Ekta Gupta

Drama

3.6  

Ekta Gupta

Drama

खुशी की चाभी

खुशी की चाभी

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272


हॉल के डाइनिंग टेबल पर रखा डाइवोर्स पेपर उमा और शेखर को मुंह चिढ़ा रहा था। अभी-अभी ही दोनों कोर्ट से आ रहे थे। एक साथ सात जन्म जीने - मरने की कसमें खाने वाली उमा आज शेखर का चेहरा भी देखना नहीं चाह रही थी।

सोफे पर बैठी उमा अहंकार और गुस्से से उठी और चाय बनाने चली गई। चाय जैसे-जैसे उबल रहा था, उसका गुस्सा भी उसी तीव्रता से उबल रहा था। गुस्से में वह यहां तक भूल गई कि उसने चाय को तेज आंच पर चढ़ाया है और चाय गिर कर जैसे ही उसके हाथ पर आई, वैसे ही वह जलन से वह चीख पड़ी।

उसकी चीख सुनकर शेखर भाग कर आया और उसके हाथों पर बिना बोले ही मरहम लगाने लगा, लेकिन उमा ने तो उसका हाथ झटक दिया और दूर जाकर खड़ी हो गई। गुस्से से कहने लगी -' शेखर, बंद करो अपना दिखावा। इसी अच्छाई और भोलेपन की वजह से 10 साल लग गए तुम्हे पहचानने में। बस अब और नहीं ! अब और धोखा नहीं खाऊंगी।' अपने कमरे में पैर पटकती हुई चली गई और अपने बिस्तर पर लेट गई।

उसकी दृष्टि पटल पर अपने बीते समय की छवि चलचित्र की भांति दिखने लगी। वह यादों की भवर में गोते लगाने लगी। आज से 10 साल पहले उसकी शादी शेखर के साथ कितनी धूमधाम के साथ हुई थी। उमा और शेखर दोनों एक दूसरे के लिए बने थे। शेखर एक मल्टीनेशनल कंपनी का एच. आर. था और उमा उसी ऑफिस में मार्केटिंग डिपार्टमेंट में थी।

वहीं दोनों में प्यार हुआ। अपने - अपने परिवार की सहमति से दोनों ने शादी कर ली। उमा को सबकुछ सपने जैसा लग रहा था। समय कब पंख फैलाकर उड़ गया और पांच साल बीत गए, लेकिन दोनों के प्यार में कमी नहीं बल्कि बढ़ोत्तरी हो गई।

उमा अब अपने जीवन में एक बच्चा चाहती थी जो उन दोनों को परिपूर्ण करें। उन्हें मां - पापा कह कर बुलाए, इसलिए दोनों आपसी सहमति से डॉक्टर के पास गए और अपना चेकअप करवाया। उमा का रिपोर्ट तो नॉर्मल था, लेकिन शेखर के रिपोर्ट में कुछ कमी थी, लेकिन डॉक्टर ने कहा कि - ' थोड़ी सी मेडिकेशन की जरूरत है। उसके बाद सब ठीक हो जाएगा। फिर चिंता कुछ बात नहीं रहेगी।'

धैर्य के साथ उमा उस दिन का इंतजार करती रही, जब कोई उसके आंगन में खेलेगा। वह बच्चे की उम्मीद लगाए बैठी थी। धीरे-धीरे उसकी उम्मीद टूटने लगी। किसी ने सच ही कहा है " समय किसी का इंतजार नहीं करता।" इसी तरह उनकी शादी को 10 साल पूरे हो गए। समय बीतता गया और उमा धीरे - धीरे चिड़चिड़ी होती गई। वह अकसर शेखर को भल बुरा कहती लेकिन शेखर ने कभी उसकी बातों का बुरा नहीं माना। वह गुस्से से ऑफिस भी नहीं जाती थी।

एक दिन वह घर के पीछे पड़े खाली जगह को साफ कर रही थी। ताकि वह वहां बागवानी कर सके और अपना समय व्यतीत कर सकें। यह क्या ! वहां इतनी सारी दवाईयां ! यह सब कैसे, कैसी दवाई है ? वह में ही में सोचने लगी। ये तो वहीं दवाईयां हैं जो डॉक्टर ने दी थी शेखर को। उमा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसने पता किया तो वे सभी विटामिन और कैल्शियम की दवाइयां थी। जो शेखर उमा के सामने खाता था। बस क्या था? उमा का सब्र का बांध टूट गया।

उसने अपने बगिया में फूल ना खिलने के लिए शेखर को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। साथ ही साथ रिश्ता खत्म करने की बात करने लगी। उसकी जिद की वजह से शेखर ने कहा - ' जिसमें तुम्हारी खुशी है,वही करो।' फिर क्या था। अगले दिन दोनों कोर्ट चले गए। कोर्ट ने कुछ दिन साथ रहकर सुलह करने का मौका दिया। लेकिन तीसरे दिन से ही लॉक डाउन शुरू हो गया। उमा तो अब एक पल भी शेखर के साथ नहीं रहना चाहती थी, लेकिन लॉक डाउन की वजह से उसे शेखर के साथ रहना पड़ रहा था।

