“कलियुग का प्रेम"
“कलियुग का प्रेम"
पहली बार मेरी मुलाकात प्रियंका से हमारे ट्यूशन में हुई, वह बहुत ही खुश मिजाज लड़की थी। “किसी से भी हमेशा हँसते हुए बात करना उसकी आदत थी” पहली मुलाकात में वह मुझे बहुत अच्छी लगी फिर क्या... हम और हमारे जितने साथी थे सब संग में छुट्टी होने पर घर बात करते-करते जाते थे।
उसको एक लड़का बहुत ही पसंद आया जो कि उससे 1 से 2 साल बड़ा होगा वह उससे बहुत पसंद करने लगी, मन ही मन उससे बहुत प्यार करती थी एक दिन उसने बोला मुझसे कि,“ मैं उससे बहुत प्यार करती हूं।" फिर मैंने कहा चलो बात कर लेते हैं फिर वह थोड़ी शर्माइ बोली नहीं जाने दो। वह लड़का भी इसे मन ही मन पसंद करता था लेकिन कुछ कहता नहीं था दोनों का प्यार का सिलसिला, बिना एक दूसरे को बताए ,लगभग दो-तीन महीने चला फिर क्या लड़के ने लड़की को बताया कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं लड़की ने भी बोला कि हां मैं भी तुमसे बहुत प्यार करते हैं। आजकल के जमाने का है बहुत ही साधारण बात हो गई है कि एक दूसरे को देखना और फिर बोलना है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं लेकिन असलियत में प्यार का मतलब कोई नहीं जानता।
इन दोनों का प्यार का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। लड़के की 12वीं की परीक्षा हुई और लड़का ठीक-ठाक नंबर से पास हो गया। फिर साधारण तो आजकल के जितने भी लड़के है सभी फौज में जाना चाहते हैं। तो वह लड़का भी फौज में जाने की तैयारी करने लगा। और वह तैयारी कर रहा था लड़के और लड़की की जो भी संबंध थे उनमें इतना प्यार हो गया कि उन्होंने अपने घर वालों को यह सब बता दिया था। दोनों ही अपने मां-बाप के इकलौते बेटे बेटियां थे। मां बाप ने भी इनके प्यार को देखा लेकिन, कुछ बोला नही सोचे जो होगा अच्छा होगा। उसी वर्ष लड़की की भी दसवीं की परीक्षा होने वाली थी लेकिन परीक्षा की 1 महीने पहले ही लड़की की तबीयत बहुत खराब हो गई और वह लड़की अस्पताल में भर्ती हुई भर्ती होने के बाद हम सभी जितने मित्र थे सब उसको देखने गए और का बातचीत किए हम वहां से निकलने ही वाले थे कि, हमने देखा कि वह जिस लड़के से प्यार करती थी वह लड़का भी आया और अपने माता पिता को साथ लेकर आया था लड़की के मां बाप ने लड़की को देखा और उसकी तबीयत का खयाल लेने लगे वहीं पर लड़के लड़की के माता-पिता की मुलाकात भी हुई। और कुछ समय बाद लड़की थोड़ी ठीक हुई। थोड़ी तबीयत में सुधार आया देखते-देखते उसकी जो परीक्षा थी बहुत नजदीक थी सब ने समझाया कि,“ रहने दो इस वर्ष परीक्षा मत दो अगले वर्ष दे देना” ,लेकिन लड़की बोली “कि हम इस वर्ष परीक्षा देंगे ”फिर उसने परीक्षा दी और वह परीक्षा में पास हुई ।और सब को बहुत खुशी हुए उसके अंको को देखकर। खुशकिस्मती से इधर लड़के ने परीक्षा पास की और कुछ महीनों के बाद ही लड़के की नौकरी फौज में हो गई।
क्योंकि लड़की थोड़ी गरीब घर की थी तो दसवीं के बाद वह घर में अकेले होने के कारण बाहर काम करने भी जाया करती थी । जैसे आजकल सभी ऑफिस में जाया करते हैं। उधर लड़का अपने ट्रेनिंग पर चला गया था और वह अपने ट्रेनिंग को करने के बाद हमेशा लड़की से घंटों बात करने की जिद करता लेकिन लड़की को काम भी करना था दोनों एक साथ होना बहुत ही मुश्किल हो रहा था। लड़की के लड़के से बोला है कि “मैं इतने समय समय तक तुमसे बात नहीं कर पाती ”,“बात करती हूं तो ऑफिस के कर्मचारी मुझको बोलते कि या तो तुम काम ही कर लो या तो बात ही कर लो” लेकिन ,लड़का लड़की की परेशानी नहीं समझता .. लड़के को थोड़ा घमंड हो गया था कि मेरी तो सरकारी