कितने दूर कितने पास
कितने दूर कितने पास
"माँ ! आप ऐसा नहीं कर सकते हो। मैं समझाऊंगा वाणी को.. पर आप अपना निर्णय वापस लीजिए। आप जानती है मैं नहीं रह सकता आप के बिना" राहुल की आवाज़ भर्रा आई थी।
"मैं मां हूं और मेरे लिए तो असंभव है बच्चे के बिना रहना पर शायद परिस्थितियाँ अब काबू से बाहर है। रोज रोज की किच किच से अच्छा है हम दूर रहें पर खुश रहें" सीमा ने खुद को मज़बूत करते हुए दृढ़ता से कहा।
"ठीक है माँ ! मैंने आपकी बात कभी नहीं टाली, यहां तक कि विवाह भी आपकी पसंद से किया था। अगर आज ये नौबत है कि मुझे किसी एक से दूर होना पड़ रहा है तो भी मैं आपकी ही बात सुनूँगा, हाँ पर ये याद रखना माँ.. मैं आपकी जड़ों से जुड़ा हुआ हूं अगर काट कर अलग करोगे तो सूख कर खत्म हो जाऊँगा।" राहुल कहकर निकल गया।
सीमा को लगा जैसे किसी ने वृक्ष से हरी डाल काट ली हो पर फैसला उसका खुद का था। रोज रोज घर के कलह में बुरी तरह से पिस चुकी सीमा ने राहुल और वाणी को दूसरे मकान में रहने का आदेश दिया था।
"हाँ जड़े जुड़ी है मज़बूती से पर ये कदम इस उम्मीद में उठाया की शायद ज़मीनी दूरियाँ जड़ों को और गहरी कर पाए फ़िर एक दूसरे की अहमियत समझ कर दिलों की दूरियां कम हो जाए" सीमा मन ही मन खुद को और दृढ़ कर चुकी थी।
