कल्पना लोक
कल्पना लोक
''कल्पना, अरे कहाँ हो भई?'' लोक ने घर में घुसते ही अपनी पत्नि कल्पना को आवाज़ दी।
''मै यहाँ हूँ बाथरूम में नहा रही हूँ!''
''अरे यार संडे को तो तुम्हारा पूरा टाईम टेबल ही गड़बड़ा जाता है। ग्यारह बज गये अब जल्दी करो भी न। बाज़ार भी जाना है। और सूरज कहाँ है?''
''अभी आती हूँ!''
''सूरज को मैने उसके मित्र के घर भेज दिया है। अरे भई, एक ही तो दिन मिलता है मुझे आपके साथ घूमने-फिरने के लिये उसमें भी सूरज को...न बाबा न!'' कल्पना ने तौलिया से अपने गीले बाल सुखाते हुए कहा।
''कल्पना तुमको हो क्या गया है? पूरे हफ़्ते तो वह आया की कस्टडी में रहता है और आज तुमने...!''
''पापा कोई बात नहीं आज मुझे कोई नया गैजेट लाकर दे देना मैं समय बिता लूँगा उसके साथ!'' कोने में खड़े दस साल के बेटे की बात सुनकर कल्पना और लोक की बोलती बंद हो गयी ।
''बेटा इधर आओ।'' कल्पना ने सूरज को अपने पास आने को कहा लेकिन सूरज बिना कोई उत्तर दिये अपने कमरे में चला गया ।अब वह वहाँ बैठकर पता नहीं कौन से कल्पना लोक में विचरण करेगा इस बात से अन्जान कल्पना और लोक बाजार चले गये इंजोय करने,छूट्टी मनाने।