नौकरी हो गई है ,कोई भी लड़की को चाहूंगा तो शादी तो कर ही लूंगा। लेकिन.. लड़की उसे बात करना चाहती थी फिर भी अपनी परेशानी के कारण नहीं कर पाती थी। एक दिन मेरी मुलाकात हुई थी मैंने पूछा प्रियंका तब कैसी हो ठीक हो तो उसने बोला हां ठीक ही हूं। मैंने पूछा,“ क्या हुआ कुछ हुआ क्या?”, उसने बोला कि “कन्हैया” (जो “प्रियंका” का प्रेमी था) “मेरी समस्या को नहीं समझता कि मुझे काम भी करना पड़ता है ,पढ़ना भी पड़ता है ”और घर को भी थोड़ा देखना था”। वह चाहता है कि “मैं दिन भर उससे बातें करूँ, यह मेरे लिए संभव नहीं है” तो फिर,“ उसने मुझसे बातें करना भी बंद कर दिया”, मैंने बोला“ प्यार में ऐसे छोटी-छोटी है झगड़े होते रहते हैं”, उसने बोला कि “अब वह छोटी बात नहीं रहे ”,खैर छोड़ो “तुम बताओ तुम कैसे हो?” मैं भी ठीक हूं!...ठीक है। समय मिला तो फिर कभी मिलेंगे , तुम्हें भी विलंब हो रहा होगा जाने में घर!... मैं भी घर जा रही, हूं तुम भी जाओ ।
फिर... हम दोनों अपने अपने काम में व्यस्त हो गए वह अपने रास्ते चली गई और मैं अपने रास्ते... लगभग उससे अब मिलकर 2 महीने हुए होंगे! एक दिन सुबह सुबह वह मुझे रास्ते में मिली। शायद वह अपने काम पर जा रही थी। मैं भी सुबह में टहलने के लिए निकला था, मिल गई तो सोचा बात करते हैं । इसे ट्रेन तक छोड़ आते हैं ,मैं भी उधर ही जा रहा था बात हुई…. “हंसते खेलते बात कर रही थी” लेकिन उसकी बातों के अंदर जो था, उस दिन में समझ नहीं पाया मैंने उससे फिर मजाक मजाक में पूछा बात होता है और कैसा है कन्हैया ? अब तो बात होती होगी ? वह बोली “नहीं अब तो और भी बात नहीं होती पूरी तरह से बात बंद हो गई ”यह बात बोलते ही उसकी आवाज में बहुत ही दर्द था रेलवे स्टेशन हम लोग पहुंचे ट्रेन आने वाली थी मुझे थोड़ा काम था ।तो मैं बोला“ मैं जा रहा हूं।” तुम्हारी ट्रेन भी आ ही रही है...
अगली सुबह उस पूरे इलाके में मातम सा छाया हुआ था। क्योंकि प्रियंका ने आत्महत्या कर ली थी। मैं बहुत रोया और सोचने लगा काश.. !“ मैं उस दिन उससे और बात कर लेता।" और “मैं उससे उस दिन बात करके समझाता कि क्या हुआ अगर वह नहीं तुमसे बात कर रहा है जीवन में और भी कुछ है जो तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है। तुम्हारे माता-पिता, तुम्हारे दोस्त, तुम्हारे रिश्तेदार।" काश !.....
मैं उसको बता पाता दुनिया बहुत बड़ी है इस जालिम दुनिया में यह सब होता रहता है यह कलयुग का प्यार है इस कलयुग के प्यार में रिश्ते, शादी तक नहीं जाया करते बहुत ही कम लोग होते हैं जिनकी यह रिश्ते शादी तक जाते हैं। हां यह सब उसको बता देता। उस दिन मुझे नहीं पता था कि वह मासूम हंसने खेलने वाली लड़की अपने अंदर इतना दुख लिए हुए और इतनी कमजोर हो गई थी। उसने आत्महत्या कर लिया एक बार तो मुझे, या माता पिता को यह सब बता सकती थी, अपना दुख बता सकती थी लेकिन उसने एक आसान उपाय निकाला इस समस्या से बाहर जाने का वह था आत्महत्या!... जाते-जाते उसने सोचा भी नहीं… 4 साल के प्रेम के लिए उसके अपने माता-पिता का क्या होगा?
आज की इस कलयुग में कुछ लोगों के लिए प्यार का मतलब प्यार ना रहकर एक समय बिताने का साधन और कुछ मासूम लोग जो इसके जाल में फंस कर इसे समझते नहीं और इसमें फंस जाते हैं और अंत में कहीं न कहीं उसी रास्ते को अपनाते है जो प्रियंका ने अपनाया। “किसी भी समस्या का समाधान आत्महत्या नहीं, वह तो कायर लोगों का काम है” बहादुर उसका सामना करते हैं !और अपने जीवन को जीते है।
रही बात उस लड़के की उसे इससे कुछ नहीं फर्क पड़ा वह अपने काम वैसे ही व्यस्त रहा।
लेखक
Aditya Shaw...

