कलयुग-एक अत्याचारी
कलयुग-एक अत्याचारी
कितनी अजीब है ना ये दुनिया, यहाँ कभी भी कुछ भी हो जाता है, कब कोई हँसते-हँसते रुला जाता है पता ही नही चलता। कब कोई आपका सगा आपका दुश्मन बन जाता है पता ही नही चलता, तभी तो कहते है ये कलयुग है कलयुग।
अभी कल की ही सी बात है, जब छोटी अनुषा अपने दसवी बोर्ड के पेपर देकर अपनी मम्मी पापा के साथ सिंगापुर छुट्टियां बिताकर आई थी। अपने पापा की जान थी वो, टॉप किया था उसने अपने स्कूल मैं और बदले में पापा ने उसको इनाम दिया था, ''जैसा की हमारे समाज में होता है, अगर 1st आये तो घडी वरना फिर छड़ी'' बहुत खुश थी वो आखिर अब आगे की पढ़ाई के लिए उसे इस शहर से बाहर जो जाना था, अकेले नए शहर में नई ज़िन्दगी और नए सपनों में जीना था और अपने पापा का डॉक्टर बनने का सपना भी पूरा करना था। ''वैसे भी हमारे देश में 90% डॉक्टर और इंजीनियर तो ऐसे ही है जो सिर्फ अपने मम्मी पापा के सपने को पूरा करने के लिए डॉक्टर इंजीनियर बने है।'' कुछ इसी तरह अपने सपनो को छोड़कर अनुषा भी अपने पापा के लिये डॉक्टर बनने जा रही थी, धीरे-धीरे वक़्त बीतता गया और अनुषा नए शहर भी चली गई, जगह बदल गई लोग बदल गए, दुनिया बदल गई, लेकिन नही बदला तो बस वो सपना जो उसके पापा ने उसके लिए देखा था और वो प्यार जो उसकी आँखों में उसके पापा के लिए झलकता था।
दिन, रात, महीने, साल बीत गए और 11th और 12th क्लास भी निकल गई, बेचारी अनुषा इन दो सालों में एक बार भी घर नही गई क्योंकि उसके लिए सबसे जरुरी था AIPMT का पेपर। कोई पूछता अनुषा घर नही जाना तो मुस्कुरा कर कहती घर का क्या है, एक बार डॉक्टर बन जाऊं फिर तो जब चाहो घर चली जाउंगी, बस दिन रात आँखे गढ़ा के एक टक पढ़ती रहती, ना खाने की चिंता ना किसी से मतलब। घर से आने के बाद से एक दिन भी उसने घर पर बात नही की थी, घर तो छोड़ो, वो अपने आस पास की दुनिया से बिल्कुल जुदा सी हो गई थी। फिर वो दिन भी आ गया जब AIPMT का पेपर था, पेपर देकर जब वो आई इधर उधर भाग दौड़ कर सारी किताबें उठाकर जवाब मिलाने जब वो बैठी, अचानक से उसकी आँखों से कुछ बूदें उसकी किताब के पन्नो पर जाकर गिरी, अरे वो तो रो रही थी, लेकिन क्यों?
क्या हुआ था उसे क्या वो डॉक्टर नही बन पायेगी, नही ऐसा कुछ नही था, ये आँसू तो ख़ुशी के थे उसके बस सात सवाल गलत थे, बस इंतजार था तो नतीजा आने का। फिर अब आखिर वो दिन आ ही गया जब वो अपने घर, अपने शहर, अपने पापा के पास जाने वाली थी, वो बिना किसी को बताये सीधे घर पहुच गई, दरवाजे पर पहुचकर जैसे ही उसने दरवाजा खटकाया अंदर से उसे एक परछाई दिखी, वो उसके पापा थे जैसे ही दरवाजा खुला वो झट से अपने पापा के गले लग गई, पूछा पापा माँ कहाँ है? पापा ने बताया बेटा माँ तो नानी के घर गई है, तुम आराम करो मैं पानी लाता हूँ।
अनुषा भी उठके अपने कमरे में कपड़े बदलने चली गई। पीछे से उसके पापा उसके कमरे में पानी का गिलास लेके आये, न जाने क्यों उसे आज कुछ बदला सा लग रहा था, वो उसके पापा नही मानो कोई और ही थे, उन्होंने जैसे ही अनुषा को देखा उसे झटके से अपने पास खींच लिया, जब तक अनुषा कुछ समझ पाती तब तक बहुत देर हो चुकी थी अब वो सिर्फ एक टूटे हुए लहर पंछी की तरह ज़मीन पर बेबस पड़ी थी, और उसकी मुह से जोरों की चीखें निकल रही थी, पापा प्लीज मुझे जाने दो, पापा प्लीज आई लव यू पापा, मैं आपकी बेटी हूँ। लेकिन उस दिन वो शक्स उसके पापा नही एक शैतान था, जिसकी बेटी ने अपने सपने तो अपने पापा के लिए छोड़ दिए, लेकिन उसके पापा ने उसकी ज़िन्दगी ही उससे छीन ली। क्या हो गया है हमारे समाज को एक जन्म देने वाला इंसान अपनी ही बेटी की इज्ज़त से खेल जाता है, क्या ये सच में वो देश है जहाँ बेटियाँ देवी समान होती है।
