"कोई खास दिन मुक़र्रर नही"
"कोई खास दिन मुक़र्रर नही"
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"टीचर्स डे" कोई ख़ास दिन मुक़र्रर(निर्धारित) ऐसी बातो के लिए,मैं ज़रूरी नही समझता ! हर दिन ख़ास दिन है, अगर हम सही से उस राह पर चले तो ! कोई सा भी डे हो आप उसको उस एक दिन के लिए महदूद नहीं रख सकते ! उस्ताद के लिए क्या कहुँ, कुछ बाते है की, उस्ताद का सीना फ़ख्र से चौड़ा हो जाता है तब जब आप उनकी उम्मीदों पर खरे उतरते हुए कुछ ऐसा करते जाते है जिसकी उम्मीद शायद और लोग नहीं करते एक वक़्त में उनकी ख़ुशी आपके माँ बाप से कही ज़्यादा उनके चेहरे पर साफ़ झलकती है बदले में वो कुछ नहीं चाहते हमसे, सिवाए इसके की आप ज़िन्दगी में कितनी ही बुलंदियां पार करले लेकिन वो एक शख़्स जिसने आपको उन सीढ़ियों की तमीज़ कराई थी उन पर चढ़ने का सलीक़ा सिखाया था बुलंदी पर जाकर हम न भूल जाए, खासतौर से आज के दौर में !
अलफ़ाज़ बहुत बाक़ी है अभी, हर लफ़्ज़ अदा करना ज़रूरी तो नहीं !