शेखर की आवाज सुनकर उसकी तंद्रा भंग हुई। वह कह रहा था - ' उमा, उठो चलो रात हो गई है। खाना खा लो। तुमने सुबह से कुछ भी नहीं खाया है।' बिना कुछ बोले उमा उठी। उसने देखा तो शेखर उसके पसंद की आलू मेथी और परांठा बनाया था। उसने उसे छुआ तक नहीं। दूध पी कर फिर से सो गई। इसी तरह से उमा शेखर से उखड़ी रहती, लेकिन वह उसकी बातों का बुरा नहीं मानता था।

एक दिन सुबह-सुबह शेखर घर का सामान लाने के लिए पास के स्टोर गया था। तभी अलमारी से कपड़े अलग करते समय उमा को एक लाल रंग की फाइल हाथ लगी। जिसमें "न्यू होप हॉस्पिटल" का नाम लिखा था। वह सोचने लगी ये कैसी फाइल है मैंने तो नहीं देखा ! यह वही फाइल है जहां हम दोनों ने चेकअप कराया था। उसने फाइल के पन्नों को पलटना शुरू किया उसे अपनी रिपोर्ट दिखाइ दी जिसे पढ़कर समझ में आया कि "वह कभी मां नहीं बन सकती।", फिर उसने शेखर की रिपोर्ट पढ़ी। उसमें सब नॉर्मल था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था। उसके पैरों तले जमीन खिसक गई थी। वह अपनी कमी पर विश्वास नहीं कर पा रही थी। अपने शंका समाधान के लिए उसने तुरंत डॉक्टर से फोन पर बात की। डॉक्टर ने कहा - ' शेखर, आपसे बहुत प्यार करते हैं, इसलिए उसने यह बात बताने से मना किया था। ताकि आप उदास ना हो। कहीं आप टूट ना जाए। वह आपको टूटता हुआ नहीं देख सकता। डॉक्टर की बात सुनने के पश्चात वह फाइल छूट कर नीचे गिर गई और उसके पन्ने इधर-उधर बिखर गए।

दरवाजा खोलकर शेखर अंदर आया और देखा कि उमा बिस्तर पर बुत बने बैठी है। क्या हुआ, उमा ! तुम ठीक तो हो ना ! शेखर ने परवाह करते हुए कहा।

उमा कपकपाती हुई बोली - ' तुम अपने आप को समझते क्या हो ? इतनी बड़ी बात छुपाई ! कभी मेरे गुस्से का प्रतिकार भी नहीं किया ? कैसे इतना धैर्यवान हो सकते हो तुम शेखर ? '

शेखर समझ चुका था कि उमा को सच्चाई पता चल गई है।

उमा फिर बोली - ' लेकिन फिर भी तुम मुझसे तलाक ले लो। मुझे तुमसे तलाक चाहिए। एक बंजर जमीन से तुम्हें क्या हासिल होगा? तुम तलाक के बाद दूसरी शादी कर लेना और खुश रहना।' कह कर रोने लगी।

शेखर ने उसका माथा चूमा और गले लगाते हुए बोला - 'अगर मुझे तुमसे दूर ही जाना होता तो 10 साल इंतजार करता क्या पगली ! और मैंने तुमसे इसलिए नहीं बताया ताकि तुम पर कोई उंगली ना उठा सके।

शेखर रूआंसा होकर बोला - ' मेरी बुआ भी कभी मां नहीं बन सकती थी। ' लोगों ने ताने मार - मार कर उन्हें समय से पहले ही मार दिया। खैर छोड़ो वह सब।

लॉक डाउन खुलते ही हम अनाथ आश्रम जाएंगे और वहां से तुम जो चाहो लड़का या लड़की गोद ले लेंगे और उससे हां उसे वही नाम देंगे, जो हमने सोचा था। उसे खुद से ज्यादा प्यार करेंगे। उमा की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे जो उसकी सारी गलतियों को धो रहे थे।

शेखर कहता है - उमा जरूरी नहीं मातृत्व सुख के लिए बच्चे को जन्म ही दिया जाय। किसी जरूरतमंद बच्चे को हम गोद लेकर हम माता - पिता का सुख पा सकते हैं।'

उमा उठती है और डाइनिंग टेबल पर रखा हुआ तलाक का पेपर उठा कर फाड़ देती है और कहती हैं मेरी खुशी की चाभी कहीं खो गई थी जो इस लॉक डाउन की वजह से आज मिल गई।


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