं। सच पूछो तो शहर को किसी की नज़र लग गयी है। पहले नोटबंदी ने मारा फिर जी एस टी ने मारा बाकि जो बचा वो कर्फ्यू ने मार दिया। कर्फ्यु कई बार देखा मगर इस बार पहली बार इ कर्फ्यू याने की डिजिटल कर्फ्यू देखा। सब कुछ बंद। शहर दोडना चाहता है मगर कोई दोड़ने दे तब तो। पुलिस भी परेशान चोबीस घंटों की ड्यूटी। खाना पीना भूल जाओ। सन्नाटे को तोडती है –सीटियाँ। बुटो की आवाजे। लाठियों की ठक ठक। गायब होगये कहकहे। हंसी मजाक । चाय की थडिया सुनी हैं।

कवि महाराज इस आपातकाल में सुबह-सवेरे सडक के किनारे शहर की दशा पर आंसू बहा ते मिलगये।

सर। इस शहर में ये क्या हो रिया है। इस शहर को कोई धनीधोरी है की नहीं। सर रह पूरा शहर जलती हुई भट्टी बन रिया है। अमा यार ये गलती किसकी है। इस बात को छोड़ो। मगर शहर की जिम्मेदार सरकारे क्या कर रहीं हैं। पोलिस कमिश्नरेट।

जिलाधीश दोनों मिल कर हालत को सुधारते क्यों नहीं मगर सर कौन सुनता है। गरीब की कोई सुनवाई नहीं। शादी रुक गयी। बीमार दवा तो तरस गए। बच्चे दूध ब्रेड को तरस गए। मुर्दे कफ़न को तरस गए। उपर से नेट भी बंद। अफवाहों का बाज़ार गर्म। सही जानकारी कोण दे। चेनल वालों पर यकीन नहीं अख़बार चोबीस घंटों में एक बार। कवि जी भुनभुनाते रहे।

बुदबुदाते रहे। कवि एक लम्बी उदास कविता लिखने का वादा कर चले गए । शहर पर सन्नाटा और उदासी तारी होगया है। मैं भी उदास हूँ।

रोज़नदारी का का म करने वाले परेशां हैं। उनके घर मेंचुल्हा कैसे जले। रिक्शा –वाले इधरउधर पड़े हैं।

पुलिस खदेड़ रहीं हैं। दुकाने बंद हैं। व्यापर ठप्प हैं। लाशों की राजनीति का खेल चल रहा हैं। दल अपने अपने हिसाब से हालत को तौल रहें हैं। अगले चुनाव में इस मामले का फायदा कैसे उठाया जा सकता है। इस गंभीर विषय पर विचार चल रहा है। गरीब फिर छला जारहा है। वो हर बार छला जाता है। मुआवजा बस जानकी कीमत चंद रूपये। कोई नहीं जा नता हकीकत क्या। यह सब क्यों और कैसे हो रहा है?चार दिवारी के बाशिंदे बाहर नहीं निकल सकते। बाहर वाले अंदर नहीं आसकते। शहर एक शमशान जैसा लगने लगा है। पचास सैलून में तीन कर्फ्यू देख लिए। भगवन और क्या देखना बदा है?

साग सब्जी नहीं। दुगुने तिगुने दामों पर इधर उधर से खाने पीने का सामान लेकर जनता भाग रही है।

शहर बंद है। घर में पड़े पड़े बोर होगये हैं। ड्यूटी पर जाना मुश्किल। डाक तक नहीं आ रही हैं।

पुलिस लाठियां भाज रहीं हैं। आंसू गैस छोड़ रहीं हैं। भीड़ पत्थर बाजी कर रहीं हैं।

भगदड़ मची हुई है। साहब लोगों ने कठोर आदेश कर दिए हैं। स्थिति पूर्ण नियंत्रण में हैं। कठोर और बड़े फैसले लिए जारहे हैं। समाचार कम अफवाहें ज्यादा । जनता सहमी हुई हैं। खिड़कियाँ बंद है। दरवाजे बंद हैं। छतें सुनी हैं। राहें सुनसान हैं। शहर में कर्फ्यू है। सोशल मीडिया बंद हैं। दिन भर घुटर घू करने वाले चुप चाप हैं स्कूल बंद हैं। बच्चे अंदर घरों में दुबके हुए हैं पता नहीं अगला नम्बर किस का हो।

खल्क खुदा का। मूलक बादशाह का शहर कोतवाल का। हर आम –ओ –खास को इत्लाह दी जाती है की शहर में कर्फ्यू तारी हैं। अफवाहों पर ध्यान न दे। अपने अपने घरों में बंद रहे। हालत सामान्य होते ही सबको घूमने–फिरने की आजादी दी जायगी तब तक के लिए खामोश रहे।


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