Keshi Gupta

Drama

4.3  

Keshi Gupta

Drama

कर्मों का भोगी

कर्मों का भोगी

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379


  कर्मों का भोगी


सुपर्णा एक पढ़ी लिखी समझदार व्यक्तित्व की महिला थी। प्राइवेट कंपनी के एक बहुत ही अच्छे ओहदे पर काम करती थी। मगर घर से ऑफिस और ऑफिस से घर यही उसकी दिनचर्या रहा करती थी। ससुराल अच्छा था मगर कोई खास सहयोग नहीं मिलता था। बल्कि सुपर्णा को ही खामोशी से सास और घर के अन्य सदस्यों की बात माननी पढ़ती थी। मायके में भी कुछ ऐसा ही हाल था भाई अपनी जिम्मेदारियों से मुंह फेर अपनी ही गृहस्ती में मस्त था। सुपर्णा के पिता तो पहले ही चल बसे थे मगर मां का दायित्व सुपर्णा पर ही आ गया था। सुपर्णा की मां को शुगर की बीमारी थी जिसके चलते एक दिन ऐसा आया की उनकी एक टांग काटनी पड़ गई। अब सुपर्णा के लिए ससुराल में रहते हुए मां की देखभाल करना मुश्किल हो चला था तो वह ससुराल से अलग हो अपने पति और बेटे के साथ अपनी मां के घर में ही रहने लगी।

जिंदगी के इन कठिन उतार-चढ़ाव और करीबी लोगों से सहयोग न मिलने के कारण सुपर्णा कहीं अंदर ही अंदर मरती जा रही थी।

समय अपनी उड़ान तो लेता ही है फिर एक दिन सुपर्णा की मां चल बसी। बेटा भी जवान हो गया था। मां की वसीयत के अनुसार सुपर्णा को मां का घर मिला। जिसे बेचकर उसने अपने बेटे को पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया। नौकरी छोड़ सुपर्णा घर पर ही बैठ गई। वापस ससुराल में पति के साथ रहना तो शुरू कर दिया मगर कहीं सुपर्णा अंदर से अकेली हो चली थी। जिसके चलते उसके अंदर की कड़वाहट ने डिप्रेशन का रूप ले लिया और वह अपना गुस्सा और झनझनाहट अपने आसपास के लोगों पर निकालने लगी । ससुराल और आसपास के लोग सुपर्णा के इस बदलाव को देखकर बेहद हैरान थे। वे सुपर्णा के संघर्ष के बारे में जानते थे मगर यह कभी कोई सोच नहीं सका कि सुपर्णा जैसी औरत एक दिन डिप्रेशन का शिकार हो जाएगी और अपनी कड़वाहट इस तरह से निकालेगी।

आज सुपर्णा का बदलाव आसपास के लोगों को पसंद नहीं आ रहा था पर सुपर्णा कहीं अपने अंदर अपने आप से लड़ रही थी। वह अपने हर कदम से अपने आसपास के उन लोगों को तकलीफ पहुंचा कर खुद को शांत करने की कोशिश में थी मगर वह भी हो नहीं पा रहा था। देखते-देखते पति पत्नी के बीच भी दूरी आ गई और सब बिखरता चला गया। पति ने सुपर्णा को पागल करार दे छोड़ दिया । सुपर्णा के जीवन सफर को देखते हुए यही समझ में आता है कि आदमी अपने कर्मों का भोगी होता है और चाह कर भी आप उसे बदल नहीं सकते। अब सुपर्णा पति बच्चे ससुराल के होते हुए भी अकेली घर की चारदीवारी तथा अपनी ही खड़ी की हुई दीवारों में खो गई है।


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