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पं.संजीव शुक्ल सचिन

Tragedy

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पं.संजीव शुक्ल सचिन

Tragedy

कन्यापक्ष और दहेज

कन्यापक्ष और दहेज

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रामजतन भागम भाग में लगे हुए थे ऐसे तो घर में उनके अलावा उनके अपने सगे दो भाई और दो बेटे भी थे जो उनका हाथ बटाने में मशगूल थे, किन्तु फिर भी रामजतन को ऐसा प्रतित हो रहा था जैसे कही कुछ कमी ना रह जाय। वो किसी भी तरह की कोई भी छोटे से छोटा चूक करना नहीं चाहते थे जिसके कारण बिटिया के ससुराल में आगे चलकर उन बातों के लिए उसे उलाहने सुनने पड़ें। आज के परिवेश को देखते हुए एक पिता का भावुक हृदय सशंकित था। वैसे एक पिता का सशंकित होना लाजमी भी है कारण कोई भी पिता नहीं चाहेगा की उसके द्वारा की गई एक छोटी से छोटी चूक भी भविष्य में उसके बिटिया के सुखमय जीवन में किसी भी प्रकार के दुखद एहसास का द्योतक बने।

रामजतन पेशे से एक प्राथमिक शिक्षक थे उनके दोनों भाई रामसेवक एवं रामकेश भी सरकारी नौकरी में सेवारत थे, तीनों भाईयों में अथाह प्रेम था। रामजतन जी सबसे बड़े थे परिवार में सबसे बड़े होने के कारण हेड आफ फैमिली का पोस्ट उन्हीं के पास था, परिवार का प्रत्येक सदस्य उनका सम्मान करता एवं सबके लिए उनका प्रत्येक निर्णय सर्वथा सर्वमान्य था। रामजतन जी के परिवार में उनसे छोटे दो भाई रामसेवक व रामकेश भी सरकारी सेवाओं में सेवारत थे जबकि उनके तीन बच्चे प्रकाश, शौरभ एवं प्रिया थीं। प्रकाश आईपीएस की तैयारी कर रहा था शौरभ हाईस्कूल की परीक्षा देकर रिजल्ट के इंतजार में था जबकि प्रिया बीए बीएड कर चुकी थी संपूर्ण परिवार शिक्षित था।

आज से पाँच दिनों बाद प्रिया की शादी बगल के गाँव में रहने वाले महेश जी के बड़े लड़के दिनेश से होनेवाली है। दिनेश रेलवे में कार्यरत है इसी वर्ष उसकी नौकरी गार्ड के पद पर हुई है, नौकरी लगते ही जैसे शादी करने कराने वालों का उसके घर तांता लग गया, प्रति दिन दो चार रिश्ते आने लगे। महेश थोड़े लालची किस्म के इंसान हैं, उन्होंने दिनेश के जन्म से लेकर नौकरी लगने तक जो कुछ भी पैसे अपने बेटे पे खर्च किया है वह पैसा दहेज के रुप में वसूल कर लेना चाहते हैं। वैसे इस कथानक में जो इल्जामात महेश जी पर लगाया जा रहा है आज के परिवेश में अमुमन हर पिता महेश जी के नक्शे कदम पर चल रहा है।

दहेज आज हमारे समाज में कर्क रोग (केंसर) की तरह अपना पाँव जमा चुका है, यह रोग केंसर से भी कहीं ज्यादा पीड़ादायक व खतरनाक है। आज की तारीख में दहेज एक बेटी के बाप के लिए किसी अभिशाप से कदापि कम नहीं है , यह बात आज सभी मानते भी हैं किन्तु इस कुत्सित प्रथा को समाप्त करने को उद्यत्त कोई नहीं होता सब चाहते है पहल कोई दूसरा करे। इस क्षेत्र में एक ही इंसान जिसके एक बेटा और एक बेटी है उसके सोच में भी असमानता है जब बात देने की आती है तो वहीं इंसान इस प्रथा का धूर विरोधी नजर आता है परन्तु जब दहेज लेने की बारी आती है तो वहीं व्यक्ति बेटी के बाप का शरीर से रक्त का एक एक कतरा निचोड़ लेना चाहता है। खैर यह तो बात हुई समाजिक विषमताओं, कुप्रथाओं की अब पुनः बात करते है प्रिया के विवाह की।

प्रिया घर में एकलौती लड़की होने के कारण बड़े ही नाजो से पली थी, घर में सभी उससे भरपूर स्नेह रखते थे प्रिया भी बड़ा ही संस्कारिक लड़की थी साथ ही साथ पढ़ाई – लिखाई, तगाई – बुनाई एवं गृहकार्य में दक्ष थी सुन्दरता तो जैसे किसी देवी की प्रतिमा हो। रामजतन जी प्रिया के लिए अच्छे से अच्छा घर वर देखकर उसे विदा करना चाहते थे और इसी कड़ी में उनके किसी रिश्तेदार ने उन्हें महेश के लड़के दिनेश के बारे में बताया ,लड़का देखने में सुखर हृष्ट पुष्ट एवं सुसभ्य लगा ऊपर से सरकारी नौकरी,हाथ कंगन को आरसी क्या….पढ़े लिखे को फारसी क्या...शादी तो करनी ही थी..जितने दान दहेज की मांग हुई रामजतन देने को तैयार हो गये शादी तय हो गई, और अब दो ही चार दिनों में बारात आने वाली थी, जिसके तैयारी मे रामजतन जी ज़मीन आसमान एक किये हुए थे।

