Diya Jethwani

Inspirational

4.3  

Diya Jethwani

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कर्मों का खेल..

कर्मों का खेल..

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एक बार की बात हैं एक धनवान व्यक्ति जो शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था... रास्ते से कही जा रहा था...। चलते चलते उसे रास्ते में शिव जी का एक भव्य मंदिर दिखा..। उसकी इच्छा हुई की अंदर जाकर दर्शन करने चाहिए..। लेकिन उसे एक चिंता थी..। उस व्यक्ति ने बहुत महंगे जूते पहने हुए थे..। उसने विचार किया की अगर वह जूते बाहर उतार कर जाएगा तो चोरी होने का भय बना रहेगा.. जिससे उसका पूजा में ध्यान नही लगेगा..। मंदिर के भीतर तो पहनकर जा नहीं सकता था..। वो सोच में पड़ गया की करें तो क्या करें..। थोड़ी देर विचार करते करते उसने देखा की मंदिर के पास पेड़ के नीचे एक भिखारी बैठा हैं.. वो उस भिखारी के पास गया और बोला :- बाबा मुझे मंदिर जाना हैं.. आप मेरे इन किमती जूतों का ख्याल रखेंगे..? 

भिखारी ने हां में जवाब दिया..। 

तब वह व्यक्ति अपने जूते वहाँ उतार कर मंदिर के भीतर निश्चित होता हुआ चला गया..। 

भीतर जाकर पूरी श्रद्धा से उसने पूजा की और भगवान जी के सम्मुख होकर कहा :- प्रभु आपकी लीला भी बहुत अजीब हैं..। किसी के पैरों में इतने महंगे जूते दिए हैं तो कोई बेचारा एक वक्त का खाना भी ठीक से नहीं खा पाता..। कितना अच्छा होता अगर सभी एक समान होतें..।अपनी प्रार्थना पूर्ण कर उसने भगवान के समक्ष हाथ जोड़ें और मन में विचार किया की बाहर आकर वो उस भिखारी को सौ रुपये देगा..। वो खुश होता हुआ बाहर आया..। बाहर उस पेड़ के पास आया तो देखा वो भिखारी और उसके जूते दोनों वहाँ नहीं थें.। उस व्यक्ति ने सोचा शायद वो किसी काम से आसपास कहीं गया होगा..। इसलिए वो उसी पेड़ के नीचे उसका इंतजार करने लगा..। जब काफी समय तक वो नहीं आया तो वो व्यक्ति नंगे पैर ही अपने काम पर जाने लगा..। कुछ दूर चलने पर उसने रास्ते में फुटपाथ पर एक शख्स को देखा.. जो जूते चप्पल बेच रहा था..। वो व्यक्ति उसके पास गया चप्पल लेने के इरादे से..। वहाँ जाकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई.. उसने देखा की उसके चोरी हुए जूते भीं वहीं पड़े थे..। उसने उस शख्स से उन जूतों के बारे में पुछा तो उस शख्स ने बताया की एक भिखारी अभी अभी इन जूतों को सौ रुपयों में बेचकर गया हैं..। वो व्यक्ति मुस्कुराता हुआ वहाँ से नंगे पैर ही आगे चला गया..। उसे अपने सारे सवालो के जवाब मिल चुके थें..की समाज में कभी एकरूपता नहीं आ सकती.. क्योंकि प्रत्येक मनुष्य के कर्म अलग अलग होते हैं..। जिस दिन सभी के कर्म समान हो जाएंगे...उस दिन समाज की संसार की सारी विषमताएं समाप्त हो जाएगी..। ईश्वर ने सभी के भाग्य में लिख दिया हैं की उसे कब, क्या और कहाँ मिलेगा..। पर यह नहीं लिखा होता हैं की कैसे मिलेगा वो हमारे कर्म तय करते हैं.. जैसे की उस भिखारी को आज सौ रुपये मिलने थें..। वो वहीं रहता तो भी वो धनिक व्यक्ति उसे उपहार स्वरूप सौ रुपये देने वाला था.. लेकिन उसने चोरी करके.. किसी के भरोसे को तोड़ के सौ रूपये कमाएं..। 

हमारे कर्म ही हमारे भाग्य ,यश -अपयश,लाभ - हानि, मान - अपमान ,लोक - परलोक तय करते हैं... इसलिए इन सबके लिए भगवान को दोष देना गलत हैं..। 



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