खय्याम
खय्याम
आसमां चाँद बिन अधूरा है। संगीत साज बिन अधूरा है। और संगीत का तरणताल मोहम्मद ज़हूर खय्याम जैसे कमल के बिन अधूरा है।संगीतकार। जिनके हाथों का जादू वाद्य यंत्रों पर ऐसे छाता था कि जैसे खुशी के मारे भौरे फूलों पर मंडराते हुए संगीत की ख़ुश्बू फैलाते हैं।
पंजाब राज्य के नवाशहर जिले में जन्मे सादत हुसैन जिनको दुनिया खय्याम के नाम से जानती है ९२ वर्ष की अवस्था में संगीत की दुनिया में इक खालीपन सा छोड़ कर चले गए। उनका संगीत कविताओं को भी सुरों का ज़ामा पहनाने में सछम था। पुलवामा अटैक के बाद अपना जन्मदिन न मनाने की घोषणा करने वाले खय्याम ३ फिल्मफेयर अवार्ड। लाइफ टाइम अचिवमेंट्स अवार्ड।संगीत नाटक अकाडेमी अवार्ड। पद्मा भूषण। हृदयनाथ मंगेशकर अवार्ड जैसे कई अवार्डों की शोभा बढ़ाने वाले।शब्दों को अमरत्व का आशीर्वाद देने वाले।अपने संगीत की सेवा को पूर्ण विराम लगाकर १९ अगस्त २०१९ को इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए।
मैं पल दो पल का शायर हूँ।ज़ुस्तज़ू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने।दिखाई दिए यूँ। कि बेखुद किया। हमें आप से भी जुदा कर चले। जैसे गीतों को संगीत के माध्यम से सदियों तलक कानों में शहद की मिठास देने वाली चासनी में भिगोने वाले। खय्याम जी को हम हमेशा याद रखेंगे।
खय्याम जी का संगीत कभी गुनगुनाता है।दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिये। तो कभी डंके की चोट पर कहता हुआ फिरता है कि प्यार कर लिया तो क्या। प्यार है सजा नहीं।तो कभी उनका संगीत अपनी प्रेमिका के ज़िस्म की खूबसूरती को बायां करते हुए कहता है कि गुलाब ज़िस्म का यूँ ही नहीं खिला होगा।
हवा ने पहले तुझे फिर मुझे छुवा होगा। शरीर शोख किरण मुझको चूम लेती है।
ज़रूर इसमें ईशारा तेरा छुपा होगा।तो कभी प्यार में छेड़खानी करता हुआ उनका संगीत प्यार की फुहारों को ऐसे रिमझिम करवाता है कि। तेरा फूलों जैसा रंग। तेरे शीशे जैसे अंग। पड़ी जैसी ही नज़र। मैं तो रह गया तंग।आते जाते करे तंग। तेरे अच्छे नहीं ढंग मैं तो करुँगी सगाई किसी दूसरे के संग। तो कभी सूफियाना अंदाज में खुद को सुरों का ताना बाना पहना कर चुपचाप खुद के ख्यालों में सोचता हुआ कहता है कि।कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है तो कभी वही ख्याल कहते हैं कि कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की। बहुत खुबसुरत मगर सांवली सी। मुझे अपने ख्वाबों की बाहों में पाकर।कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी।उसी नींद में कसमसा-कसमसाकर। सरहाने से तकिये गिराती तो होगी तो कभी उनका संगीत प्यार भरी मुलाकातों के बारे में कहता है कि ये मुलाकात इक बहाना है प्यार का सिलसिला पुराना है।
और जब उनका संगीत जुदाई की हवा के झोंके से थोड़ा सिहरता है तो उनका संगीत आँखों में आंसू भरे कहता है कि हज़ार राहें मुड़के देखींकहीं से कोई सदा न आयी।और फिर रात की ख़ामोशी में बीते लम्हों से कहता है कि मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है।
और उनका संगीत सिर्फ प्रेमी प्रेमिका को ही याद नहीं करता है या करवाता है उनका संगीत कभी कभी बहन के रूप में चंदा के माध्यम से अपने भाई को भी सन्देश भेजता हुआ दिखता है
चंदा रे मेरे भइया से कहना। बहना याद करे।
उनके संगीत के कई आयाम है कभी प्रेम में कामदेव के बाण बन जाते हैं तो कभी सावन की रिमझिम बरसात। कभी ज़िंदगी की सीख। तभी उनका संगीत कहता है कि। कभी किसी को मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता।कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता। तो कभी उनका संगीत सवाल बन पूछता है कि।ये क्या जगह है दोस्तों है।ये कौन सा दयार है।बुला रहा क्या कोई चिलमनों के उस तरफ़
।मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेक़रार है।तो कभी पूछता है। ये ज़मीन चुप है।आसमान चुप है
फिर ये धड़कन सीचार सु क्या है? ऐ दिल-ए-नादान जुस्तजू क्या है ?
ऐसे सुरों के धनी।और संगीत के भीष्म पितामह खय्याम जी को हमारी तरफ से श्रद्धा सुमन।
"आयी ज़ंजीर की झंकार खुदा खैर करे। दिल हुआ किसका गिरफ्तार खुदा खैर करे। "