रामजतन जी का पूरा घर बड़े ही सलीके से सजाया गया था, नीयत समय पर बाजे गाजे के साथ बड़े ही धूम धाम से बारात आई और प्रिया को ब्याह कर अपने संग ले गई। आज जहाँ एक तरफ बेटी के विदाई का दुख था, जहाँ बाबुल का घर सुना सुना सा काटने को दौड़ रहा था तो वहीं दूसरी तरफ,…. नववधु के शुभागमन की भरपूर खुशी थी, महेश जी का घर नववधु के स्वागत में फूलों से सजाया गया था, नववधु का संपूर्ण रीति रिवाजों के साथ वधूप्रवेश कराया गया , बहू नही जैसे साक्षात लक्ष्मी का आगमन हुआ हो। आखिर हो भी क्यों न प्रिया अपने साथ मुंहमांगी दहेज जो लेकर आई थी किन्तु …यहां एक ग़लती प्रिया के पिताजी ने कर दी, वो दहेज़ कबूल करते समय बेटहा पक्ष के समक्ष गिड़गिड़ाये नहीं, एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा ,पहले तो गिड़गिड़ाये नहीं ऊपर से बरातियों का दिल खोल के भरपूर स्वागत, जहाँ महेश की औकात से भी अधिक दहेज़ लेने के लिए पूरे ऐरिया जवार में हीनाई होने लगी वहीं बेटी को बढ़ – चढ़ कर दहेज़ देने और बरातियों का भरपूर स्वागत करने के लिए रामजतन की तारीफ।

महेश और दिनेश दोनो बाप बेटों को यह बात नागवार गुजरी, यह अपमान वो सहन ना कर सके शादी के कुछ ही दिन बीते होंगे प्रिया को तरह – तरह की यातनाएं दी जाने लगी, आये दिन की यातनाओं और उलाहनों से तंग आकर प्रिया ने एक दिन दिनेश से पूछ ही लिए आखिर उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर किया जा रहा है,…दिनेश ने उसे अपने पिता से दस लाख रुपये और मांग कर लाने को कहा ताकि शहर में घर लेकर उसे अपने साथ रख सके…पहले तो प्रिया ने अपने पिता से और पैसे मांगने को साफ मना कर दिया किन्तु जब सहनशक्ति जवाब देने लगी तब उसे जबरन अपने पिता से सारी बातें विस्तार पूर्वक बतानी पड़ी।

वैसे तो हमारे संविधान में दहेज़ उत्पीड़न के लिए बड़ा सख़्त कानून है लेकिन लोकलाज के डर से कई बार कन्यापक्ष के लोग इससे दूरी बना कर अनजाने में हीं ऐसे गुनाह को बढ़ावा देने का कार्य कर बैठते है, यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ एक तो बेटी के सुखी भविष्य के लिए रामजतन जी पहले ही अपने औकात से फाजिल खर्च कर चूके थे और अब दस लाख जैसी भारी भरखम रकम बेटों या भाइयों से बीना पूछे उन्होंने सारे खेत बंधक रख दिये इतना करने के बाद भी केवल आठ लाख रुपये ही इकट्ठा कर पाये,बकाया दो लाख मार्केट से कर्ज उठाना पड़ा, कर्ज लेकर मांग की गई रकम पूरा कर दमाद को भिजवा दिये,…शेर के मुंह अगर एक बार खून लग जाये तो फिर वो शिकार के तलाश में रहने लगता है।

अब दिनेश महेश के उकसाने पर बार – बार पैसों की मांग करने लगा, इतना ही नहीं इधर प्रिया को यातनाएं देने की प्रक्रिया भी बदस्तूर जारी रही

प्रिया ने आये दिन की यातनाओं एवं अपने परिवारजनों पर की जाने वाली हर दिन की गलत टिका- टिप्पणी से तंग आकर एक दिन अपने ऊपर मिट्टी तेल छिड़क कर खुद को आग के हवाले कर दिया, इस खबर ने आग में घी डालने का काम किया, रामजतन जी को ऐसा सदमा पहुंचाया की हृदयाघात के कारण उनके प्राण पखेरु उड़ गये।

मामला पहले थाने फिर कोर्ट पहुंचा आज महेश का पूरा परिवार सलाखों के पीछे अपने अक्षम्य कुकर्म की सजा पा रहा है।

आखिर अब तक इस दहेज़ ने नजाने कितने घरों को बर्बाद किया, न जाने कितनी प्रियाओं को आग, विष, कुऐं, गैस और ना जाने कितने और तरह के असमय मौत के हवाले किया, किन्तु फिर भी हम सभी इस कुत्सित कुप्रथा के दुस्प्रभाव से खुद को क्यों अलग नहीं कर पा रहे है, इस प्रथा को बढ़ावा देने में जितने जिम्मेदार दहेज़ लेने वाले है , उतना ही जिम्मेदार देने वाले भी हैं। हम बेटी के विवाह से पहले वरपक्ष के संबद्ध केवल यह पता कर अपनी जिम्मेदारी पूर्ण कर लेते हैं कि लड़का कमाता कितना है, खेती-बारी कितनी है, जमीन, जायजाद, पैसों के आवगमन से ज्यादा और कुछ जानने का प्रयास तक नहीं करते…..दहेज़ की मांग से ही उस परिवार के भावी नीयत का आकलन कर लेना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई और प्रिया असमय मौत का वरण ना करे, या फिर कोई प्रिया ससुराल पक्ष के द्वारा दहेज उत्पीड़न का शिकार न हो ….जबरजस्ती जलायी न जाय।।



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