Ekta Gupta

Others

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मां अब बंद भी करो बहू पुराण

मां अब बंद भी करो बहू पुराण

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"शर्माइन , देखो मेरा बेटा कितनी सुंदर बहू लाया है। साक्षात अन्नपूर्णा है। कितना बड़ा है खानदान इसका और रूप की भी बहुत धनी है ! पर अहंकार तो तिल मात्र भी नहीं है ।"

 अपने घर आई पड़ोसी के सामने सुधा जी अपनी नई- नवेली बहू की तारीफ करते नहीं थक रही थी । अभी एक ही महीना हुआ था, सुधा जी के बेटे आयुष और मायरा का प्रेम विवाह हुए । 

सुधा जी अपनी बहू की तारीफ तो दिल खोल करती थी, लेकिन असलियत में उनको वह फूटी आंख भी नहीं भाती थी क्योंकि आयुष ने उनकी मर्जी के खिलाफ जाकर मायरा से विवाह किया था । 

सुधा जी के मुंह से उनकी बहू की तारीफ सुनकर सुनने वालों को ऐसा लगता था कि वे बहुत अच्छी सास है। अपनी बहू को बड़ा मान- सम्मान, इज्जत और प्यार देती थी, लेकिन असलियत तो कुछ और ही थी।

 सुधा जी हमेशा मायरा को ताने कसती रहती और कहती मेरे राजकुमार जैसे बेटे ने तुझ से शादी कर ली। पता नहीं क्या दिखा तुझमें ! मेरी पसंद को भी उसने मना कर दिया। 

 मायरा को कुछ भी काम अपने मन से करने नहीं देती थी उसकी सास । हर काम में नुक्स निकाल देती थी। पकाने के लिए नपा -तुला सामान निकाल कर देती थी, जिसकी वजह से कभी- कभी मायरा के लिए खाना कम पड़ जाता था। मायरा ने फिर भी कभी शिकायत नहीं की। 

आयुष अक्सर काम के सिलसिले में बाहर ही रहता था, जिससे मायरा ने उसे परेशान करना उचित नहीं समझा। घर में उसकी छोटी ननद सृष्टि ही उसे समझती थी । दोनों में बहनों जैसा रिश्ता था मायरा की छोटी ननद अभी पढ़ाई कर रही थी।

 सृष्टि ने कहा - "भाभी, आप इतनी बातें क्यों सुनती हो मां की ? "

मायरा ने कहा- "कोई बात नहीं, बड़ी है और उनकी बात का उत्तर देकर घर में कलेश क्यों करना ?"

 एक दिन कॉलेज से खिलखिलाती हुई सृष्टि आई और अपनी भाभी से कहने लगी - "यू आर सो स्वीट भाभी ! आपकी वजह से मेरे दोस्त मुझे कितना भाव देने लगे हैं। जब से आप आई हैं मेरा तो मेरे दोस्तों के बीच स्टेटस ही चेंज हो गया है। आप इतनी अच्छी हो पता नहीं माँ को कब आपकी कदर होगी? "

 "यह सब छोड़ो, बताओ कॉलेज में क्या-क्या हुआ ?" मायरा ने बात बदलते हुए कहा। 

 भाभी आप अपनी परेशानी हल नहीं करना चाहती तो कोई बात नहीं , लेकिन मैं ससुराल जाने से पहले आपकी परेशानी हल करके ही इस घर से विदा लूंगी। सृष्टि ऐसा कह कर अपनी भाभी के गले लग जाती है।

 आयुष की शादी में सुधा जी के चाचा- चाची जी नहीं आ पाए थे , इसलिए वे नई बहू से मिलने आने वाले थे।

 सुधा जी ने उनके आने से पहले मायरा को ढेर सारी नसीहत देना शुरू कर दी। देख, मेरे चाचा - चाची जी आने वाले हैं । उनकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए । अच्छे से तैयार होकर रहना और शिकायत का कोई मौका मत देना। 

मायरा ने हां में सर हिला दिया और अपने काम खत्म करने चली गई। अगले दिन सुधा जी के चाचा - चाची जी भी आ गए । 

मायरा ने पैर छूकर प्रणाम किया और उन्हें चाय- नाश्ता कराया । सुबह से बेचारी मायरा काम में लगी थी, जिसकी वजह से ठीक से नाश्ता भी नहीं खा पाई थी । 

 उपहार लाने चाचा और चाची जी बाजार चले गए । इसी बीच सृष्टि ने बीच में शरबत बना कर मायरा को पिलाया। इसी बात पर सुधा जी ने मायरा और सृष्टि को खरी-खोटी सुना दी। 

सृष्टि ने निश्चय किया कि आज वह मां की आंखें खोल कर रहेगी । रात का खाना बहुत अच्छा बना था इसलिए सभी ने कुछ ज्यादा ही खा लिया। जब मायरा मीठा लेकर गई तो सभी ने कहा कि सब कुछ देर बाद खाएंगे । 

चाची जी ने कहा - "बहू मायरा, तुम भी जाकर खा लो फिर थोड़ी देर बाद हम सब मिलकर साथ में मीठा खाएंगे ।" सब बैठ कर बातें कर रहे थे तभी सुधा जी का बहु बखान पुराण शुरू हो गया । "चाची जी मैं तो बड़ी भाग्यशाली हूं जो मुझे साक्षात अन्नपूर्णा मिली है । ऐसी बहू तो किस्मत वालों को मिलती है । इतना बड़ा खानदान , रंग-रूप और अहंकार तनिक भी नहीं ! "

चाची जी ने हां में हां मिलाते हुए कहा - किस्मत की धनी है तू सुधा। यह सब बातें सुनकर सृष्टि को गुस्सा आया और वह कमरे से बाहर आई और कहने लगी- "अब बस भी करो माँ। बहू बखान पुराण बंद करो। रसोई में जाकर देखो तुम्हारी वजह से तुम्हारी अन्नपूर्णा आधे पेट ही खाती है । 

चाची ने रसोई में जाकर देखा तो प्लेट में थोड़ी सब्जी और एक रोटी और चार - पांच पीस सलाद का रखा हुआ था, जिसे मायरा खाने ही जा रही थी । 

"सुधा तू तो बड़ी किस्मत वाली है पर यह तेरी बेचारी बहू नहीं। प्रेम - विवाह किया है तो क्या हो गया? तेरे द्वारा खोजी गई बहू भी तेरा इतना आदर ना कर पाती। और हाँ एक बात गांठ बांध ले , तेरी भी तो बेटी है कल अगर उसके साथ यह सब होगा तो क्या बीतेगी तुझ पर और तेरी बेटी पर । भगवान से डर सुधा। सबको इसी जन्म में कर्ज उतारना पड़ता है ।" कह कर चाची जी वहां से बैठक खाने में चली गई ।

पीछे-पीछे सुधा जी भी आई और बोलने लगी "चाची जी ऐसा मत बोलिए मैं अपने स्वार्थ में अंधी हो गई थी जो मेरी अन्नपूर्णा को भूखे पेट सुलाती रही । मेरे बेटे का मना करना मुझे मेरा अपमान लगा इसलिए शायद! लेकिन अब और नहीं ।"सुधा जी के आंखों में पछतावे के आंसू थे ।



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